‘कोरोना के बाद कैसी होगी दुनिया’

punjabkesari.in Wednesday, Dec 23, 2020 - 03:49 AM (IST)

कोरोना काल के बाद कैसी होगी दुनिया। सब कह रहे हैं कि दुनिया बदल जाएगी। लेकिन यह तो सब अभी से महसूस कर रहे हैं। असली सवाल है कि दुनिया संवर जाएगी या दुनिया बिगड़ जाएगी। दुनिया में राष्ट्रीय स्तर पर अलगाववाद बढ़ेगा या दुनिया एकजुट हो जाएगी। देश पास आएंगे या दूर छिटक जाएंगे। संरक्षणवाद पर जोर होगा या दुनिया खुल जाएगी। देशों को एक दूसरे देश के साथ की जरूरत पड़ेगी या यूं कहा जाए कि प्रधानमंत्री मोदी की तर्ज पर कि सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के आधार पर दुनिया आगे बढ़ेगी या आपस में खुद के निकालने में वक्त गुजरेगा। कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि नागरिकों का सशक्तिकरण बढ़ेगा या आर्टिफिशियल सर्विलांस के नाम पर सरकारें नागरिकों के बैडरूम तक पहुंच जाएंगी। यह कुछ सवाल हैं जो कोरोना का टीका आने के साथ ही फिर तेजी से उठने लगे हैं, बहस का विषय बनने लगे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र संघ का दावा है कि कोरोना के कारण बीस करोड़ से ज्यादा लोग बहुत ज्यादा गरीब हो जाएंगे। इसमें भारत के दो करोड़ तक लोग गरीबी रेखा की सीमा से नीचे आ सकते हैं। पिछले 15 सालों में भारत ने गरीब उत्थान की दिशा में बहुत काम किया है। दावा है कि सात करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी की सीमा रेखा से उबारा गया है लेकिन कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई। ( माइनस 24 फीसदी पहली तिमाही में और माइनस 7.5 फीसदी दूसरी तिमाही में ) जानकारों का कहना है कि पूरे साल की विकास दर भी माइनस में रह सकती है। कोरोना काल में भारत में करोड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। इसमें से बहुतों को रोजगार मिला है लेकिन करोड़ों अभी भी हाशिए पर ही हैं। भारत के साथ-साथ अन्य बहुत से विकासशील देशों का भी यही हाल रह सकता है। 

कहा जा रहा है कि जहां-जहां तानाशाह शासक हैं वहां-वहां लोगों की तकलीफें बहुत ज्यादा बढ़ी हैं। तानाशाहों ने भी सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए कोरोना का फायदा उठाया है लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद तानाशाहों की भूमिका बढ़ सकती है। जहां-जहां तानाशाह नहीं हैं वहां वहां भी सत्तापक्ष अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में लगा है। कहा जा रहा है कि कोरोना काल में सरकारें और ज्यादा निरंकुश हुई हैं, राज्यों की भूमिका घटाई गई है, सरकारों ने अपनी मर्जी से वायरस की आड़ में सख्त और एकतरफा फैसले लेने शुरू किए हैं। इस कारण भी गरीबों की संख्या में आगे चल कर और ज्यादा इजाफा होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। 

होटल रेस्तरां बंद होने से जंक फूड खाने की आदत में कमी आई है। इससे मोटापा और इससे जुड़ी बीमारियों में कमी आई है। जानकारों का कहना है कि अगर यह सिलसिला बना तो लोगों का भला ही होगा। लोग परिवार के साथ समय बिताने लगे हैं।  इससे आपसी मनमुटाव दूर हुए हैं, गिले-शिकवे दूर हुए हैं, लोग ज्यादा नजदीक आए हैं। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि ज्यादा समय घर में बिताने से आपस में पति-पत्नी के झगड़े भी बढ़े हैं और तलाक के मामलों में भी तेजी आई है। लेकिन कुल मिलाकर परिवार ज्यादा करीब आए हैं। यह कोरोना काल की सबसे बड़ी देन कही जा सकती है। जहां लोग एक दूसरे की जरूरत महसूस करने लगे हैं। बुजुर्गों की चिंता करने लगे हैं। अमरीका में तो पता चला कि कोरोना काल में बच्चों ने मां-बाप से और मां-बाप ने बच्चों से ज्यादा समय टैलीफोन पर या मोबाइल पर बात की। ज्यादा बार एक-दूसरे का हालचाल पूछा, एक-दूसरे को कोरोना से सावधान रहने के टिप्स बताए और जरूरी हिदायतें दीं। 

इसराईल के लेखक युवाल नोआ हरारी का कहना है कि सरकारों को महामारी के कारण नागरिकों के घर में घुसने का, उनकी जासूसी करने का, उनकी तमाम गोपनीय जानकारी हासिल करने का मौका मिल गया है। युवाल एक खतरनाक तस्वीर पेश करते हैं। वह कहते हैं कि अगर कोई सरकार तय करती है कि सभी नागरिकों को बायोमैट्रिक ब्रैसलेट पहनना होगा। इसकी निगरानी सरकार करेगी। इससे सरकार को पता चलेगा कि आपका तापमान कितना है, दिल की धड़कनों की क्या हालत है आदि-आदि। 

सरकार कहेगी कि वह तो ऐसा नागरिकों की भलाई के लिए कर रही है क्योंकि इससे सरकार को तबीयत के बारे में पता चल जाएगा और सरकार आपको राहत दे पाएगी। इससे संक्रमण को रोका जा सकेगा। लेकिन सरकार को यह भी पता चल जाएगा कि आप दिन भर में कहां-कहां गए, किस-किस से मिले और क्या-क्या काम किया। इसके अलावा सरकार जान पाएगी कि आप की भावनाएं क्या हैं, आप टी.वी. पर कौन-सा कार्यक्रम देखना ज्यादा पसंद करते हैं, आप टी.वी. पर किस नेता के आने और भाषण देने पर टी.वी. देखना बंद कर देते हैं या पूरा भाषण सुनते हैं, आप रिएक्ट कैसे करते हैं, किसी सरकारी घोषणा पर आपका रवैया क्या रहता है आदि-आदि। यानि सरकार को आसानी से अंदाजा हो जाएगा कि इस बार के चुनावों में आप उसको दोबारा चुनने जा रहे हैं या नहीं, अगर नहीं तो किसको वोट देने का इरादा रखते हैं यह बात भी सरकार को पता चल जाएगी। लेखक का कहना है कि एक तरह से आप की हर हरकत सरकार की नजर में रहेगी और आप एक तरह से आजाद होते हुए भी गुलाम हो जाएंगे। 

लेखक आगे कहते हैं कि आप कहेंगे कि यह सब तो कोरोना का टीका लगने के साथ ही खत्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा हो, जरूरी नहीं है। एक बार सरकार के हाथ में इतना बड़ा हथियार लग जाएगा तो वह भला क्यों इसे छोडऩा चाहेगी। 1948 में इसराईल ने आपातकाल की घोषणा की थी। इसके तहत प्रैस पर सैंसरशिप लगाई गई, पुङ्क्षडग बनाने के लिए लोगों की जमीनें जब्त की गईं। (पुङ्क्षडग की बात मजाक नहीं है)। 1948 की जगह अब 2020 आ गया है लेकिन इसराईल ने आजतक अधिकृत रूप से कभी घोषणा नहीं की है कि आपातकाल खत्म हो गया है। कागजों में यह अभी भी जारी है।-विजय विद्रोही


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