भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती आज

punjabkesari.in Wednesday, Dec 25, 2019 - 03:28 AM (IST)

कहां से शुरू करूं, उस अटल जी से जो राजनीतिक शुचिता के एकमात्र प्रतीक बनकर भारतीय राजनीति के आकाश पर किसी जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति जगमगा रहे हैं या उस कवि हृदय अटल जी से जिनकी कविताएं सुनकर दुष्कर पथ भी आलोकित हो उठता है। उस अटल जी से जो अजातशत्रु थे, वैचारिक भिन्नता के बावजूद आलोचक भी जिनके सामने नतमस्तक हो उठते थे या उस अटल जी से जो विश्वबंधुत्व के चिरदर्शन के साकार स्वरूप थे। 

मानव जीवन की एक अनिवार्यता है, यह कभी न कभी, कहीं न कहीं जाकर रुकता है। इनमें कुछ लोग ऐसे होते हैं जो काल के महासागर में कहीं विलीन हो जाते हैं, इनमें कुछ ऐसे भी महामानव होते हैं जो अपने जीवनकाल में ही एक मिथक बन जाते हैं। करोड़ों जीवन जिनके महान कृत्यों से सुख और शांति प्राप्त करते हैं, करोड़ों चेहरों पर जो मूल्यवान मुस्कान देते हैं। जिनके महान कार्यों को सम्पूर्ण राष्ट्र नमन करता है और जो जीवित रहते ही प्रात: वंदनीय हो जाते हैं। महामानव अटल बिहारी वाजपेयी भी उन श्रेष्ठ महापुरुषों में से एक थे।

आज से लगभग आठ दशक पूर्व जब उन्होंने अपनी जीवन-यात्रा की शुरूआत की थी तब कोई नहीं जानता था कि वे अपने जीवन के कत्र्तव्य पथ पर चलते हुए एक दिन उस मंजिल तक पहुंच जाएंगे जहां पहुंचकर मनुष्य साधारण मानव से महामानव बन जाता है। जहां जीवन इतना विस्तारित हो जाता है कि वह स्वयं की सीमा लांघकर चरम की सीमा में प्रवेश कर जाता है। जहां जीवन अपना नहीं रह जाता बल्कि सृष्टि के समस्त प्राणियों के लिए समर्पित हो जाता है। अटल जी ने उसी चरम सीमा को स्पर्श किया। 

वे श्रेष्ठतम कविता करते थे लेकिन उन्होंने कभी कवि नहीं बनना चाहा। कविता उनके लिए मां सरस्वती का वरदान थी जो उनके होंठों से स्वत: फूट पड़ती थी इसलिए उन्होंने अपनी कविताओं को अपने हृदय की अनकही भावनाएं व्यक्त करने का माध्यम बना लिया, वे कानून के एक बहुत अच्छे विद्यार्थी थे परन्तु एक वर्ष कानून की पढ़ाई करने के बाद उसे छोड़ दिया क्योंकि राष्ट्र उन्हें आवाज दे रहा था। राजनीति भी उनके लिए किसी पद तक पहुंचने का मार्ग नहीं रही। पद की परवाह उन्हें थी भी कहां, उन्होंने अपने लिए कुछ चाहा ही कब। उन्होंने जब यह देखा कि कोई व्यक्ति राष्ट्र के साथ अन्याय कर रहा है तो उन्होंने विरोध करने में कोई कोताही नहीं की, चाहे वह व्यक्ति कोई भी रहा हो और जब उन्हें यह लगा कि सत्ता ने देश के लिए अच्छा कार्य किया है तो सत्ता चाहे जिसकी भी रही हो, उसकी प्रशंसा भी खुले दिल से की।

जो जितना ऊंचा होता है
उतना ही एकाकी होता है
हर भार को स्वयं ही ढोता है। 

उन्होंने कभी सत्ता या पद के लिए अपने विचारों को परिवर्तित करने का प्रयत्न नहीं किया। उन्होंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि राजनीति के कारण नैतिक शुचिता और मर्यादा भंग न हो बल्कि उन्होंने नैतिकता एवं मर्यादा को अपनी राजनीति का एक भाग माना। राम जन्मभूमि आंदोलन के समय रथयात्रा के लिए निकल रहे अडवानी जी से उन्होंने बस इतना ही कहा था-‘‘ध्यान रखिएगा, आप अयोध्या जा रहे हैं लंका नहीं।’’ इस एक लाइन में उन्होंने वह सब कह दिया था जो इस आंदोलन की मर्यादा की रक्षा के लिए आवश्यक था। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने राष्ट्र के विकास के लिए अपना सारा जोर लगा दिया। विश्वशांति के प्रति उनकी असीम निष्ठा का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि कारगिल युद्ध के बाद भी वे पाकिस्तान से शांति स्थापित करने के लिए स्वयं बस लेकर लाहौर तक गए। 

2018, जून में वे बहुत बीमार पड़ गए उन्हें एम्स लाया गया। किडनी में संक्रमण के चलते वे लगभग दो महीने 11 जून को एम्स में भर्ती कराए गए-एम्स में मृत्यु से संघर्ष करते रहे परन्तु मृत्यु ही तो शाश्वत सत्य है, चिर सखी जो एक न एक दिन प्रत्येक आत्मा को अपना संगी बना लेती है। आखिरकार 16 अगस्त, 2018 को उस चिरसंगी ने, अटल जी को अपने साथ लेकर अनंत की ओर प्रस्थान किया, सम्पूर्ण देश गहन शोक में डूब गया। भारतीय राजनीति के ‘शिखर पुरुष’ भारत रत्न अटल जी मृत्यु के साथ अपने अंतिम विहार पर निकल गए। जीवन भर काल के कपाल पर गीत लिखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी आखिरकार उसी काल के संगी बन गए। करोड़ों-करोड़ों आंखें आंसुओं से आप्लावित होकर धुंधली हो गईं। करोड़ों हृदय भावनाओं के प्रवाह से तिरोहित होकर चीत्कार कर उठे परन्तु सदैव अपने देशवासियों की पीड़ा के संगी रहने वाले अटल जी मौन हो गए। 7 दिनों के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र शोक के सागर में डूब गया। 19 अगस्त को उनकी अस्थियां मां गंगा के आंचल में प्रवाहित कर दी गईं। इस प्रकार एक महान ज्योति अनंत काल के लिए प्रकृति की गोद में समा गई।

जिंदगी के कुछ महत्वपूर्ण पड़ाव उनका जन्मदिन 25 दिसम्बर को देश भर में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका संदेश है सरकारी कामकाज आसान हो। सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए, 23 दिन जेल में रहे। सन् 1954 में कश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी संग अनशन पर बैठे। सन् 1957 में यू.पी. के बलरामपुर से चुनाव जीत कर पहली बार सांसद बने। सन् 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। 16 अगस्त, 2018 को इस संसार को छोड़कर महाप्रयाण किया। वहीं आज 25 दिसम्बर को स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय की जयंती पूरा देश मना रहा है।-राजकुमार गुप्ता


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