मिशन चंद्रयान को लेकर भारत की उम्मीदें

punjabkesari.in Monday, Jul 22, 2019 - 12:26 AM (IST)

50 साल पहले 24 जुलाई 1969 को अमरीका का अपोलो 11 मिशन चांद से लौटा था। 3 अंतरिक्ष यात्री,पायलट, माइकल कोन्लिस और एडविन आल्ड्रिन तथा कमांडर नील आर्मस्ट्रांग को फ्लोरिडा से उड़ान भरने  और फिर चांद पर जाने तथा वापस आने में 8 दिन का समय लगा था। 22 जुलाई को भारत अपना पहला स्पेसक्राफ्ट चांद पर भेजेगा। इसे चांद पर भेजने में करीब 7 सप्ताह लगेंगे। अमरीका, रशिया और चीन के बाद भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश होगा। हालांकि यह केवल योग्यता और दक्षता का सवाल नहीं है बल्कि प्राथमिकताओं का भी मामला है। 

अन्य देश जिनके पास ऐसा करने की तकनीकी क्षमता मौजूद है, जैसे कि जर्मनी, फ्रांस, जापान और अन्य की अंतरिक्ष संबंधी महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं और उनकी सरकारों का मानना है कि करदाता का पैसा ऐसी चीजों पर नहीं खर्च किया जाना चाहिए। परमाणु हथियार विकसित करने के मामले में भी इन देशों ने अलग रास्ता अपनाया है। 

चांद का अध्ययन करने का कारण यह है कि इससे हमें पूरी सौर प्रणाली के विकास को समझने में मदद मिल सकती है। चांद 3.5 बिलियन वर्ष पुराना है और इसके गड्ढे बनने से लेकर अब तक अपरिवर्तनीय रहे हैं क्योंकि इसके ऊपर कोई वातावरण नहीं है और कोई आंतरिक हलचल भी नहीं है जो इसकी विशेषताओं को खत्म कर सके। चांद ने पूरी सौर प्रणाली में हुए प्रभावों को दर्ज किया है और इससे और भी बहुत से रहस्योद्घाटन हो सकते हैं जिनका धरती पर अध्ययन नहीं किया जा सकता। दरअसल अपोलो मिशन के बाद ही इस बात का पता चला था कि चांद का निर्माण संभवत: पृथ्वी से किसी भारी वस्तु के टकराने के परिणामस्वरूप हुआ था। 

स्वयं अमरीका ने भी 1969 के बाद अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा के मामले में ज्यादा कार्य नहीं किया है। आर्मस्ट्रांग और आल्ड्रिन के बाद 10 और अमरीकियों ने चांद पर कदम रखा लेकिन उनका अंतिम मिशन 1972 में हुआ था। 1980 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समय में अमरीका ने स्पेस शटल कार्यक्रम का विकास किया। यह 2011 में समाप्त हुआ। भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का 2003 में एक हादसे में निधन हो गया था जब अंतरिक्ष यान कोलम्बिया वातावरण में प्रवेश करते समय टूट गया था। यह किसी अंतरिक्ष यान की दूसरी दुर्घटना थी, पहली 1980 में हुई थी तथा इन दोनों हादसों में 14 लोग मारे गए थे। 

30 वर्ष पहले शीत युद्ध के अंत और  सोवियत संघ के विघटन के बाद लम्बी दूरी की मिसाइलों (जिनमें  स्पेस रॉकेट के समान कई विशेषताएं थीं) पर खर्च किया जाने  वाला पैसा अन्य स्थानों पर खर्च किया जाने लगा। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में कहा है कि वह नासा की महत्वाकांक्षाओं को फिर से शुरू करेंगे और अमरीकी अंतरिक्ष यात्री 2024 तक चांद पर लौटेंगे। हालांकि अंतरिक्ष के संबंध में सबसे बढिय़ा कार्य आजकल निजी कम्पनी स्पेस एक्स द्वारा किया जा रहा है जिसका संचालन करोड़पति इंजीनियर एलन मस्क करते हैं। स्पेस एक्स वह कार्य कर सकता है जो नासा भी नहीं कर सकता जैसे कि रॉकेट के विभिन्न चरणों को रिकवर करना तथा उन्हें दोबारा इस्तेमाल करना। ब्ल्यू ओरिजन नामक अन्य निजी अंतरिक्ष फर्म जिसका संचालन एमाजॉन के मालिक जैफ बेजोस करते हैं, ने भी ऐसी क्षमता विकसित कर ली है। 

जब 2002 के आसपास मस्क ने अपनी कम्पनी शुरू की तो उसने पाया कि पिछले 50 वर्षों में रॉकेट तकनीक ने कोई तरक्की नहीं की है और सरकारें अब भी 1960 वाले सिस्टम का ही प्रयोग कर रही हैं। उनकी रणनीति चांद पर एक कालोनी बनाने की है और उनकी प्रतिबद्धता, विजन और जुनून को देखते हुए यह संभव है कि वह काफी हद तक अपने मकसद में कामयाब हो जाएं। जब भारत जैसे देशों द्वारा अंतरिक्ष कार्यक्रम पर खर्च करने की बात आती है तो दो तरह के विचार सामने आते हैं और मेरा ख्याल है कि दोनों वैध हैं। पहला यह है कि गरीब देशों को रॉकेट्स पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे नागरिकों को कोई खास फायदा नहीं होता। सिवाय राष्ट्रीय गर्व के जिससे भूख नहीं मिटती। दूसरा विचार यह है कि इस तरह के मिशन वैज्ञानिक सोच पैदा करते हैं। और खासतौर पर दुनिया के उस हिस्से में जहां सरकार लोगों को यह बताती हो कि क्या खाना है और क्या नारा लगाना है, वहां पर वैज्ञानिक सोच विकसित करना लाभदायक है।

शायद यही कारण है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों को हमेशा सभी राजनीतिक दलों का समर्थन मिलता रहा है। आज लांच होने जा रहे भारत के चांद मिशन  को मनमोहन सिंह ने 2008 में स्वीकृति प्रदान की थी और यदि यह सफल रहता है तो चंद्रयान-2 एक वर्ष तक सक्रिय रहेगा। इस मिशन को लांच करने वाला रॉकेट जीएसएलवी-ढ्ढढ्ढढ्ढ है। इसका जोर सैटर्न ङ्क के मुकाबले चौथा हिस्सा होगा जो आर्मस्ट्रांग को चांद पर ले कर गया था। इस सैटेलाइट का भार 3.8 टन है और यह चंद्रमा के धरातल से 100 किलोमीटर ऊपर एक कक्षा में खुद को स्थापित करेगा। 

मिशन के आर्बिटर, लैंडर तथा रोवर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित किए गए हैं। लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा गया है। यह आर्बिटर से धीरे से अलग होगा और दक्षिणी ध्रुव पर चांद की सतह पर उतरेगा। इसके बाद  प्रज्ञान नामक रोबोटिक रोवर 14 दिन  वहां बिताएगा और चांद के धरातल का अध्ययन करने के लिए मिनरल और कैमीकल सैम्पल इकट्ठे करेगा। यदि चंद्रयान-2 सफल रहता है तो भारत का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध होगा और इस बार यह सकारात्मक बात के लिए होगा।-आकार पटेल


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