कुप्रबंधन, नशाखोरी और मारामारी की शिकार बन रही हैं भारतीय जेलें

punjabkesari.in Tuesday, Oct 18, 2016 - 02:12 AM (IST)

हमारी जेलें वर्षों से घोर कुप्रबंधन तथा प्रशासकीय निष्क्रियता की शिकार हैं जो क्रियात्मक रूप से अपराधियों द्वारा अपनी अवैध गतिविधियां चलाने का ‘सरकारी हैडक्वार्टर’ बन गई हैं तथा उन्होंने जेलों में नशे व अन्य  प्रतिबंधित चीजें लाने और अपना धंधा चलाने के अनेक तरीके ढूंढ लिए हैं परंतु  अधिकांश जेलों में ‘बॉडी स्कैनर’ न होने के कारण जेल अधिकारियों को प्रतिबंधित चीजों का पता लगाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

दूध के डिब्बों, छडिय़ों, जूतों के सोल, गूदा निकाली हुई सब्जियों, अंडरगार्मैंट्स में बनाई गुप्त जेबों और यहां तक कि शरीर में छुपा कर नशीले  पदार्थ जेलों के अंदर लाए जा रहे हैं। कुछ समय पूर्व पंजाब में एक कैदी अपनी गुदा में छिपा कर मोबाइल ले गया था पर ठीक से चल न पाने के कारण पकड़ा गया। 

जेलों में बंद अपराधी गिरोहों की हाल ही की चंद करतूतें निम्र में दर्ज हैं : 
* अगस्त को रोहिणी जेल में दो गुटों के लगभग 40 कैदियों के बीच वर्चस्व के प्रश्र पर भयानक गैंगवार में जम कर हुई मारपीट और ‘ब्लेड बाजी’ के चलते 17 से अधिक कैदी गंभीर रूप से घायल हो गए। किसी कैदी का कान कट गया तो किसी के शरीर के अन्य भागों पर चोटें आईं।

* 17 अगस्त को सहारनपुर जिला जेल में हुई गैंगवार में जेल में बंद एक कैदी ने दूसरे गिरोह के लिए काम करने वाले एक कैदी की हत्या कर दी। 

* 09 अक्तूबर को बुड़ैल जेल में एस.टी.डी. से कॉल करने को लेकर 2 कैदी गुटों में लगभग आधा घंटे तक चली भिड़ंत के दौरान दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर लाठियों और डंडों का खुल कर इस्तेमाल किया। 

* 10 अक्तूबर को भटिंडा सैंट्रल जेल में बंद एक कैदी पर एक अन्य कैदी ने कुछ लोगों के साथ मिल कर जानलेवा हमला कर दिया।  

* अक्तूबर को उत्तर प्रदेश की गोरखपुर जिला जेल के अंदर प्रतिबंधित वस्तुओं की तलाशी के दौरान 1&0 मोबाइल फोन जब्त किए गए। इसी दौरान पुलिस की कथित पिटाई से सूरजभान नामक एक कैदी की मृत्यु के बाद जेल में बंद कैदियों के एक गिरोह ने ईंटों से जेल अधिकारियों पर हमला कर दिया जिससे जेल के 9 गार्ड घायल हो गए।

* गार्डों को कैदियों ने दिन भर बंधक बनाकर रखा। कैदियों पर काबू पाने के लिए पुलिस को आंसू गैस और फायरिंग का सहारा लेने के अलावा जेल में पानी और बिजली की सप्लाई भी बंद करनी पड़ी। 

*  अक्तूबर को ही आदर्श केंद्रीय जेल, बेऊर (बिहार) में पटना के गांधी मैदान और गया के ब्लास्ट कांडों में संलिप्त आतंकवादियों ने हमला करके न केवल अनेक सुरक्षा कर्मियों को घायल कर दिया बल्कि बाद में जब दूसरे सुरक्षा कर्मियों ने उन पर सख्ती बरतने की कोशिश की तो उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। 

* 16 अक्तूबर को केंद्रीय जेल फतेहपुर में अनेक मोबाइल फोन बरामद हुए। उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट है कि प्रशासन द्वारा जेलों के कार्यकलाप में सुधार लाने के तमाम दावों के बावजूद वहां नशीले पदार्थों एवं अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी से लेकर मार-काट, हिंसा और यहां तक कि जेल अधिकारियों पर हमले लगातार जारी हैं। 

परंतु जब तक जेलों में सुरक्षा प्रणाली अभेद्य नहीं बनाई जाती, वहां का वातावरण और अनुशासन नहीं सुधारा जाता, प्रशासन को चुस्त एवं  जवाबदेह नहीं बनाया जाता तब तक वहां नशीले पदार्थों की तस्करी, आत्महत्याएं, गैंगवार, बलात्कार और अन्य अपराध होते ही रहेंगे।

इसे रोकने के लिए प्रशासन को जेलों में बुनियादी ढांचे की त्रुटियों को दूर करने और जेलों में होने वाली अप्रिय घटनाओं के लिए स्टाफ की जिम्मेदारी तय करने तथा कत्र्तव्य निर्वहन में ढील बरतने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध भी उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 

समाज को अपराध मुक्त रखने, अपराधियों को शिक्षाप्रद सजा देकर सुधारने व एक उदाहरण पेश करने में जेलों का महत्वपूर्ण स्थान है और ऐसा करके हमारे देश का जेल प्रशासन एक स्वस्थ समाज की रचना में बड़ा योगदान दे सकता है।      


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