भारत के इस अनोखे मेले में महिलाओं को नहीं मिलती एंट्री, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य?
punjabkesari.in Thursday, Dec 18, 2025 - 02:21 PM (IST)
नेशनल डेस्क : कर्नाटक के दावणगेरे जिले में आयोजित होने वाले महेश्वरस्वामी मेले को लेकर इन दिनों खासा चर्चा हो रही है। यह मेला अपनी अनोखी परंपराओं के कारण अन्य मेलों से बिल्कुल अलग माना जाता है। हर साल इसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग पहुंचते हैं। इस मेले की सबसे खास और चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें केवल पुरुषों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, जबकि महिलाओं के प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। यह परंपरा पिछले लगभग 50 से 60 वर्षों से चली आ रही है।
महेश्वरस्वामी मेला हर वर्ष दावणगेरे शहर के बाहरी क्षेत्र बसपुरा में आयोजित किया जाता है। यह मेला अमावस्या के दिन से शुरू होकर लगातार तीन दिनों तक चलता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान गांव के भविष्य से जुड़ी कई धार्मिक रस्में निभाई जाती हैं। मेले में आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं, लेकिन इसमें भाग लेने की अनुमति केवल पुरुषों को ही दी जाती है।
महिला प्रवेश पर सख्त प्रतिबंध
मेले में महिलाओं की एंट्री पर सख्त रोक लगी हुई है। आयोजन से जुड़ी सभी जिम्मेदारियां पुरुषों द्वारा ही निभाई जाती हैं। पूजा की तैयारी, मंदिर की सजावट, भोजन बनाना और मेले की संपूर्ण व्यवस्था पुरुषों के हाथों में होती है। मान्यता है कि महेश्वरस्वामी की पूजा यहां पिछले चार सौ वर्षों से की जा रही है। महेश्वरस्वामी का मंदिर धान के खेतों से घिरे एक स्थान पर स्थित है, जहां एक विशाल वृक्ष के नीचे उनकी स्थापना की गई है। श्रद्धालु उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं।
केले के छिलकों से भविष्यवाणी की परंपरा
मेले के दौरान महेश्वरस्वामी के मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है। श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था भी की जाती है, जहां सभी लोग जमीन पर बैठकर सामूहिक रूप से भोजन करते हैं। यह परंपरा भी कई दशकों से निभाई जा रही है। मेले में महिलाओं के आने पर पूरी तरह से रोक है और यदि कोई महिला गलती से भी वहां पहुंच जाती है, तो उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान बताया जाता है।
इस मेले की एक और अनोखी मान्यता केले के छिलकों से जुड़ी हुई है। श्रद्धालु महेश्वरस्वामी गड्डू के पास केले के छिलके फेंकते हैं। इसके बाद पुजारी इन छिलकों को पुष्करणी जल में विसर्जित करते हैं। मान्यता है कि यदि केले के छिलके पानी में तैरते हैं तो गांव के लिए शुभ संकेत माना जाता है, जबकि छिलकों के डूबने को आने वाली विपत्ति का संकेत समझा जाता है। इसके अलावा मेले के दौरान अन्नदान की विशेष रस्म भी निभाई जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं।
