‘शिवसेना और भाजपा में’ लगातार ‘बढ़ रही कटुता’
punjabkesari.in Wednesday, Sep 20, 2017 - 02:09 AM (IST)
1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ और श्री वाजपेयी ने एन.डी.ए. के मात्र तीन दलों के गठबंधन को विस्तार देते हुए 26 दलों तक पहुंचा दिया।
श्री वाजपेयी ने अपने किसी भी गठबंधन सहयोगी को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया परंतु उनके सक्रिय राजनीति से हटने के बाद से अब तक इसके कई गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए हैं। अब यह गठबंधन आधा दर्जन से भी कम दलों तक सीमित हो गया है तथा इन दिनों 25 वर्षों से इसका महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिवसेना भी नाराज है। 24 जून, 2013 को शिवसेना सुप्रीमो श्री उद्धव ठाकरे ने भाजपा नेतृत्व को अपने सहयोगियों का मान रखने की नसीहत देते हुए कहा था कि ‘‘मित्र वृक्षों की तरह नहीं बढ़ते, उनका पोषण करना होता है। यदि कोई व्यक्ति उस वृक्ष की शाखाओं को ही काट देगा तो उसे सही मित्र कैसे मिल पाएगा।’’
वर्षों तक ‘शिवसेना’ के जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाती रही भाजपा के तेवर 2014 के चुनावों के बाद बदले और इसने ‘शिवसेना’ को उसका पसंदीदा मंत्रालय नहीं दिया। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र की फडऩवीस सरकार में शिवसेना के 12 मंत्री हैं जिनमें 5 कैबिनेट दर्जे के हैं और केंद्र की मोदी सरकार में शिवसेना का केवल एक मंत्री है और इस पर वह कई बार नाखुशी जता चुकी है। ऐसी ही बातों के चलते इस समय भाजपा और सेना में कटुता शिखर पर पहुंच चुकी है और ‘शिवसेना’ महाराष्टï्र के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा नेतृत्व का ध्यान इसकी चूकों की ओर लगातार दिलाती आ रही है। इसी कड़ी में शिवसेना ने हाल ही में पितृ पक्ष में बुलेट ट्रेन के शिलान्यास तथा सरदार सरोवर बांध के लोकार्पण की भारी आलोचना की है।
गत 20 वर्षों से शिवसेना तथा भाजपा मुम्बई महानगरपालिका चुनाव एक साथ लड़ती आ रही थीं परंतु इस वर्ष के शुरू में सम्पन्न चुनावों में दोनों दलों ने आमने-सामने आकर न सिर्फ मुम्बई बल्कि समूचे महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव अलग-अलग लड़े जिसमें शिवसेना का वर्चस्व रहा। दोनों दलों में दरार यहां से चौड़ी होनी शुरू हुई और परिणामस्वरूप भाजपा से नाराजगी जताने के लिए शिवसेना नेतृत्व भाजपा पर आरोपों के गोले दागने लगा। शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने तो यहां तक कहा कि ‘‘शिवसेना के 50 वर्षों में 25 वर्ष गठबंधन की वजह से बेकार हो गए।’’
यही नहीं शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राऊत ने 10 जून को कहा कि ‘‘भाजपा शिवसेना को समाप्त करने का प्रयास कर रही है।’’ पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर भी 3 सितम्बर को संजय राऊत ने कहा कि ‘‘राजग मृतप्राय है और भाजपा को इसकी याद तब आती है जब इसे समर्थन की जरूरत पड़ती है।’’ आपसी कटुता और मनमुटाव के कुछ इस तरह के माहौल में महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की गठबंधन सरकार के गठन के बाद से ही दोनों दलों में उठापटक जारी है तथा एक तरह से वहां शिवसेना विरोधी दल की भूमिका ही निभा रही है।
नवीनतम घटनाक्रम में शिवसेना ने देवेंद्र फडऩवीस सरकार को एक और अल्टीमेटम देते हुए समर्थन वापस लेने की धमकी दी है। सोमवार को शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने पार्टी के विधायकों और सांसदों से भेंट की जिसके दौरान निर्वाचित प्रतिनिधियों ने कहा कि पार्टी द्वारा समर्थन वापस ले लेने का यही उचित समय है। बैठक के बाद संजय राऊत ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम इस सरकार का क्या करें? शिवसेना एक निर्णय के अत्यंत निकट है। इंतजार कीजिए और देखिए। ठाकरे सही समय पर सही निर्णय लेंगे और वह समय अत्यंत निकट आ गया है। बढ़ती पैट्रोल की कीमतों और महंगाई के ‘पाप’ में शिवसेना भागीदार नहीं बन सकती।’’
अब इसका अगला कदम क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना स्पष्टï है कि दोनों दलों के बीच कटुता लगातार बढ़ती ही जा रही है जो निश्चय ही दोनों दलों के हित में नहीं। अत: जितनी जल्दी दोनों दल आपस में मिल-बैठ कर अपने मतभेद दूर कर सकें दोनों के लिए उतना ही अच्छा होगा। भाजपा नेतृत्व को भी सोचना होगा कि इस तरह पुराने साथी खोना उसके और राजग के लिए अहितकर ही सिद्ध होगा। —विजय कुमार