तिरंगा सिर्फ लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है, किसी और मुगल इमारत पर क्यों नहीं? जानिए इसके पीछे की ऐतिहासिक वजह

punjabkesari.in Saturday, Aug 02, 2025 - 03:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस अब कुछ ही दिन दूर है। हर साल इस खास मौके पर देश के प्रधानमंत्री दिल्ली स्थित ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर स्वतंत्रता दिवस पर झंडा सिर्फ लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है? क्या इसे ताजमहल, फतेहपुर सीकरी या किसी अन्य ऐतिहासिक इमारत पर भी फहराया जा सकता है? आइए, इस परंपरा के पीछे छिपे ऐतिहासिक महत्व और वजह को समझते हैं।

कब शुरु हुई ये परंपरा?
लाल किले का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने 17वीं सदी में करवाया था। यह किला हमेशा से शक्ति और सत्ता का प्रतीक रहा है। 1857 तक यह मुगल साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य करता रहा। अंग्रेजों के शासनकाल में भी लाल किले को अधीन कर वहां अपना झंडा फहरा दिया गया था। फिर, 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से पहली बार तिरंगा फहराया, और अंग्रेजों के झंडे को हटाकर भारत के राष्ट्रीय गौरव की शुरुआत की। तभी से यह परंपरा बनी हुई है।

लाल किला पर क्यों फहराया जाता है तिरंगा?
ताजमहल या अन्य मुगलकालीन स्मारक भले ही वास्तुशिल्प और इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हों, लेकिन वे सत्ता और शासन से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हैं। वहीं लाल किला हमेशा से राजनीतिक शक्ति और प्रशासन का प्रतीक रहा है। इसके विशाल दीवारें, प्राचीर, दीवान-ए-आम, और दिल्ली में केंद्रित स्थान इसे राष्ट्रीय उत्सवों और सरकारी समारोहों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान बनाते हैं।

लाल किला: राष्ट्रीय गौरव और पहचान
लाल किले को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक इसलिए भी माना गया क्योंकि यह स्वतंत्रता संग्राम की कई घटनाओं का गवाह रहा है। आज यह सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि देश की आजादी, एकता और अखंडता का प्रतीक बन चुका है। यही वजह है कि हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री इसी किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हैं और झंडारोहण करते हैं।

क्या है लाल किले का असली नाम?
आपको जानकर हैरानी होगी कि लाल किले का असली नाम "किला-ए-मुबारक" है। इसका निर्माण कार्य 1638 में शुरू हुआ था और इसे बनने में लगभग 10 साल लगे। साल 2007 में यूनेस्को ने इसे अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की सूची में शामिल किया। यह स्थल भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है, जहां हर साल कई राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


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Content Editor

Shubham Anand

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