Postmortem in Islam: क्या शरीर के टुकड़े करने से रुक जाता है जन्नत का रास्ता? फिर क्यों पोस्टमार्टम पर क्यों हिचकिचाता है मुस्लिम समाज?
punjabkesari.in Saturday, Dec 20, 2025 - 12:33 PM (IST)
नेशनल डेस्क: भारत में संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों, दुर्घटनाओं या हत्याओं के मामलों में पोस्टमार्टम एक अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया है। इसका मुख्य मकसद मौत के सही कारणों का पता लगाना और न्याय सुनिश्चित करना होता है। अक्सर मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग द्वारा इसका विरोध किया जाता है, जिसके पीछे प्रमुख कारण धार्मिक भावनाएं, शव के प्रति सम्मान और दफनाने में होने वाली देरी है। विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि इस्लाम में जांच के उद्देश्य से पोस्टमार्टम की मनाही नहीं है, बल्कि यह कानूनी और सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है।
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विरोध के मुख्य कारण और धार्मिक दृष्टिकोण
इस्लाम में मृत शरीर को भी जीवित व्यक्ति के समान सम्मान (Dignity) देने का हुक्म दिया गया है। जमीयत-ए-इस्लामी हिंद के नेशनल सेक्रेटरी डॉ. मोहम्मद रज़िउल इस्लाम नदवी के अनुसार कई परिजनों को लगता है कि शरीर पर चीरा लगाने या अंग निकालने से शव की 'बेहुरमती' (अपमान) होती है। इसके अलावा शरीयत में मृतक को जल्द से जल्द सुपुर्द-ए-खाक (दफन) करने की आदेश है, जबकि पोस्टमार्टम की प्रक्रिया में अक्सर काफी समय लग जाता है, जो समुदाय की चिंता का एक बड़ा कारण बनता है।
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क्या कहते हैं इस्लामिक विद्वान और संस्थाएं?
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के चेयरमैन मुफ्ती शमून कासमी ने स्पष्ट किया कि पोस्टमार्टम का विरोध करना केवल जानकारी का अभाव है। उन्होंने जोर दिया कि शरीयत कभी भी देश के कानून के रास्ते में नहीं आती। दारुल उलूम देवबंद और अल-अजहर जैसे प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थानों ने भी निम्नलिखित स्थितियों में पोस्टमार्टम को 'जायज' ठहराया है:
जानकारी के लिए बता दें कि सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में भी संदिग्ध मामलों में पोस्टमार्टम की प्रक्रिया अपनाई जाती है। भारतीय दृष्टिकोण में विद्वानों का मानना है कि आम मौत में शरीर की चीर-फाड़ उचित नहीं है, लेकिन जहाँ न्याय और कानून का सवाल हो, वहां पोस्टमार्टम कराना इस्लाम के सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं है।
