ओबामा की भारत यात्रा

punjabkesari.in Monday, Jan 26, 2015 - 02:03 AM (IST)

(नलिन कोहली) विश्व के सबसे पुराने और सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र के राष्ट्रपति के लिए किसी सार्वजनिक समारोह के लिए अपेक्षाकृत कुछ ही समय पूर्व मिला हुआ निमंत्रण स्वीकार करना सामान्य बात नहीं। 2015 की गणतंत्र दिवस परेड पर मुख्य अतिथि बनने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण को राष्ट्रपति ओबामा द्वारा दोनों नेताओं की मीटिंग के कुछ ही महीनों के अंदर स्वीकार करना अपने आप में  ऐतिहासिक बात है। यह भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं कि दोनों नेताओं के बीच अगली शिखर  वार्ता 6 महीने से भी पूर्व होने जा रही है।

इस बारे में बार-बार प्रस्तुत की जा रही उपमाओं की कोई कमी नहीं कि भारत और संयुक्त राज्य अमरीका को कौन-सी बात एक-दूसरे की ओर खींच रही है। दोनों ही राष्ट्र सफल और कार्यशील लोकतंत्र हैं। लोकतांत्रिक परम्पराओं और जीवन मूल्यों की परवरिश करने के प्रति दोनों ही देश गहरी और सांझी प्रतिबद्धता रखते हैं। 
 
इसके अतिरिक्त भारत और संयुक्त राज्य अमरीका जैसे बहु-सांस्कृतिक लोकतंत्र अपनी आंतरिक प्रवृत्ति के कारण न केवल अनेकता का सम्मान ही करते हैं बल्कि इसका जश्न भी मनाते हैं। वे दूसरों के लिए, खासतौर पर उन राष्ट्रों के लिए जो आंतरिक टकराव पर काबू पाना चाहते हैं, अनुकरणीय मॉडल भी बने हुए हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जिस ‘‘अरब की बसंत’’ के बारे में बहुत जोर-शोर से प्रचार किया गया था वह लोकतंत्र के उत्सव  के रूप में प्रफुल्लित नहीं हो पाई। विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिनिधि सरकारें अरब जगत के लोकतंत्रों जैसी ही कमजोर हैं। जो समाज अपनी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और जड़ों का पोषण करना चाहते हैं तथा इन्हें मजबूत बनाना चाहते हैं उनके लिए भारत और संयुक्त राज्य आशाद्वीप हैं। 
 
लोकतंत्र की बातों के पार भी दोनों देशों की बीच मजबूत आर्थिक और रणनीतिक एजैंडा मौजूद है, जो अपार संभावनाओं से भरा हुआ है। भारत ऐसे आर्थिक अवसर प्रस्तुत कर रहा है जो वर्तमान में विश्व भर में अनूठे हैं। प्रधानमंत्री मोदी इसी तथ्य को सार रूप में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हुए बार-बार इस बात पर बल देते हैं कि भारत में तीन ‘डी’ (डैमोक्रेसी, डैमोग्राफी एंड डिमांड यानी लोकतंत्र, विशाल आबादी और उत्पादों के लिए भारी मांग) मौजूद हैं जो भारत को एक उत्साहपूर्ण और निवेश लक्ष्य बनाते हैं। वर्तमान में वैश्विक और साथ ही अनेक देशों का आर्थिक परिदृश्य बहुत निराशाजनक है, ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था का उत्थान हर किसी के लिए शुभ समाचार है। 
 
वर्तमान में बूंद-बूंद करके जो निवेश आ रहा है इसे भविष्य में एक उमड़ती जलधारा का रूप देने के लिए आधारभूत आवश्यक तैयारी के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने अर्थपूर्ण पहलकदमियां की हैं। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ ऐसी ही पहलकदमियां हैं जो संयुक्त राज्य सहित विभिन्न देशों से निवेश की शानदार फसल हासिल करने के लिए जरूरी पूर्व शर्तें हैं। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने जब स्विट्जरलैंड के दावोस नगर में विश्व आर्थिक फोरम में भारत की सफलता की इस कहानी तथा मोदी सरकार की पहलकदमियों का उल्लेख किया तो इसका बहुत जबरदस्त स्वागत हुआ। 
 
बीमा और रक्षा क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता खोलने के लिए प्रतिबंध हटाए जाने से ऐसे उत्साहजनक अवसर पैदा हुए हैं जिसे दोनों देशों की कारोबारी इकाइयां परस्पर लाभ के लिए प्रयुक्त कर सकती हैं। परमाणु  तथा गैर-अक्षय क्षेत्रों में ऊर्जा सहयोग, जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के दौरान आपसी मतभेदों को दूर करना, भारत की वैश्विक आकांक्षाएं  तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार, क्षेत्र की सुरक्षा चुनौतियां तथा आतंकवाद जैसे मुद्दे एजैंडे पर आने की  उम्मीद है। 
 
अपनी भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ओबामा ने स्पष्ट शब्दों में यह संदेश दिया था कि पाकिस्तान में आतंकी शरण स्थलियां कदापि स्वीकार्य नहीं हैं। हाल ही में पाकिस्तानी सत्ता तंत्र ने स्वछंद घूम रहे विभिन्न आतंकी संगठनों  पर आनन-फानन में जो प्रतिबंध लगाया वह भी अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के कड़े संदेश का ही परिणाम था। विस्तृत दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को  ‘अच्छे आतंकवादी’ और ‘बुरे आतंकवादी’ में विभेद करने की पाकिस्तान की पागलाना प्रवृत्ति और दूरदृष्टिविहीन नीति की बंधक नहीं बनने दिया जा सकता। 
 
ऐन जिस समय राष्ट्रपति ओबामा प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारतीय गणतंत्र दिवस परेड में रंगों की अनूठी छटा तथा देशभर की झांकियों को साक्षात्कार निहार रहे होंगे, इसी दौरान भारत-अमरीका संबंधों की गाड़ी  कुछ अधिक रफ्तार और अधिक ऊर्जा ग्रहण कर चुकी होगी। दोनों देशों के परस्पर लाभ हेतु इनके संबंधों में नए प्राण फूंकने का इरादा व्यक्त करने के लिए दोनों नेता बधाई के पात्र हैं। 

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