आज होगा ब्रिटिश प्रधानमंत्री की ‘राजनीतिक तकदीर’ का फैसला

punjabkesari.in Tuesday, Jan 15, 2019 - 05:05 AM (IST)

ब्रिटेन इस वक्त अपने इतिहास के ऐसे नाजुक मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे भविष्य दिशा निर्धारण में संभवतया इतनी कठिनाई पहले कभी नहीं आई होगी जितनी पिछले लगभग पौने दो वर्षों के दौरान आई है। जून 2016 में एक रैफरैंडम द्वारा बड़े ही कम अंतर के वोटों से यह देश यूरोपियन यूनियन छोडऩे का फैसला क्या कर बैठा कि तब से अंधेरे में भटक रहा है। 

इक गलत कदम क्या उठाया था शौक में
जिंदगी फिर तमाम उम्र मंजिल ढूंढती रही 
किसी समय संसार के सब से शक्तिशाली साम्राज्य की दशा इस समय बिल्कुल ऐसी है कि उसे कोई ओर-छोर नहीं मिल रहा। किधर जाएं, क्या करें, कुछ सूझ नहीं रहा। यूरोपियन यूनियन में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस प्राप्त करने के भरसक प्रयत्नों में प्रधानमंत्री थैरेसा मे की असफलता के बावजूद देश के सत्ताधारी टोरी पार्टी का एक शक्तिशाली वर्ग पुरानी साम्राज्यवादी मनोवृति को त्यागकर ऐसी किसी योजना को स्वीकार करने को तैयार नहीं, जिससे कि यूरोप और ब्रिटेन के दरम्यान भविष्य के संबपुराने स्तरों पर न सही, कम से कम ऐसे प्रबंध हो जाएं कि उनका आपसी राजनीतिक, व्यापारिक तथा अन्य प्रकार का व्यवहार सुचारू ढंग से चल सके। 

लेबर पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण
इस विषय पर विरोधी लेबर पार्टी का रवैया काफी देर तक स्पष्ट नहीं हो पाया। अभी कुछ समय से अपनी नीति की व्याख्या में उसने जो विचारधारा सामने रखी है, वह आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी लेकिन इसका फैसला मंगलवार 15 जनवरी को होगा, जब ब्रिटिश संसद में महत्वपूर्ण वोटिंग होगी कि थैरेसा मे ने यूरोपियन यूनियन के साथ ब्रिटेन के भविष्य के संबंधों को लेकर प्रस्तुत की अपनी कई योजनाओं के रद्द कर दिए जाने के बाद जो नई संधि रखी है उसे स्वीकार किया जाता है या नहीं। यूरोपियन यूनियन  इस संधि को स्वीकार करने की रजामंदी प्रकट कर चुकी है। 

ब्रिटिश संसद में इस संधि पर वोटिंग के नतीजे पर निर्भर करती है प्रधानमंत्री थैरेसा मे की राजनीतिक तकदीर। जो संकेत मिल रहे हैं उनसे यही आशंका है कि संसद भारी बहुमत से इसे ठुकरा देगी। यदि ऐसा होता है तो इससे न केवल गंभीर राजनीतिक बल्कि कई अन्य प्रकार के संकट उत्पन्न हो जाएंगे, साथ ही थैरेसा मे के भविष्य पर गहरे बादल छा जाएंगे। ऐसी स्थिति में वह क्या निर्णय लेती हैं, कुछ नहीं कहा जा सकता। यूरोपियन यूनियन से पूर्णतया निकलने के लिए ब्रिटेन ने जो अंतिम तिथि निश्चित कर रखी है, वह है 29 मार्च 2019। इस तिथि से पहले यह निश्चित करना आवश्यक है कि ब्रिटेन अगर यूरोपियन यूनियन से निकलेगा तो उसके साथ भविष्य के संबंधों का आधार किस संधि की शर्तों पर होगा। 

चूंकि अभी तक ऐसा कुछ भी निश्चित नहीं हो सका, इसलिए यही आशंका प्रकट की जा रही है कि 15 जनवरी की उलटी वोटिंग के परिणामस्वरूप ब्रिटेन को खाली हाथ ही यूरोप से निकलना पड़ेगा। टोरी पार्टी का एक बड़ा धड़ा नई संधि के विरोध में है, लेबर पार्टी ने भी इसके खिलाफ  वोट देने की घोषणा की है। लिबरल पार्टी भी इस संधि के खिलाफ है। 

कयास अराइयां
कई प्रकार की कयास अराई की जा रही है। कुछ राजनीतिज्ञ टीकाकारों का कहना है कि: थैरेसा मे त्यागपत्र देकर नए चुनाव करवाने की घोषणा कर सकती हैं, यूरोपियन यूनियन छोडऩे की आखिरी तारीख 29 मार्च को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रख सकती हैं ताकि ब्रिटेन को समस्या के लिए सहमति पैदा कर सकने का कुछ और समय मिल सके, नए सिरे से रैफरैंडम करवाने की योजना भी रख सकती हैं। देश में भारी बहुमत जोर पकड़ रहा है कि चूंकि राजनीतिक दल एकमत नहीं हो पा रहे और स्थिति सुलझने की बजाय उलझती ही जा रही है इसलिए इस झंझट से निकलने के लिए दोबारा रैफरैंडम करवाया जाए कि ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन में रहना है या नहीं। जो भी हो, संसद की आज की वोटिंग का परिणाम थैरेसा मे के राजनीतिक भविष्य का फैसला तो करेगा ही, साथ में ब्रिटेन की भावी दिशा भी निर्धारित करेगा कि यूरोप और विश्व में इसकी नई भूमिका की रूपरेखा क्या होगी?-कृष्ण भाटिया


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