2016 के ‘पोक्सो’ मामलों का बैकलॉग निपटाने में भारत को लगेंगे 20 वर्ष

punjabkesari.in Monday, Apr 23, 2018 - 03:01 AM (IST)

जहां बच्चियों के विरुद्ध अपराध बढ़ते जा रहे हैं वहीं नोबेल पुरस्कार विजेता और बाल अधिकार एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि अदालतों में लम्बित मुकद्दमों की सुनवाई के कुछ मामलों में 100 वर्ष लगेंगे। 

सत्यार्थी की फाऊंडेशन द्वारा ‘द चिल्ड्रन कैननॉट वेट’ के शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में यौन अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (पोक्सो), 2012 के अंतर्गत भारत में बच्चियों के विरुद्ध यौन अपराधों के लम्बित मामलों की स्थिति पर चर्चा की गई है। 2015-16 में सुनवाई अधीन मामलों में से केवल 10 प्रतिशत ही निपटाए जा सके थे। 

रिपोर्ट में यह गणना की गई है कि यदि यह मान लिया जाए कि बाल अपराध मुकद्दमे 2016 वाली दर से ही निपटाए जाएंगे तो इस वर्ष तक जमा हो चुके मुकद्दमों की बैकलॉग को निपटाने के लिए कम से कम 20 वर्ष लगेंगे। उल्लेखनीय है कि पंजाब में मुकद्दमे औसतन 2 वर्ष में निपटाए जाते हैं जबकि अरुणाचल में मुकद्दमे की प्रक्रिया पूरे होने में लगभग 100 वर्ष लगते हैं। ऐसी स्थिति पर कटाक्ष करते हुए सत्यार्थी पूछते हैं : ‘‘क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि आज जिस 15 वर्ष की किशोरी के साथ दुष्कर्म होता है वह 60 साल की आयु पहुंचने के बाद भी अदालत में उपस्थित होगी?’’ 

हाल ही के कठुआ दुष्कर्म की रोशनी में सत्यार्थी ने कहा: ‘‘हम एक सशक्त न्यायिक प्रणाली की मांग कर रहे हैं। तेज गति से न्याय उपलब्ध करवाने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष अदालतें तथा बच्चों के लिए राष्ट्रीय पंचाट की स्थापना की जा चुकी है। प्रतिदिन 55 बालिकाओं के साथ दुष्कर्म होता है और प्रति घंटे 8 बच्चे लापता हो जाते हैं। हमें बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराधों के खिलाफ युद्ध छेडऩा होगा।’’ लम्बित मामले साल-दर-साल केवल बढ़ते ही जा रहे हैं। 2014 में इनकी संख्या 52,309 थी जोकि 2015 में 37 प्रतिशत बढ़कर 71,552 हो गई और अगले वर्ष 26 प्रतिशत की नई वृद्धि दर्ज करते हुए 89,999 हो गई। 

‘पोक्सो’ के अंतर्गत दर्ज इन सभी मामलों में दंड देने की दर केवल 2014 और 2016 के बीच केवल 30 प्रतिशत थी। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2016 में पोक्सो के अंतर्गत दर्ज 48060 मामलों में से केवल 30,891 ही सुनवाई के लिए अदालतों में पहुंच पाए हैं। यानी कि 36 प्रतिशत मामले अभी भी लटके हुए हैं।-पी. मैत्री


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Pardeep

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