कुंभ क्या है ?

punjabkesari.in Thursday, Jan 03, 2019 - 06:10 PM (IST)

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हिंदू धर्म में हर पर्व को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसा ही एक पर्व है कुंभ। कुंभ के बारे में कहा जाता है कि ये हिंदू धर्म का एक ऐसा धार्मिक आयोजन होता है जिसमें शिव शंकर के भक्तों का सबसे बड़ा जमावड़ा इकठ्ठा होता है। इस त्योहार के दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग यहां मौजूद रहते हैं। बता दें कि कुंभ का अर्थ कलश से है यानि घड़ा। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ का संबंध समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से जुड़ा हुआ है। इससे संबंधित ये कहा जाता है कि जब अमृत कलश को देवता-असुर एक दूसरे से छीन रहे थे तब इसकी कुछ बूंदें धरती की नदियों में गिर गई। कहा जाता है कि जहां जहां ये बूंदें गिरी वहां वहां कुंभ मेले का आयोजन हो गया। ये बूंदें गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा में गिरी थी। बता दें कि गंगा नदी (प्रयाग, हरिद्वार), गोदावरी नदी (नासिक), क्षिप्रा नदी (उज्जैन) इन सभी नदियों का संबंध गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारते हैं। क्षिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से जानते हैं, यहां गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है।
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बहुत कम लोग जानते होंगे कि हिंदू धर्म का ये सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला कुंभ 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। बता दें कि वो नदियां हैं हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। इतना तो सब जानते हैं कि कुंभ मेले का आयोजन बहुत वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन इसके इतिहास के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
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तीन वर्ष में एक बार आता है कुंभ-
कहा जाता है कि कुंभ का आयोजन चार स्थानों पर हर तीन वर्ष के अंतराल में होता है, इसीलिए किसी एक स्थान पर 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है। जैसे उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। बता दें कि उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
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यहां जानें कुंभ की कथा-
हिंदू ग्रंथों के अनुसार  अमृत के लिए देवता और दानवों के बीच लगातार 12 दिन तक युद्ध हुआ था। जो मनुष्यों के बारह वर्ष के समान हैं। इसीलिए कुंभ भी बारह होते हैं। जिनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुंभ पर्व का सीधा संबंध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। बता दें कि देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष यानि साल के बराबर है। इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12 वें साल कुंभ अलग-अलग तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है। कथाओं के अनुसार युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने मिलकर अमृत कलश की रक्षा की थी। इसलिए उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुंभ का योग होता है और चारों पवित्र स्थलों पर हर तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परंपरा है।
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Jyoti

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