स्टिंग केस: CBI ने करीब 5 घंटे की रावत से पूछताछ, कई सवालों के नहीं दिए जवाब

punjabkesari.in Wednesday, May 25, 2016 - 01:10 PM (IST)

नई दिल्ली: सी.बी.आई. ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से जुड़े स्टिंग ऑपरेशन की जांच के सिलसिले में उनसे मंगलवार को करीब पांच घंटे तक पूछताछ की। जांच एजेंसी ने दावा किया कि उन्होंने पूछताछ के दौरान कुछ सवालों के पूरी तरह जवाब नहीं दिए। रावत कुछ समर्थकों और एक विधायक के साथ मंगलवार को पूर्वाह्न 11 बजे सी.बी.आई. मुखियालय पहुंचे  संभवत: पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो पद पर रहते हुए किसी प्राथमिक जांच के मामले में पूछताछ के लिए सी.बी.आई. के मुख्यालय आए थे।

उनसे शाम चार बजे तक पूछताछ की गई जिस दौरान न्यूज चैनल के मालिक के साथ उनके संबंधों, उनके तथा उनके मंत्रिमंडल के एक मंत्री द्वारा एक बागी विधायक को कथित रिश्वत के प्रस्ताव आदि को लेकर सवाल जवाब किए गए। सीबीआई के प्रवक्ता देवप्रीत सिंह ने बताया, ‘‘उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से कथित स्टिंग ऑपरेशन की जांच के संबंध में पूछताछ की गई और आगे भी पूछताछ जारी रहेगी। उन्हें फिर से बुलाया जाएगा।’’

एजेंसी सूत्रों ने बाद में दावा किया कि रावत कई ऐसे मद्दों का संपूर्ण विवरण नहीं दे पाए जिनके लिए उन्हें फिर से बुलाया गया है जिसका उन्होंने यह कहते हुए विरोध किया कि उन्होंने एजेंसी के साथ पूरी तरह सहयोग किया है। सूत्र हालांकि यह ब्यौरा देने में विफल रहे कि किन बिंदु विशेष पर रावत ने विस्तृत जानकारी नहीं दी। पूछताछ के बाद बाहर आने पर रावत ने कहा कि वह जांच टीम द्वारा पूछे गए सवालों का खुलासा नहीं कर सकते।

रावत ने कहा, ‘‘ मुझे कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है। न मैंने विधायकों की कोई खरीद-फरोख्त की है और न ही किसी को कोई पैसा दिया है। मैंने कभी नहीं कहा कि मुझे विधायक चाहिए। मैं सात जून को फिर आऊंगा। इलैक्ट्रोनिक मीडिया के लोग हर जगह पहुंच जाते हैं। मैंने उस पत्रकार को इज्जत बख्शी और उसने मुझे ब्लैकमेल किया। मीडिया को इस पर चिंतन करने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा कि वह 9 मई को नहीं आ सके क्योंकि उस दिन वह कुछ दिन बाद होने वाले विधानसभा शक्ति परीक्षण में लगे थे।

सी.बी.आई. ने ‘स्टिंग ऑपरेशन’ की जांच के लिए 29 अप्रैल को प्रारंभिक जांच दर्ज की थी। इस स्टिंग ऑपरेशन में रावत बागी कांग्रेसी विधायकों को कथित रूप से रिश्वत की पेशकश करते दिखाए गए हैं, ताकि वे विधायक उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान उनका समर्थन करें। प्रारंभिक जांच राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रदेश सरकार से मिली अनुशंसा और बाद में भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना के आधार पर दर्ज की गई थी।


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