जम्मू-कश्मीर में ‘अग्निपरीक्षा’ में से गुजर रहा भारत

punjabkesari.in Sunday, May 13, 2018 - 03:55 AM (IST)

भाजपा नीत केंद्रीय सरकार के विदेशी संबंधों, जम्मू तथा कश्मीर के मामले में राम माधव ही आर.एस.एस. के रणनीतिकार हैं। (क्या इसमें कोई विडम्बना की बात है?)सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति के बारे में उन्होंने एक बार कहा था: ‘‘स्थिति विस्फोटक हो या न, सरकार चट्टान की तरह मजबूती से खड़ी है।’’ 

जनाब राम माधव दिल्ली स्थित अपने आवास और दफ्तरों में पूरी तरह सुरक्षित हैं और मैं उनके कुशल-मंगल की कामना करता हूं। 22 वर्षीय राजावल तिरुमणि के मामले में ऐसा नहीं था। वह अब इस दुनिया में नहीं। पूरी तरह दिग्भ्रमित युवाओं द्वारा की गई पत्थरबाजी ने उनकी जान ले ली। परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों, इस तरह का अपराध अक्षम्य है। तिरुमणि की गलती यह थी कि वह और उनका परिवार छुट्टी और यात्रा राहत (लीव ट्रैवल कंसैशन) का लाभ उठाने के लिए कर्मचारियों के एक समूह में शामिल हो गए जो पर्यटकों के रूप में कश्मीर जा रहा था। 

कश्मीर घाटी के पत्थरबाज युवकों तथा तिरुमणि के परिवार के बीच कोई दुश्मनी नहीं थी। संवेदनहीन ढंग से तिरुमणि की मौत को ‘अनुषंगी विनाश’  की संज्ञा दी जा सकती है। दुर्भाग्यवश भाजपा नीत केंद्रीय सरकार की ‘चट्टान की तरह मजबूती से खड़े होने’ की कश्मीर नीति के कारण होने वाले अनुषंगी विनाश का यही एकमात्र उदाहरण नहीं। गत तीन वर्षों दौरान और भी बहुत कुछ बर्बाद हुआ है। 

स्तम्भ को भी पहुंचा आघात
भारत को एकजुट रखने वाले स्तम्भों को जो आघात पहुंचा है वह इस प्रकार है:
1. संवैधानिक प्रावधानों का सम्मान किया जाएगा। धारा 370 भारतीय संघ तथा जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था। किसी राज्य के संबंध में यह एकमात्र विशेष प्रावधान नहीं। धारा 371 से लेकर धारा 371 (1) तक अन्य भी इसी तरह के प्रावधान हैं। वर्तमान में केंद्रीय सरकार तथा नैशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड (एन.एच.सी.एन.-आई.एम.) के साथ जो वार्तालाप चल रही है, वह सफल हो जाती है और समझौता हो जाता है तो एक अन्य विशेष प्रावधान जोड़ा जाएगा। क्या उस नई धारा के भी 30 या 40 वर्ष बाद यह कहा जाएगा कि इसे रद्द किया जाए या समझौते का सीधे-सीधे उल्लंघन किया जाएगा? 

2. सशस्त्र सेनाएं राजनीति से दूर रहेंगी। जिस दिन जम्मू-कश्मीर में सभी राजनीतिक दलों ने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार को यह आह्वान करने का फैसला लिया कि घाटी में एकतरफा गोलीबंदी की घोषणा की जाए, उसी दिन सेना प्रमुख ने अपनी अवधारणा के अनुसार ‘आजादी’ को परिभाषित किया और चेतावनी दी: ‘‘आजादी मिलने वाली नहीं, कभी भी नहीं.. यदि तुम हमारे विरुद्ध लडऩा चाहते हो तो हम पूरी शक्ति से तुम्हारे विरुद्ध लड़ेंगे।’’ एकतरफा गोलीबंदी की मांग के विरुद्ध केंद्र सरकार के एक अधिकारी का यह कैसा उत्तर था? 

3. मंत्री परिषद सामूहिक रूप में विधानपालिका तथा जनता के समक्ष उत्तरदायी होगा। जम्मू-कश्मीर में भी मंत्रिपरिषद है जोकि निराशाजनक हद तक अंतर्कलह की शिकार है। एक वर्ग ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह कश्मीर की सरकार हो। यहां तक कि जब मुख्यमंत्री ने रमजान से लेकर ईद तक एकतरफा गोलीबंदी की मांग की तो उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘केवल एक ही पक्ष द्वारा गोलीबंदी को कार्यान्वित नहीं किया जा सकता।’’ 

निष्ठाहीन कार्रवाइयां
4. कार्यपालिका की प्रत्येक कार्रवाई जिम्मेदारी भरी होगी। लेकिन जम्मू-कश्मीर में इस सिद्धांत को सिर के बल खड़ा कर दिया गया है क्योंकि वहां प्रत्येक कार्रवाई निष्ठाविहीन होने के साथ-साथ कार्यपालिका की मनमर्जी पर आधारित है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मई 2014 में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर आमंत्रित करने से लेकर उनकी पोती की दिसम्बर 2015 में शादी के मौके पर मोदी की अचानक यात्रा तथा सितम्बर 2016 में जम्मू-कश्मीर को सर्वदलीय शिष्टमंडल की रवानगी से लेकर सितम्बर 2016 में सेना द्वारा सीमा पार कथित ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और अक्तूबर 2017 में एक वार्ताकार की नियुक्ति तक सब कुछ तात्कालिक भ्रांतियों से प्रभावित होकर ही किया गया है। इनमें से एक भी फैसला ऐसा नहीं था जो किसी विधिवत चिंतन प्रक्रिया पर आधारित नीति के अंतर्गत लिया गया हो। कश्मीर घाटी में कोई भी केंद्र सरकार की नेक नीयत पर भरोसा करने को तैयार नहीं। इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि सर्वदलीय शिष्टमंडल को इतनी दृढ़ता से ठेंगा क्यों दिखाया गया था और वार्ताकार की दुहाई भी अब क्यों नहीं सुनी जाती? 

5. जम्मू-कश्मीर की एकजुटता को अक्षुण्ण बनाए रखा जाएगा। बहुत से लोग अब यह भरोसा करने से भी हट गए हैं कि जम्मू-कश्मीर मिश्रित  संस्कृति वाला इलाका रह पाएगा। कुछ लोग तो यह विश्वास करने की गलती तक कर रहे हैं कि देश के तीनों प्रमुख क्षेत्रों को अलग-अलग करके तीन प्रांत बना दिए जाएं। जम्मू क्षेत्र का तो पहले ही अभूतपूर्व हद तक ध्रुवीकरण हो चुका है और पाकिस्तान से सटी इसकी सीमा पर इतनी घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं जितनी पाक-कश्मीर नियंत्रण रेखा के इलाके में भी कभी देखने में नहीं आईं। लद्दाख क्षेत्र ने खुद को कश्मीर घाटी से दूर कर लिया है लेकिन यह भी आगे दो भागों में विभाजित है। जहां लेह-लद्दाख का इलाका बौद्ध वर्चस्व वाला है वहीं कारगिल में मुस्लिम वर्चस्व है। कश्मीर घाटी पूरे उबाल पर है। बेवकूफी भरी नीतियों ने प्रदेश के तीनों इलाकों के बीच विभेद की खाइयां और भी गहरी कर दी हैं। 

बढ़ती हिंसा
6. सम्राट कभी भी अपनी प्रजा के विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाएगा। बहुत अफसोस से यह मानना पड़ता है कि कश्मीर घाटी में एक अघोषित आंतरिक युद्ध चल रहा है। पत्थरबाजों सहित घाटी में असहमति के स्वरों को सैन्य और बाहुबली पहुंच द्वारा शांत करने के प्रयासों ने कश्मीर घाटी को तबाही के कगार तक धकेल दिया है। हिंसा और मौत का तांडव दिन-ब-दिन प्रचंड होता जा रहा है। (देखें सारिणी) पी.डी.पी.-भाजपा गठबंधन सरकार को लेशमात्र भी वैधता हासिल नहीं। उसके बावजूद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तब तक गठबंधन की इस नौटंकी को बंद नहीं करेंगी जब तक यह खुद-ब-खुद त्रासदी का रूप ग्रहण न कर ले। हर गुजरते दिन के साथ मेरी निराशा बढ़ती जाती है। एक राष्ट्र के रूप में भारत एकता, एकजुटता, बहुलतावाद, धार्मिक सहिष्णुता, जनता के आगे जवाबदेह सरकार, मतभेदों के समाधान के लिए वार्तालाप इत्यादि जैसी जिन बातों का प्रतीक था-वे सभी की सभी जम्मू-कश्मीर में अग्रि परीक्षा में से गुजर रही हैं और एक राष्ट्र के रूप में भारत इस परीक्षा में से विफल हो रहा है।-पी. चिदम्बरम


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Pardeep

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