मुस्लिम देशों में बढ़ी चिंताएं, अगले 4 साल हो सकते हैं भारी... ट्रंप की जीत पर मुस्लिम देशों में क्या चर्चा हो रही?

punjabkesari.in Thursday, Nov 07, 2024 - 03:23 PM (IST)

नेशनल डेस्क: अमेरिका के 2024 राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने बहुमत प्राप्त करके शानदार जीत हासिल की, जबकि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस को हार का सामना करना पड़ा। ट्रंप की इस जीत ने न केवल अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है, विशेष रूप से मुस्लिम देशों में इस पर गहरी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। मुस्लिम देशों के मीडिया में ट्रंप की जीत को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं। कुछ ने इसे फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए एक नई उम्मीद के रूप में देखा, जबकि अन्य इसे मुस्लिम समुदाय के लिए और कठिन दौर के रूप में मानते हैं। यहां हम आपको ट्रंप की जीत और मुस्लिम देशों में इसके संभावित प्रभाव पर हो रही चर्चाओं के बारे में विस्तार से बताते हैं।

कमला हैरिस की हार और इजरायल-गाजा युद्ध
अरब न्यूज और अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कमला हैरिस की हार का मुख्य कारण उनके इजरायल-गाजा युद्ध में फिलिस्तीनियों के प्रति निष्क्रिय रुख को बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, कमला हैरिस ने इजरायल के पक्ष में अपना रुख साफ किया और फिलिस्तीनियों के संघर्ष की अनदेखी की, जिसका असर उनके चुनावी प्रचार और वोट बैंक पर पड़ा। अरब न्यूज के एक आर्टिकल में कहा गया कि पिछले एक साल में डेमोक्रेटिक पार्टी ने इजरायल को खुलकर समर्थन दिया था, और इससे फिलिस्तीन समर्थक वोटर्स का विश्वास टूट गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कमला हैरिस ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए और ना ही इजरायल के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की आलोचना की, जिसके कारण उनके प्रति फिलिस्तीनी समुदाय का रुख नकारात्मक हो गया। इस तरह, इजरायल के प्रति उनके रुख ने चुनावी परिणामों पर असर डाला।

"ट्रंप और हैरिस में कोई फर्क नहीं" : फिलिस्तीनी पत्रकार की टिप्पणी
AA.COM पर छपे एक आर्टिकल में फिलिस्तीनी पत्रकार अब्दुल्लाह मिकदाद ने कहा कि चाहे व्हाइट हाउस में ट्रंप हों या कमला हैरिस, इजरायल के प्रति अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी समुदाय के लिए सबसे जरूरी यह है कि अगला अमेरिकी राष्ट्रपति इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में काम करे और 'टू स्टेट सॉल्यूशन' लागू करे। उनका यह भी कहना था कि फिलिस्तीनी अमेरिका में एक ऐसी सरकार देखना चाहते हैं जो क्षेत्र में युद्ध को बढ़ाने की बजाय शांति की दिशा में काम करे। मिकदाद के अनुसार, चाहे ट्रंप जीते या हैरिस, फिलिस्तीनी समुदाय के लिए अमेरिकी नीति में कोई बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है।

गाजा में निराशा और उम्मीदें
गाजा के निवासी खालिद अबू ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें भविष्य में कोई सुधार नहीं दिखता, चाहे कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति बने। उनका कहना था कि गाजा में लोग सीमाओं की बंदी, खाद्य संकट, और आपूर्ति की कमी से थक चुके हैं। खालिद ने कहा, "हम थक गए हैं। हम बस संघर्ष के खत्म होने की उम्मीद करते हैं।" इसके विपरीत, इब्राहिम अबू मुरासा, जो हाल ही में उत्तरी गाजा से भागकर अमेरिका आए थे, ने ट्रंप के जीतने पर उम्मीद जताई कि अमेरिकी नीति में कुछ बदलाव हो सकता है, जिससे गाजा में संघर्ष कम हो सकता है। मुरासा ने बाइडन प्रशासन पर गाजा में नरसंहार में शामिल होने का आरोप लगाया और कहा कि ट्रंप के प्रशासन में फिलिस्तीनी मुद्दे पर ज्यादा निष्पक्षता हो सकती है।

मुस्लिम अमेरिकियों के लिए चिंताएं
ट्रंप की जीत के बाद मुस्लिम अमेरिकियों के बीच चिंता बढ़ गई है। दलिया मोगाहेद, जो पूर्व में "इंस्टिट्यूट फॉर सोशल पॉलिसी एंड अंडरस्टैंडिंग" की शोध निदेशक रह चुकी हैं, ने चेतावनी दी कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में मुस्लिम समुदाय को और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। मोगाहेद का कहना था कि जब ट्रंप 2017 में पहले राष्ट्रपति बने थे, तो उन्होंने मुस्लिम बहुल देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद अमेरिकी मुस्लिम समुदाय में असंतोष बढ़ गया था। अब ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में यह समुदाय और भी अलग-थलग महसूस कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जो कोई भी फिलिस्तीनी मानवाधिकारों की वकालत करता है, उनके लिए यह चार साल बहुत कठिन हो सकते हैं। मोगाहेद के अनुसार, ट्रंप के प्रशासन में मुस्लिम और फिलिस्तीनी समुदाय को और भी नकारात्मक नीतियों का सामना करना पड़ सकता है।

डेमोक्रेटिक पार्टी का खोया हुआ विश्वास
राशा मुबारक, जो फ्लोरिडा से एक फिलिस्तीनी अमेरिकी आयोजक हैं, ने कहा कि कमला हैरिस की हार यह साबित करती है कि डेमोक्रेटिक पार्टी अपने मूल्यों से भटक चुकी है और उसने अपने वोटरों की आवाज़ को ठीक से नहीं सुना। राशा का कहना था कि जब ट्रंप पहले से ही इजरायल के पक्ष में थे, तो हैरिस को इजरायल युद्ध से जुड़ी मानवीय चिंताओं पर बात करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की। राशा ने आगे यह भी कहा कि बाइडन प्रशासन के पास इजरायल पर हथियारों की सप्लाई पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति थी, लेकिन इसके बजाय उन्होंने इजरायल के नरसंहार का समर्थन किया, जिससे फिलिस्तीनियों के लिए परिस्थितियां और कठिन हो गईं। 

मुस्लिम देशों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं
अलजजीरा में प्रकाशित एक आर्टिकल में यह कहा गया कि ट्रंप के कार्यकाल में मुस्लिम देशों में निराशा बढ़ सकती है, क्योंकि उनका इजरायल के प्रति रुख पूरी तरह से स्पष्ट है। मुस्लिम समुदाय को यह डर है कि ट्रंप के प्रशासन में इजरायल को और अधिक समर्थन मिलेगा, और फिलिस्तीनी अधिकारों के लिए संघर्ष और अधिक कठिन हो सकता है। वहीं, कुछ अन्य रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से फिलिस्तीनी मुद्दे पर कोई बड़ा बदलाव हो सकता है, क्योंकि वह इजरायल के साथ अपनी नीतियों को लेकर हमेशा सख्त रहे हैं। इसके साथ ही, गाजा और अन्य फिलिस्तीनी क्षेत्रों में संघर्ष कम करने के लिए ट्रंप की जीत से उम्मीदें भी जताई जा रही हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की 2024 की जीत ने मुस्लिम देशों में काफी चर्चाएं और चिंताएं पैदा की हैं। जहां कुछ लोग इसे फिलिस्तीनी संघर्ष के समाधान के रूप में देख रहे हैं, वहीं अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग इसे एक और कठिन दौर के रूप में देख रहे हैं। ट्रंप के इजरायल के प्रति स्पष्ट समर्थन और फिलिस्तीनी मुद्दे पर उनके रुख ने मुस्लिम समुदाय के लिए आने वाले चार सालों को और भी कठिन बना दिया है। अब देखना यह होगा कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी नीति में कोई बड़ा बदलाव आता है या नहीं, और क्या यह बदलाव फिलिस्तीनियों के लिए सकारात्मक होगा। लेकिन फिलहाल, मुस्लिम देशों और अमेरिकी मुस्लिम समुदाय के बीच एक स्पष्ट निराशा की लहर है, क्योंकि उनके लिए ट्रंप का दूसरा कार्यकाल एक और चुनौतीपूर्ण समय के रूप में सामने आ सकता है।

 


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Content Editor

Mahima

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