स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद भी ‘भेदभाव का शिकार दलित भाईचारे के लोग’

punjabkesari.in Saturday, Jun 27, 2015 - 02:26 AM (IST)

स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद भी देश में ऊंच-नीच व जात-पात आधारित भेदभाव के प्रमाण अक्सर मिलते रहते हैं। हाल ही में दलितों पर हमलों तथा उनसे भेदभाव व ईष्र्या के निम्र चंद और मामले सामने आए हैं : 

* 28 अप्रैल को महाराष्ट में उस्मानाबाद के अंसुरदा गांव में दलित समुदाय से संबंधित सभी महिलाओं से छेड़छाड़ को लेकर हुए विवाद के बाद उच्च जातीय लोगों ने गांवों की समूची दलित बिरादरी का सामाजिक बहिष्कार कर दिया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी कर दी। 
 
उन्होंने कुछ स्थानों पर एक विशेष रंग के झंडे लहरा दिए जिसका मतलब था कि उन स्थानों से दलित दूर ही रहें। सवर्ण दुकानदारों ने न सिर्फ उन्हें जीवनोपयोगी वस्तुएं बेचनी बंद कर दीं बल्कि उन्हें सामुदायिक नलों से पानी भरने से भी रोक दिया और अब उन्हें पानी लेने रोज 20 कि.मी. जाना पड़ता है। 
 
* 11 जून को राजस्थान के सीकर जिले के दातारामगढ़ गांव के ‘गंडकिया की ढाणी’ में सवर्ण जाति के 50-60 लोगों ने भूमि के एक टुकड़े पर विवाद को लेकर अनेक दलित परिवारों पर हमला करके उनकी झोंपडिय़ों को आग लगा दी। इसके परिणामस्वरूप 9 लोग घायल हो गए।
 
* 13 जून को मध्यप्रदेश में छतरपुर जिले के गणेशपुरा गांव में हैंडपम्प से पानी भर रही एक दलित युवती की छाया वहां से गुजर रहे पप्पू यादव नामक एक दबंग पर पड़ गई। इस पर दबंग और उसके परिवार के सदस्यों ने मिल कर किशोरी को बुरी तरह पीट डाला। दबंग के पारिवारिक सदस्यों ने दलित परिवार को यह धमकी भी दी कि यदि उनकी बेटी दोबारा हैंडपंप के निकट नजर भी आ गई तो उसकी जान की खैर नहीं। 
 
* 18 जून को आई.आई.टी. का परिणाम घोषित हुआ तो उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के निकटवर्ती गांव ‘रेहुआ लालगंज’ के अत्यंत निर्धन दलित परिवार से संबंध रखने वाले दिहाड़ीदार मजदूर धर्मराज के 2 बेटों ब्रजेश तथा राजू ने इसमें 167वां और 410वां स्थान प्राप्त करके इलाके में धूम मचा दी। 
 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 21 जून को लखनऊ में उन्हें सम्मानित भी किया परंतु भारी संघर्ष करके इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करने वाले दोनों भाइयों को तब भारी दुख पहुंचा जब अपने ही गांव पहुंचने पर उनकी खुशी में शामिल होने की बजाय गांव के कुछ दबंगों ने उनके परिवार के सदस्यों पर पथराव कर दिया जिससे उनके परिवार के कुछ सदस्यों को चोटें भी पहुंचीं और उनकी सुरक्षा के लिए अधिकारियों को पुलिस तैनात करनी पड़ी।
 
ब्रजेश का कहना है कि बचपन से ही वे उच्च जातीय लोगों की ईष्र्या का शिकार हो रहे हैं। सवर्ण लोगों ने तो इनके शौच जाने का रास्ता भी बंद कर दिया था क्योंकि वे पढ़ाई में उच्च जातीय बच्चों से आगे रहते थे। 
 
दोनों भाई अन्य विषयों के साथ-साथ अंग्रेजी और संस्कृत में भी अत्यधिक तेज हैं। इनके दादा शिवनाथ के अनुसार 2005 में जब ब्रजेश 5वीं कक्षा में पढ़ता था तो उसने संस्कृत के अध्यापक को किसी वाक्य का गलत अनुवाद बताने पर टोक दिया था जिस पर अध्यापक ने उसे बुरी तरह पीटा था। 
 
* 18 जून को तमिलनाडु छुआछूत निवारण मोर्चा ने नागरकोइल जिले के पुलिस अधीक्षक को दिए एक ज्ञापन में आरोप लगाया है कि जिले के पद्मनाभपुरम स्थित राजेंद्र प्रसाद नामक एक दलित जब मंदिर में माथा टेकने जा रहा था तो उच्च जाति के लोगों ने उसे रोक दिया व गालियां निकालीं।
 
राजेंद्र प्रसाद को अपमानित करने के बाद दबंगों ने उसके घर जाकर उसकी पत्नी और बच्चों को भी गालियां निकालीं, घर का सामान तोडफ़ोड़ दिया और राजेंद्र प्रसाद तथा उसके परिवार के सदस्यों को पीटा। 
 
दलितों से सवर्ण लोगों द्वारा भेदभाव के ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं जो संकेत  देते हैं कि आज भी देश में छुआछूत का महारोग फैला हुआ है व तथाकथित उच्च जातियों के हाथों दलित, सर्वहारा वर्ग को लांछित, अपमानित व पीड़ित होना पड़ रहा है और कितनी ही प्रतिभाएं खिलने से पहले ही मसली जा रही हैं। 
 
हमारे देश की कानून-व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहे इस रोग को दूर करने के लिए यदि कठोर हाथों से कार्रवाई न की गई तो देश में विद्वेष बढ़ेगा और सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।
 

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