भारत की ताकत बनते युवा, अब चिंता का कारण! प्रजनन दर में गिरावट से चीन-जापान जैसे हालात की आशंका
punjabkesari.in Wednesday, Jun 11, 2025 - 05:28 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत जहां एक ओर 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर एक अहम सामाजिक संकेतक प्रजनन दर अब चिंता का विषय बनता जा रहा है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, देश की कुल प्रजनन दर 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिरकर 1.9 पर पहुंच चुकी है। यह वही स्तर है जो चीन और जापान जैसे देशों में देखा गया था, जहां अब उम्रदराज आबादी बोझ बनती जा रही है।
युवाओं की ऊर्जा या जनसंख्या का संतुलन?
भारत में अभी भी 68% जनसंख्या कार्य करने योग्य आयु वर्ग 15-64 वर्ष में है, और करीब 26% जनसंख्या 10-24 वर्ष के बीच है। यह डेमोग्राफिक डिविडेंड देश के लिए अवसर भी है, परंतु गिरती जन्म दर इस युवा शक्ति को टिकाऊ बनाए रखने में बाधा बन सकती है।
चीन और जापान से सबक लेने की ज़रूरत
चीन की कड़ी "एक बच्चा नीति" ने वहां प्रजनन दर को तेजी से गिरा दिया। आज चीन की कुल प्रजनन दर 1.18 पर आ चुकी है, और 2040 तक वहां 60 वर्ष से ऊपर की आबादी 40 करोड़ के करीब होने का अनुमान है। जापान भी इसी संकट से गुजर रहा है, जहां 65+ आयु वर्ग के लोग लगभग 29% आबादी बन चुके हैं।
भारत में जनगणना की देरी और संभावनाएं
भारत में अगली जनगणना अब मार्च 2027 तक टली हुई है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल जनसंख्या अप्रैल 2025 तक 146.39 करोड़ तक पहुंच सकती है। यह बढ़ती संख्या सतह पर भले बड़ी लगे, लेकिन यदि इसका युवा अनुपात घटने लगे, तो यह भविष्य में देश के सामाजिक और आर्थिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।
TFR क्या है और क्यों है अहम?
कुल प्रजनन दर किसी महिला द्वारा जीवनकाल में जन्मे बच्चों की औसत संख्या को मापता है। प्रतिस्थापन स्तर 2.1 को आदर्श माना जाता है ताकि प्रत्येक पीढ़ी खुद को जनसंख्या में बनाए रख सके। भारत का 1.9 का बताता है कि देश धीमे-धीमे जनसंख्या स्थिरता से संकुचन की ओर बढ़ रहा है।
क्या हो सकते हैं दूरगामी प्रभाव?
- युवाओं की संख्या में गिरावट
- कार्यबल में कमी
- बुजुर्गों की निर्भरता में वृद्धि
- पेंशन और स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ
- आर्थिक उत्पादकता पर असर
अब क्या करना होगा?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि “फर्टिलिटी क्राइसिस” यानी प्रजनन क्षमता में गिरावट को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। भारत को अभी से नीतिगत स्तर पर ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे युवा वर्ग को परिवार बढ़ाने के लिए आर्थिक, सामाजिक और संरचनात्मक समर्थन मिल सके। इसमें महिला सशक्तिकरण, बाल देखभाल की सुविधा, मातृत्व अवकाश जैसी नीतियां शामिल हो सकती हैं।