जब सत्येंद्र दास के हाथों से गायब हुई रामलला की मूर्ति, जानें 1992 का दिलचस्प किस्सा
punjabkesari.in Wednesday, Feb 12, 2025 - 01:06 PM (IST)
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नई दिल्ली: अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को निधन हो गया। वे लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में बुधवार को अंतिम सांस ली। वे 3 फरवरी से ब्रेन हैमरेज के बाद इलाजरत थे। सत्येंद्र दास ने 20 साल की उम्र से ही राम मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी और 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय भी वे ही पुजारी थे। इस दौरान एक प्रसिद्ध घटना घटी, जिसे आज भी याद किया जाता है।
1992 का किस्सा – जब मूर्ति गायब हुई
यह घटना 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद की है। हालांकि, इस पर चर्चा करने से पहले हमें 1949 की घटना के बारे में जानना ज़रूरी है। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति रखी गई थी। इसके बाद, इस घटना की खबर पूरे देश में फैल गई और अयोध्या में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ। बाद में 23 दिसंबर 1949 को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया। इस विवाद के बाद, 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद में ताला लगा दिया गया।
फिर 1986 में उस ताले को खोला गया। इस मूर्ति को 6 दिसंबर 1992 तक जन्मस्थान पर स्थापित रखा गया। लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, कारसेवा के दौरान यह मूर्ति गायब हो गई। यह मूर्ति रामलला की मूल मूर्ति नहीं थी, बल्कि 22 दिसंबर 1949 की रात वहां रखी गई मूर्ति थी।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब युद्ध में अयोध्या में लिखते हैं कि जब बाबरी ढांचा गिरा, तो इसी दौरान सत्येंद्र दास ने मूर्ति को बाहर लाया था, और फिर वह गायब हो गई। कारसेवकों के बीच अफरातफरी थी, क्योंकि एक तरफ केंद्र सरकार की कार्रवाई का डर था और दूसरी ओर अस्थायी मंदिर बनाने की जल्दबाजी थी।
रामलला की मूर्तियां भेजने की घटना
अयोध्या में कर्फ्यू लगा था और बाजार बंद थे। तब राजा अयोध्या ने अपने घर से रामलला की मूर्तियां भेजीं, जो उनकी दादी ने खास इसी काम के लिए अपने घर में एक अस्थायी मंदिर बनवाकर रखी थीं। ये मूर्तियां बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद चबूतरे पर रखी गईं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई और भाजपा नेता मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बर्खास्त कर दिया।
सत्येंद्र दास का जीवन
सत्येंद्र दास का जन्म एक धार्मिक परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही धार्मिक अनुष्ठानों और वेद-शास्त्रों में निपुण थे। उनके गुरु महंत अभिराम दास ने उन्हें पुजारी बनने के लिए प्रेरित किया था।उन्होंने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की और 1976 में संस्कृत महाविद्यालय के व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक की नौकरी शुरू की। इसके बावजूद वे राम जन्मभूमि में आकर पूजा-पाठ का कार्य करते रहे।
1992 में राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी बने
1992 में वे राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी बने और 1 मार्च 1992 से उनका कार्यकाल शुरू हुआ। उन्होंने अपने साथ चार सहायक पुजारियों की टीम बनाई थी। जब वे मुख्य पुजारी बने, तो उन्हें 100 रुपये मासिक पारिश्रमिक मिलता था। सत्येंद्र दास के योगदान और उनके कार्यों को हमेशा याद रखा जाएगा, और उनकी भूमिका अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के इतिहास में महत्वपूर्ण रहेगी।