भारत के लिए ‘क्षेत्रीय कारोबार समझौतों’ की नई जरूरत

punjabkesari.in Sunday, Nov 18, 2018 - 04:52 AM (IST)

यकीनन इस समय क्षेत्रीय आर्थिक और कारोबार संबंधी सांझेदारी समझौते भारत की नई जरूरत बन गए हैं। चूंकि अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के कारण विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। अतएव क्षेत्रीय कारोबारी समझौते भारत के लिए लाभप्रद दिखाई दे रहे हैं। इसी तारतम्य में पिछले दिनों 13  से 15 नवम्बर तक सिंगापुर में आयोजित क्षेत्रीय आर्थिक सांझेदारी सम्मेलनों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से भारत क्षेत्रीय आर्थिक सांझेदारी की नई डगर पर आगे बढ़ा है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्षेत्रीय समग्र आर्थिक सांझेदारी (आर.सी.ई.पी.) समझौते पर इससे संबंधित देशों के राष्ट्र प्रमुखों के सम्मेलन में शामिल हुए। यह महत्वाकांक्षी समझौता 10 आसियान देशों  (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया,  म्यांमार, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपींस, लाओस और वियतनाम) के अलावा न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच प्रस्तावित है। इस समझौते के लिए अब तक छ: मंत्री स्तरीय बैठकों के अलावा 24 दौर की बैठकें हो चुकी हैं। 

गौरतलब है कि इस सम्मेलन में आर.सी.ई.पी. के लिए सात क्षेत्रों में सहमति बन गई है। इसमें आॢथक एवं तकनीकी सहयोग, लघु एवं मझोले उद्यम, सीमा शुल्क प्रक्रियाएं एवं व्यापार सुविधा, सरकारी खरीद, संस्थागत प्रावधान, स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता उपायों तथा मानक, तकनीकी नियमन एवं सहमति मूल्यांकन प्रक्रियाएं शामिल हैं। लेकिन अभी कुछ क्षेत्रों में समझौतों के लिए बातचीत को आगे बढ़ाया जाना जरूरी है। इनमें सेवा क्षेत्र में वार्ताओं की प्रगति सबसे अधिक जरूरी है क्योंकि ज्यादातर आर.सी.ई.पी. देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में इसका हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक है। भविष्य में सेवाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। मोदी ने यह भी कहा कि भारत आधुनिक, समग्र, बेहतर गुणवत्ता और परस्पर लाभदायक आॢथक सांझेदारी समझौते के लिए प्रतिबद्ध है। बहरहाल शुल्क कम किए जाने, बाजार तक पहुंच और सेवा कारोबार के मानकों जैसे अन्य देशों के प्रशिक्षित पेशेवरों की मुक्त आवाजाही को लेकर भारत की आपत्तियां हैं। 

उल्लेखनीय है कि आसियान संगठन के 10 देशों का मौजूदा संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद करीब 2.8 लाख करोड़ डालर है। इसके अलावा आसियान देशों की 1000 अरब डालर से अधिक की वाॢषक क्षेत्रीय आय तथा 100 अरब डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) मुक्त व्यापार क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है। आसियान देशों की अर्थव्यवस्था विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आसियान देशों के साथ भारत के व्यापारिक रिश्तों की शुरूआत 1990 के दशक में हुई। 

उन्होंने जनवरी 1992 में भारत को क्षेत्रीय संवाद सहयोगी और दिसम्बर 1995 में पूर्ण वार्ताकार सहयोगी का दर्जा प्रदान किया था। उल्लेखनीय है कि भारत और आसियान देशों के बीच मुख्यत: इलैक्ट्रॉनिक्स, रसायन, मशीनरी और टैक्सटाइल्स का कारोबार होता है। इस समय भारत आसियान का चौथा सबसे बड़ा सांझेदार है। जो भारत-आसियान व्यापार 1990 में मात्र 2.4 अरब डॉलर का था वहीं वह वर्ष 2016-17 में करीब 80 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसे 2022 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। 

आर्थिक मोर्चे पर कामयाबी
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी का सिंगापुर दौरा और आर.सी.ई.पी. समझौते के आकार ग्रहण करने के बाद भारत के लिए आसियान देशों में अधिक अच्छी व्यापार संभावनाएं आकार लेंगी। आसियान देशों ने यह अनुभव किया है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने आर्थिक मोर्चे पर अच्छी कामयाबी हासिल की है। भारत में वर्ष 2014 से मेक इन इंडिया अभियान चलाया जा रहा है। भारत में बुनियादी ढांचा, विनिर्माण, शहरी नवीनीकरण और स्मार्ट शहरों पर बल दिया जा रहा है।

आसियान देशों को भी चमकते हुए मध्यम वर्ग के भारतीय बाजारों में तेजी से आगे बढऩे का मौका मिला है। आसियान देशों के लिए विशेष तौर पर कुछ ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अच्छे मौके हैं जिनमें भारत ने काफी उन्नति की है। ये क्षेत्र हैं-सूचना प्रोद्यौगिकी, बायोटैक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, पर्यटन और आधारभूत क्षेत्र। आसियान देशों ने इस बात को समझा है कि आधुनिक तकनीक, बढ़ते घरेलू बाजार, व्यापक मानव संसाधन, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में दक्षता जैसी चीजें भारत को आर्थिक ऊंचाई दे रही हैं। यह भी समझा गया है कि अगर आसियान का मैन्युफैक्चरिंग और भारत का सॉफ्टवेयर उद्योग आपस में जुड़ जाएं तो यह पूरा इलाका आर्थिक प्रगति के कीर्तिमान रच सकता है। 

हाल ही में विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दक्षिण एशिया के देशों (भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान) का अंतरक्षेत्रीय व्यापार दुनिया के अन्य सभी क्षेत्रों के आपसी कारोबार की तुलना में सबसे कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017-18 में भारत का दक्षिण एशिया के साथ व्यापार करीब 1900 करोड़ डालर का रहा है, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र के पड़ोसी देशों के साथ भारत की कुल कारोबार क्षमता करीब 6200 करोड़ डालर की है। इसका मतलब यह है कि भारत पड़ोसी देशों के साथ कारोबार क्षमता का महज 31 प्रतिशत कारोबार ही कर पा रहा है। 

भारत-पाक संबंध
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दक्षिण एशिया में भारत का विदेश व्यापार भारत के कुल वैश्विक विदेश व्यापार का महज 3 प्रतिशत है। जहां पाकिस्तान को एम.एफ.एन. का दर्जा देने के बाद भी भारत के साथ उसका आपसी कारोबार नहीं बढ़ा, वहीं भारत द्वारा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के जिन अन्य सदस्य देशों श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान को एम.एफ.एन. का दर्जा दिया गया है, उनके साथ भारत का विदेश व्यापार तेजी से बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण एशियाई देशों ने भौगोलिक, ऐतिहासिक, भाषायी और सांस्कृतिक एकजुटता के साथ-साथ प्राकृतिक एवं आर्थिक संसाधनों का कारोबार में लाभ लेने के लिए 1985 में दक्षेस यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना की थी और फिर 1994 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

यद्यपि साफ्टा समझौता जनवरी 2006 से लागू हुआ लेकिन अब तक सार्क देशों में हुए व्यापार समझौते का कोई खास प्रभाव उनके आपसी कारोबार पर दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में अन्य दक्षिण एशियाई देशों श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान के साथ भारत द्वारा क्षेत्रीय कारोबारी समझौतों से व्यापारिक संबंध बढ़ाए जाने के लिए उपयुक्त विचार करना अधिक बेहतर होगा। बी.बी.आई.एन. (बंगलादेश, भूटान, भारत, नेपाल) और बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी में बहुक्षेत्रीय तकनीकी और क्षेत्रीय सहयोग) जैसी उपक्षेत्रीय पहल भारत के लिए कारोबार बढ़ाने के मद्देनजर लाभप्रद होगी। 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के विरोध को दरकिनार करते हुए दक्षेस के भीतर क्षेत्रीय उपसमूह बी.बी.आई. एन. की एकसूत्रता पर जोर देकर भारत ने इन देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाया है। बी.बी.आई.एन. के ये चारों देश कारोबार को बढ़ावा देने के लिए अंतर ग्रिड कनैक्टिविटी और जल संसाधन प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काफी आगे बढ़े हैं। बी.बी.आई.एन. के साथ अब श्रीलंका और मालदीव को भी समुद्री लिंक से जोडऩे के लिए कदम बढ़ाए गए हैं। हम आशा करें कि अब भारत आसियान और पूर्वी एशियाई देशों में आर.सी.ई.पी. समझौते के साथ-साथ दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ भी क्षेत्रीय कारोबारी समझौतों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी


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Pardeep

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