चीन के अलगाववादी-आतंकवादी नेता को वीजा देना क्या भारत सरकार की भूल?

punjabkesari.in Monday, Apr 25, 2016 - 01:42 AM (IST)

भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने की मांग के रास्ते में चीन के अड़ंगा डालने के कुछ दिन बाद भारत ने भी चीन को उसी की भाषा में जवाब दे दिया है। 

 
भारत ने अमरीका की संस्था ‘इनीशिएटिव्स फार चाइना’ द्वारा धर्मशाला में 28 अप्रैल से 1 मई तक चीन में लोकतंत्र बहाली के विषय में होने वाली कांफ्रैंस में भाग लेने के लिए ‘वल्र्ड उइगुर कांग्रेस’ (डब्ल्यू.यू.सी.) के सचिव डोल्कुन ईसा को आने की इजाजत दे दी है। 
 
इस सम्मेलन में अनेक असंतुष्टï चीनी नेताओं के अलावा दलाई लामा को भी निमंत्रित किया गया है तथा यहां डोल्कुन ईसा की दलाई लामा व अन्य कई असंतुष्टï चीनी नेताओं से भेंट भी हो सकती है। 
 
डोल्कुन ईसा को 1990 के दशक से जर्मन सरकार ने शरण दे रखी है। ‘वल्र्ड उइगुर कांग्रेस’ चीन से निर्वासित उइगुर मुसलमानों का एक संगठन है और चीनी नेताओं का मानना है कि उइगुर नेता मुसलमानों की बहुसंख्या वाले शिनजियांग प्रांत में आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं।
 
मूल रूप से तुर्की के मुस्लिम समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले एक करोड़ के लगभग उइगुर लोग चीन के मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहते हैं और शिनजियांग प्रांत को ये ‘पूर्वी तुर्किस्तान’ कहते हैं जबकि चीन में इस नाम के इस्तेमाल पर रोक है। चीन का मानना है कि शिनजियांग क्षेत्र में आतंकवाद के पीछे ईसा और उसके साथियों का ही हाथ है। 
 
चीन सरकार ने 1990 के दशक में शिनजियांग प्रांत में बम धमाकों की घटनाओं के लिए बार-बार ईसा की तरफ उंगली उठाई है और ‘वल्र्ड उइगुर कांग्रेस’ को वे एक पृथकतावादी संगठन मानते हैं जबकि उइगुर लोग चीनियों पर उनके अधिकारों का दमन करने का आरोप लगाते हैं। 
 
उइगुर मुसलमानों ने चीन सरकार द्वारा शिनजियांग प्रांत में व्यापक स्तर पर हान समुदाय के लोगों को बसाने की कोशिशों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ रखा है तथा अपनी मांगों को लेकर ये लोग कई वर्षों से चीन सरकार के विरुद्ध रोष व्यक्त करते आ रहे हैं। 
 
चीनी नेताओं ने 21 अप्रैल को ईसा के भारत दौरे पर ङ्क्षचता व्यक्त करते हुए कहा था कि वह एक ‘आतंकवादी’ है जिसके विरुद्ध इंटरपोल ने रैड कॉर्नर नोटिस जारी कर रखा है और उसे न्याय की गिरफ्त में लाना सभी देशों का उत्तरदायित्व है। कई देशों की सीमा पर हिरासत में रह चुके डोल्कुन ईसा के विरुद्ध रैड कार्नर नोटिस के कारण ही 2009 में उसे कोरिया में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। 
 
ईसा का कहना है कि उसे भारत से प्यार है और वह भारत आना चाहता है। उसे भारत सरकार से इलैक्ट्रानिक वीजा प्राप्त है लेकिन अपनी सुरक्षा के दृष्टिïगत सिवाय यूरोपीय संघ के देशों के, उसे हर जगह सावधान रहना होता है। 
 
चीन ने भी डोल्कुन के भारत आने पर लगभग वैसी ही प्रतिक्रिया दी है जैसी भारत ने मसूद पर प्रतिबंध को लटकाने पर चीन को दी थी। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि डोल्कुन एक आतंकवादी है। उसके खिलाफ चीनी पुलिस और इंटरपोल का रैड कार्नर नोटिस जारी है। उसे न्याय के दायरे में लाना सभी देशों की जवाबदेही है।
 
इसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप का कहना है कि हमने भी मीडिया की खबरों को देखा है और विदेश मंत्रालय तथ्यों का पता लगाने का प्रयास कर रहा है।
 
‘जैसे को तैसा’ कहावत से प्रेरित ऐसे निर्णय से कुछ समय के लिए आत्मसंतोष तो प्राप्त किया जा सकता है। अगर भारतीय नेताओं ने किसी सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत यह पग उठाया है तो भी इसके परिणाम संतोषजनक हो सकते हैं, परंतु अभी तक ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है। वैसे भारतीय रणनीति अधिकतर कभी ठंडी-कभी गर्म रही है जिसके फलस्वरूप भारत अपने प्रयासों को खुद ही विफल करता रहा है।
 
कुछ लोगों का कहना है कि इन दिनों भारत में चल रहे चुनावी मौसम के दृष्टिगत शायद हमारे नेताओं ने अपने इस पग से कुछ चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद लगा रखी हो। 
 
सर्वविदित है कि भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती किसी भी देश की तुलना में अधिक मजबूत है और इन दोनों की समन्वित चुनौती का सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टियों से जवाब देना चाहिए। यदि भारत सरकार के पास इसके लिए कोई रोड मैप है तभी वह ईसा को भारत बुलाने जैसा ‘ठेंगा’ चीन सरकार को अवश्य दिखाए क्योंकि कूटनीति तभी सफल हो सकती है यदि इसके पीछे सरकार का दृढ़ निश्चय तथा सेना की पूर्ण तैयारी का ‘बल’ हो।
 

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