Election Diary : जब राजीव ने खुलवाया था राममंदिर का ताला, शुरू कराई थी पूजा हुआ था शिलान्यास

punjabkesari.in Sunday, Mar 17, 2019 - 12:01 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): इसमें कोई दो राय नहीं कि आज देश की सियासत और धर्म एक दूसरे से गहरे जुड़े हैं। हाल ही के दशकों में देश की सियासी ज़मीन पर जिस मुद्दे ने धर्म की फसल  तेज़ी से उगाई है वो मसला है आयोध्या में राम मंदिर का। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने आधुनिक समय में देश की सियासत की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दीं। बीजेपी पिछले 28 साल से इस मुद्दे के साथ  चल रही है। लेकिन दिलचस्प ढंग से यह राजीव गांधी थे जिन्होंने विवादित स्थल पर न सिर्फ पूजा शुरू करवाई थी बल्कि राममंदिर का शिलान्यास तक करवा दिया था। तो आज चर्चा इसी  विवाद की जिसकी सियासत तो शीर्ष पर है लेकिन हल दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा।

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बाबर से शुरू हुआ विवाद
आयोध्या  विवाद की शुरुआत 1528 की उस घटना से जोड़ी जाती है जिसमें बाबर ने रामजन्म स्थल पर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसे लेकर हिन्दुओं में  असंतोष पैदा हुआ। यह गुस्सा 1853 में  विस्फोट बनकर पहली बार बाहर आया और आयोध्या में साम्प्रदायिक दंगे हुए। भारत उस समय अंग्रेजों का गुलाम था। विवाद बढ़ा तो ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल की बाड़बंदी करा दी। बाद में  दोनों समुदायों को अलग-अलग हिस्सों में पूजा-इबादत की इज़ाज़त दे दी गयी। लेकिन मामला शांत  नहीं हुआ बल्कि सुलगता रहा।
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पहली बार मंदिर की मांग
आयोध्या में विवादित स्थल पर पहली बार राम मंदिर निर्माण की बात 1885 में उठी थी। महंत रघुवर दास ने विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण का प्रयास किया। प्रयास में बाधा आई तो उन्होने अदालत  का सहारा लेने की सोची। महंत रघुवर दस ने फैज़ाबाद की अदालत में मंदिर निर्माण के लिए अपील दायर कर दी। अपील बरसों सुप्तावस्था में रही। इसी बीच वर्ष 1949 में लगभग 50 हिंदुओं ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा शुरू कर दी, इस घटना के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने विवादित स्थल पर ताला लगवा दिया। वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए विशेष इजाजत मांगी थी। उसी साल महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुओं की पूजा जारी रखने के लिए एक अलग मुकदमा दायर किया। बाद में निर्मोही अखाड़े ने भूमि का मालिकाना हक़ उनके  पक्ष में करने को लेकर मुकदद्मा दायर किया। इसकी परिणति यह हुई कि 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड भी मालिकाना हक़ की इस लड़ाई में कूद गया। 
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जब शुरू हुई सियासत
अदालती दावों प्रतिदावों का प्रतिफल आने से पहले ही यह मामला चुनावी सियसत का शिकार हो गया। विश्व हिन्दू परिषद् ने 1984 में इसे लेकर आंदोलन छेड़ दिया। ऐसे में इंदिरा गांधी की हत्या की सुहानुभूति की लहर पर अकूत बहुमत लेकर सत्तासीन हुए राजीव गांधी को लगा कि कहीं यह मामला उनके खिलाफ न हो जाये इसलिए उन्होंने भी इसमें हाथ डाल दिया। वर्ष 1985 में राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया। तब उन्हें सत्ता संभाले एक साल भी नहीं बीता था।   एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। चुनाव आते-आते राजीव गांधी ने विवादित स्थल के पास राम मंदिर का शिलान्यास भी करवा दिया, लेकिन अचानक यह मुद्दा उनके हाथ से बीजेपी ने लपक लिया। बीजेपी ने विश्व हिन्दू  परिषद् के आंदोलन को समर्थन देते हुए इसे विशुद्ध रूप से सियासी मुद्दा बना दिया। 
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बीजेपी का आंदोलन, विध्वंस और शेष 
वर्ष 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुए बीजेपी के अधिवेशन में  बाकायदा राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया। 25 सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ मंदिर से आयोध्या तक रथ यात्रा शुरू कर दी। इस रथयात्रा के कारण  कई जगहों पर विवाद/दंगे हुए।  बिहार में लालू प्रसाद ने आडवाणी की रथयात्रा रोक दी और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी गाज वीपी सिंह की सरकार पर गिरी। बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह पूर्व प्रधानमंत्री हो गए। इसी बीच उत्तर प्रदेश में बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार बनी जिसने विवादी भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। इस बीच विवाद इतना बढ़ा की 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस प्रकरण। केंद्र ने लिब्राहन आयोग का गठन किया। वर्ष 2002 में विवाद सुलझाने के लिए तात्कालीन प्रधानमंत्री ने एक अयोध्या विभाग भी शुरू किया। 2002 में ही अयोध्या के विवादित स्थल पर हक को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने अयोध्या में खुदाई की, जिसमें मस्जिद के नीचे मंदिर होने के प्रमाण मिले, लेकिन मुसलमानों ने इसे स्वीकार नहीं किया। 2009 में  लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। एक हिस्सा रामलला विराजमान, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और तीसरा निर्मोही अखाड़े को देने का आदेश दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर नौ मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी और तबसे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और अदालत के बाहर इस पर सियासत जारी है।


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vasudha

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