कांग्रेस ‘सत्ता का सपना’ छोड़े तो सत्ता मिले

punjabkesari.in Tuesday, Sep 08, 2020 - 04:29 AM (IST)

चीन के साथ बढ़ते तनाव, माइनस में जी.डी.पी. और कोरोना के आसमान छूते आंकड़ों के बीच कांग्रेस में सत्ता संघर्ष की खबरेें कहीं पुरानी पडऩे लगी हैं। खत लिखने वाले नेता अखबारों में लेख लिखकर और टी.वी. चैनलों पर इंटरव्यू देने के बाद खामोश होने लगे हैं। उधर इन नेताओं के खिलाफ कुछ युवा ब्रिगेड के नेता खड़े हो गए हैं। बागी नेता भी हर बात पर सोनिया गांधी-राहुल गांधी के बलिदान का लोहा मानने लगे हैं तो क्या माना जाए कि कांग्रेस में सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चलता रहेगा जैसा कि पहले चल रहा था। गांधी-नेहरू परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा लेकिन किसी दूसरे की ताजपोशी भी नहीं की जाएगी। 

ब्लाक स्तर से लेकर अध्यक्ष पद तक के लिए चुनाव उस रूप में नहीं होंगे जैसी कि सिफारिश की गई थी। इतना सब हो गया पार्टी में लेकिन मोदी सरकार का विरोध ट्विटर पर ही दिख रहा है। कांग्रेस को सबक लेना चाहिए उन बेरोजगार युवाओं से जिन्होंने नौकरियों और परीक्षा परिणाम को लेकर 5 सितम्बर को देश भर में ताली- थाली बजवा दी, उसे ट्रैंड करवा दिया, एक मुद्दा बना दिया। इससे पहले प्रधानमंत्री के मन की बात के 5 लाख से ज्यादा डिसलाइक हुए जो साफ इशारा करते हैं भाजपा को उसी के हथियार से घेरना, कोई चाहे तो ऐसा कर सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी ऐसा क्यों नहीं कर पा रही है। 

गालिब के दो शे’र याद आ रहे हैं: ‘थी खबर गर्म कि गालिब के उड़ेंगे परखच्चे, देखने हम भी गए लेकिन तमाशा न हुआ।’ एक और शे’र है-‘जमा करते हो क्यों रकीबों को, इक तमाशा हुआ गिला न हुआ।’ सी.डब्ल्यू.सी. की बैठक में तमाशा हुआ या गिले-शिकवे दूर किए गए, कुछ भी तय नहीं है। अलबत्ता गालिब की इसी गजल का एक अन्य शे’र है-‘न मैं अच्छा हुआ बुरा न हुआ।’ यही हालत कांग्रेस की है। कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है और शायद अच्छा होना चाहती ही नहीं है। गुलाम नबी आजाद का कहना है कि कांग्रेस में चुनाव नहीं हुए तो 50 साल विपक्ष में बैठना पड़ेगा। ऐसी खरी-खरी बातें आमतौर पर कांग्रेस के नेता नहीं करते। गुलाम नबी आजाद अगर खत लिखने के बाद, सोनिया गांधी और राहुल गांधी से बातचीत करने के बाद भी ऐसा कह रहे हैं तो इसके गहरे सियासी मतलब निकाले ही जाने चाहिएं। आजाद कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा तो जो भी चुना जाएगा उसे चुने जाने के बाद 50 फीसदी से ज्यादा का समर्थन मिल जाएगा, भले ही आज एक प्रतिशत का भी हासिल नहीं हो। 

इससे पहले कपिल सिब्बल का ट्वीट आया था जो कांग्रेस में बगावत की कहानी को और आगे ले जाता है। सिब्बल ने बहुत बड़ी बात की है अगर इसे बिटवीन द लाइंस समझा जाए तो। कह रहे हैं कि पद से बड़ा देश होता है। कहीं न कहीं वह साफ तौर पर शायद कहना चाह रहे हैं कि नेता से बड़ी पार्टी या यूं कहा जाए कि पद से बड़ी पार्टी होती है। पार्टी से बड़ा देश होता है। कपिल सिब्बल कहीं यह कहना तो नहीं चाह रहे कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी पद के बारे में ही ज्यादा सोच रहे हैं। आखिर 23 नेताओं ने, अपने ही नेताओं ने, गांधी-नेहरू परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाले नेताओं ने ऐसा क्या कह दिया कि दोनों आहत हो गए। 2014 और 2019 में 50-55 सीटें आने के बाद दोनों आहत नहीं हुए। बिहार, यू.पी., बंगाल, असम, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश  में  हार के बाद दोनों आहत नहीं हुए। युवा कांग्रेस से छिटक रहे हैं, यह खबर सुनकर दोनों आहत नहीं हुए। 

कांग्रेस के बुनियादी वोट बैंक में मोदी ने जबरदस्त सेंध लगाई है यह तथ्य जानकर भी दोनों आहत नहीं हुए। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा में भाजपा ने कांग्रेस या उसके गठबंधन से सरकार छीन ली, यह देख- सुनकर दोनों आहत नहीं हुए। आज हालत यह है  कि यू.पी., बिहार, बंगाल, ओडिशा , तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र  में कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में आ ही नहीं सकती है, यह कड़वा सच जानकर भी दोनों आहत नहीं हुए। 

लेकिन 23 नेताओं  ने एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग कर ली, एक एक्टिव और सड़क पर मौजूदगी साबित करने  वाले अध्यक्ष की फरियाद कर ली। पार्टी को बचाने की गुहार कर ली। कांग्रेस पार्लियामैंटरी बोर्ड का गठन करने की प्रार्थना कर दी, बोर्ड में बड़े मसलों पर बड़े फैसले लेने का आग्रह कर दिया तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी आहत हो गए।  23 नेताओं  ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकों का सच सामने रख दिया तो दोनों आहत हो गए। 23 नेताओं  ने कहा कि देश जब सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और ऐसे में भी कांग्रेस नहीं जागी तो देश के लिए बुरा होगा। इसमें आहत होने की क्या बात है। सच यही है कि कांग्रेस बचेगी तो ही गांधी-नेहरू परिवार का सियासी वजूद भी बचेगा। एक मौका गांधी-नेहरू परिवार से अलग किसी नेता को क्यों न दिया जाए। वैसे भी कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। इसका दूसरा पहलू है कि कांग्रेस को 2019 में भी 19 प्रतिशत वोट मिले थे। 

ले-देकर दो ही बातें कही जा रही हैं। लाइन माइंडिड पाॢटयों को एक साथ लो, कांग्रेस छोड़ कर गए नेताओं को वापस पार्टी में लाने की कोशिश करो लेकिन भाजपा से सिर्फ इसी आधार पर लड़ा नहीं जा सकता। अगर कहीं लड़ा भी जा सकता है तो पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा नहीं किया जा सकता। ममता बनर्जी, जगनमोहन रैड्डी, शरद पवार और हेमंत बिस्वा सरमा पार्टी छोड़ कर गए उन चंद नेताओं में हैं जो अपने दम पर अपना दम दिखा रहे हैं। इनमें से कोई भी कांग्रेस में लौटने के लिए मरा नहीं जा रहा है और न ही किसी ने वापसी की अर्जी ही लगाई है। इनमें से किसी को फिलहाल कांग्रेस की जरूरत भी नहीं है। कांग्रेस को सत्ता में आना है तो दस साल के लिए सत्ता का सपना छोडऩा ही पड़ेगा।-विजय विद्रोही
 


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