कुंदन ग्रुप को मिला लुधियाना के दिवालिया ऋषि गंगा पावर प्रॉजैक्ट का कंट्रोल

punjabkesari.in Friday, Nov 16, 2018 - 06:13 PM (IST)

लुधियानाः केंद्र सरकार की तरफ से 2016 में लागू किए गए दिवालिया कानून के तहत लुधियाना के ऋषि गंगा पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (रजत पेंट ग्रुप) का कंट्रोल दिल्ली के कुंदन ग्रुप को दे दिया गया है। इस कानून के अंतर्गत हल हुआ पंजाब का यह दूसरा बड़ा दिवालिया केस है। इससे पहले अमृतसर के रैडीसन होटल के दिवालिया होने का मामला हल हुआ था। ताज़ा मामलों में लुधियाना के चार्टर्ड अकाउंटेंट निपिन बांसल और उन की टीम की अहम भूमिका रही है। निपिन बांसल की टीम को यह मामला इस साल जनवरी में पंजाब नेशनल बैंक की तरफ से सौंपा गया था। बांसल की टीम के सदस्यों अकशित महेश्वरी, नेहा गोयल, पलक गुप्ता, हर्ष गर्ग, पुलकित गोयल, मनीषा गांधी, केशव प्रताप सिंह और अशोक अग्रवाल ने इस मामले में दिन रात एक करके चण्डीगढ़ में स्थित एन.सी.एल.टी. (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) की कोर्ट में सभी तर्क रखे जिनके आधार पर 13 नवंबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए कंपनी का कंट्रोल दिल्ली के कुंदन ग्रुप को दे दिया है।

क्या है पूरा मामला
दरअसल लुधियाना के ऋषि गंगा पावर कॉरपोरेशन की तरफ से जेशी मठ में हाईड्रोपावर का प्लांट लगाने के लिए पंजाब नेशनल बैंक, ओ.बी.सी. और कोटक महिंद्रा बैंक से 160 करोड़ रुपए का कर्ज़ लिया गया था इस के अलावा कंपनी के सिर पर बाजार की 5 करोड़ रुपए की देनदारी भी थी और कुल मिला कर 165 करोड़ रुपए के कर्ज़ के नीचे दबे थे। कर्ज की रकम चुकता न होने पर बैंकों ने कंपनी को दिवालिया घोषित करवाने के लिए एन.सी.एल.टी. का दरवाज़ा खटकाया और इस काम के लिए निपिन बांसल और उनकी टीम को ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। फ़ैसले के मुताबिक कुंदन ग्रुप बैंकों को 45.62 करोड़ रुपए दे कर पूरे प्रॉजैक्ट का कंट्रोल अपने हाथों में ले रहा है और इसके अलावा पूरे प्रॉजैक्ट की 90 करोड़ रुपए के बीमों की रकम को ले कर मामला कानूनी प्रक्रिया में फंसा हुआ है और बैंकों को उम्मीद है कि वहां भी बैंकों के हक में फ़ैसला आएगा और बैंकों की तरफ से दिए गए कुल कर्ज की रकम की भरपाई हो सकेगी।

क्या है एन.सी.एल.टी. और दिवालिया कानून 
केंद्र सरकार की तरफ से यह कानून 2016 में पास किया गया था इस कानून के अंतर्गत बैंकों का कर्ज़ न मोड़ने वाली कंपनियों के ख़िलाफ़ बैंक एन.सी.एल.टी. में जा सकते हैं जहां मामलों की सुनवाई कुछ ही महीनों में पूरी हो जाती है जबकि इससे पहले यह व्यवस्था नहीं थी। पहले वाली व्यवस्था में जिस प्रॉपर्टी के अंतर्गत कर्ज़ लिया जाता था उस प्रॉपर्टी का कब्ज़ा लेने के बाद उस की नीलामी के अलावा डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डी.आर.टी.) या हाईकोर्ट में जाना पड़ता था या इस लम्बी कानूनी प्रक्रिया में सालों इंतज़ार करना पड़ता था। नया कानून आने के बाद बैंकों के लिए कंपनियों को दिवालिया घोषित करवा कर उन के प्रोजेक्टों को किसी ओर उद्योगपति या कंपनी को बेचने का रास्ता खुल गया है। 


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jyoti choudhary

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