नीति न निष्ठा, राजनीति में सब कुछ ‘सत्ता’

punjabkesari.in Saturday, Apr 13, 2024 - 05:01 AM (IST)

चुनाव पूर्व दलबदल देश में नया नहीं है, पर हाल की कुछ घटनाओं से लगता है कि हमारे नेताओं ने राजनीति को भी आई.पी.एल. क्रिकेट-सा बना दिया है। आई.पी.एल. में हर सीजन से पहले खिलाडिय़ों की नीलामी होती है और बड़ी संख्या में खिलाड़ी-कोच इधर से उधर हो जाते हैं। वैसा ही दृश्य राजनीति में नजर आ रहा है। लगता ही नहीं कि नेताओं की कोई नीति या दल-नेतृत्व के प्रति निष्ठा है। वह उसी तरह दल बदल रहे हैं, जिस तरह आई.पी.एल. में खिलाड़ी टीम बदलते हैं। 

चुनावी मुकाबलों में खेल भावना आदर्श स्थिति हो सकती है, पर राजनीति का खेल बन जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। बेशक देश-काल-परिस्थितियों के मुताबिक नेता का मन बदल सकता है, पर उसके संकेत तो मन-वाणी-कर्म से पहले ही मिलने शुरू हो जाने चाहिएं। अगर अचानक मन बदलता है, तो नेता की नीयत पर सवाल उठेंगे ही। कांग्रेस के बेहद तेज-तर्रार प्रवक्ताओं में शुमार गौरव वल्लभ पिछले कुछ दिन नजर नहीं आए, पर पार्टी की नीति और मुद्दों से उनकी असहमति भी कभी नहीं दिखी। केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों से लेकर अडानी समूह पर आरोपों तक  हर मुद्दे पर गौरव वल्लभ मुखर आलोचक रहे, पर अब अचानक कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। तर्क दिया कि वह सनातन के विरुद्ध नारे नहीं लगा सकते और वैल्थ क्रिएटर यानी संपत्ति सृजक को गाली नहीं दे सकते। सनातन के विरुद्ध नारे लगाने को किसने कहा यह गौरव वल्लभ ने नहीं बताया। कभी 5 ट्रिलियन में लगने वाले जीरो पूछ कर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा की बोलती बंद करने वाले गौरव, अब उनके साथ जुगलबंदी करेंगे। 

बिहार मूल के महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता संजय निरुपम की नाराजगी कुछ दिनों से मुखर हो रही थी क्योंकि मुंबई की जिस लोकसभा सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं, वह महा विकास अघाड़ी में सीट बंटवारे में उद्धव ठाकरे की शिवसेना के पास है। उद्धव और उनकी पार्टी के विरुद्ध निरुपम लगातार बयानबाजी भी कर रहे थे। वैसे निरुपम को पत्रकारिता से राजनीति में उद्धव के पिता बाला साहेब ठाकरे ही लाए थे। संजय तब शिवसेना के मुखपत्र सामना के हिंदी संस्करण के संपादक होते थे, जब ङ्क्षहदी क्षेत्रों में अपनी पैठ बढ़ाने के मकसद से बाला साहेब ने उन्हें राज्यसभा भेजा। उसके बाद निरुपम राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन गए और अंतत: कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाने से ले कर मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष तक बनाया, पर अब जब गठबंधन राजनीति के दबाव में उनकी लोकसभा सीट पर संकट आया तो वह कांग्रेस को दिशाहीन बताते हुए चले गए। 

कांग्रेस ने निष्कासित करने की बात कही, लेकिन निरुपम का दावा है कि उन्होंने इस्तीफा दिया। मिलिंद देवड़ा की तरह निरुपम भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना में जा सकते हैं, जिसके हिस्से में महायुति में सीट बंटवारे में मुंबई की वह सीट आ रही है, जिससे वह चुनाव लडऩा चाहते हैं। सबसे दिलचस्प रहा मुक्केबाज विजेंद्र सिंह का दलबदल। ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतने वाले विजेंद्र सिंह हरियाणा पुलिस में डी.एस.पी. रहने के बाद 2019 में कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। किसान आंदोलन से लेकर महिला पहलवानों तक के मुद्दे पर वह मुखर रहे। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी नजर आए। उनके जाट बहुल मथुरा लोकसभा सीट से भाजपा सांसद हेमा मालिनी के विरुद्ध चुनाव लडऩे की चर्चाएं थीं। 

जाट समाज के ‘एक्स’ हैंडल के इस बाबत किए गए एक ट्वीट को हाल ही में विजेंद्र ने रिट्वीट भी किया था। वैसे विजेंद्र ने रिट्वीट तो राहुल गांधी के उस ट्वीट को भी किया था, जिसमें ‘प्रॉपेगंडा पापा’ संबोधन से प्रधानमंत्री पर कटाक्ष किया गया था। रात को उसे रिट्वीट कर सोए विजेंद्र सुबह जाग कर भाजपा में शामिल हो गए। तर्क भी गजब रहा सुबह जगा तो मुझे लगा कि गलत प्लेटफॉर्म पर हूं। सही जगह भाजपा है, इसलिए आ गया। विजेंद्र को नींद से जागने पर महसूस हुआ कि वह गलत प्लेटफॉर्म पर हैं, पर देश के बड़े उद्योगपति और कांग्रेस सांसद भी रह चुके नवीन जिंदल ने तो कांग्रेस छोडऩे का ट्वीट करने के चंद मिनट बाद ही भाजपा में शामिल होने का ट्वीट कर दिया। मानो भाजपा मुख्यालय में प्रवेश करते समय ही कांग्रेस छोडऩे का ट्वीट किया हो। वैसे देश की सबसे धनी महिला सावित्री जिंदल के पुत्र नवीन उस कोयला घोटाले में आरोपी भी रहे हैं, जिसे मनमोहन सिंह सरकार के बड़े भ्रष्टाचार में भाजपा गिनाती रही। अब वही नवीन अपनी पुरानी लोकसभा सीट कुरुक्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी हैं, जो ‘इंडिया’ गठबंधन में सीट बंटवारे में कांग्रेस के बजाय आप के हिस्से में चली गई। दलबदल का एक और दिलचस्प उदाहरण चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार का है। 

देश के बड़े किसान नेता रहे चौधरी छोटू राम के वंशज बीरेंद्र कभी राजीव गांधी के विश्वस्त माने जाते थे, पर हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में पिछडऩे के बाद वह 2014 में भाजपा में चले गए। वह केंद्र में मंत्री बनाए गए और पत्नी प्रेमलता विधायक। 2019 में वी.आर.एस. लेने.वाले आई.ए.एस. बेटे बृजेंद्र को हिसार से लोकसभा टिकट भी दे दिया गया, लेकिन अब जब भाजपा में भाव घटने लगा तो पूरा परिवार कांग्रेस में लौट गया। हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर का मामला तो और भी गजब है। 

राहुल के करीबी माने जाने वाले तंवर ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा से टकराव के बाद कांग्रेस छोड़ी, तृणमूल कांग्रेस में गए। जब लगा कि तृणमूल का कांग्रेस से गठबंधन हो सकता है, तो आप में चले गए। जब आप से भी कांग्रेस के गठबंधन की बात चली तो अंतत:भाजपा में चले गए, जिसके टिकट पर सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद जिस तरह पार्टी के ज्यादातर राज्यसभा सांसद निष्क्रिय हैं और एक मंत्री राजकुमार आनंद ने अचानक सरकार एवं आप से इस्तीफा दे दिया है, उसका भी यही संदेश है कि नीति और निष्ठा अब बीते जमाने की बात है। वर्तमान राजनीति का सच सिर्फ सत्ता है।-राज कुमार सिंह 
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News