अंतर्मन में महसूस होने वाली सफलता ही सबसे महत्वपूर्ण

punjabkesari.in Thursday, Jan 18, 2018 - 06:03 PM (IST)

सफल कौन है? वह सामाजिक कार्यकर्ता जो गांव के बच्चों को शिक्षा देने का लक्ष्य पा लेता है या वह व्यक्ति जो लाखों-करोड़ों का बिजनैस और ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा हो, वह क्लर्क जो अपने लिए घर बनाकर और बच्चों की शादियां कर सारे कामों से निवृत्त हो चुका है या वह विद्यार्थी जिसने आई.ए.एस. की परीक्षा पास की है या फिर वह खिलाड़ी या बिजनैसमैन जो एक सफलता के बाद भी दूसरी सफलता के लिए बेचैन रहता है। हर व्यक्ति के लिए सफलता के मायने अलग-अलग होते हैं।

तो फिर पूर्ण सफलता क्या है? इस शब्द को मनोवैज्ञानिक, व्यवहार वैज्ञानिक, दार्शनिक, धर्म, समाज वैज्ञानिक, मानवशास्त्री, प्रेरक गुरु सभी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हैं। समाज विज्ञान इसे सिर्फ बोध की स्थिति बताता है। समाज वैज्ञानिकों के अनुसार, सफलता एक सोच है, एक अवधारणा। जो उसे महसूस करने वाले पर निर्भर करती है। सफलता वह स्थिति है, जहां व्यक्ति स्वयं को देखना चाहता है। मनोवैज्ञानिक डा. निक एरिजा कहते हैं, ‘‘किसी चीज को पाना आंतरिक स्थिति है न कि बाहरी। यह सच है कि बाहरी चीजें आंतरिक स्थिति को प्रेरणा देती हैं, लेकिन अंतत: जो सफलता अंतर्मन में महसूस होती है, वही सबसे महत्वपूर्ण है।’’ 

कुछ लोग सफलता और धन को एक मान लेते हैं। अर्थशास्त्री जॉन माक्र्स रुपयों के बल पर हर ख्वाहिश पूरी कर लेने की ताकत रखने वाले को सफल मानते हैं। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है कि सामान्य के बीच अपनी योग्यता को साबित करना ही सफलता है। वहीं दुनिया भर के साधु-महात्माओं ने उन व्यक्तियों को सफल माना है, जो सांसारिक चीजों से ऊपर उठकर सोचते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक इसका संबंध आनुवांशिक गुण से बताते हैं। उनका कहना है कि सफलता प्राप्त करने का गुण आनुवांशिक होता है। व्यक्ति में पहले से सफलता प्राप्त करने का गुण मौजूद रहता है, जो उसे माता-पिता से मिलता है। लैलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमैंट के संस्थापक शेफस्काई इस विचार को सिरे से खारिज करते हैं। वह कहते हैं, ‘‘सफल व्यक्तियों का इतिहास इस बात का गवाह है कि सफलता वंशानुगत नहीं होती व जीन, आयु, रंग इत्यादि पर निर्भर न करके व्यक्तिगत प्रयासों पर निर्भर करती है।’’ 

अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी और धीरूभाई अंबानी जैसी अनगिनत हस्तियां हैं, जहां इस वंशानुगत गुण का उनकी सफलता से कोई वास्ता नहीं है। समाज विज्ञानी भी वंशानुगत सफलता की बात को नकारते हैं। इनके अनुसार सफलता व्यक्तिगत होती है जो अपनी बुद्धि, प्रयास और संरचनात्मकता पर निर्भर करती है। छात्र से लेकर शोधकर्ता, क्लर्क से लेकर किसी कंपनी के सी.ई.ओ. तक को आगे बढनेके लिए बुद्धि या मस्तिष्क की शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। याद रखें कि इस डर से कि आप हार जाएंगे, सफलता के लिए कोशिश न करना सबसे बड़ी हार होगी। 


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