तुलसीदास जयंती: प्रेत ने करवाए थे हनुमान जी के दर्शन, जानें कैसे

punjabkesari.in Wednesday, Aug 07, 2019 - 07:45 AM (IST)

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राम चरितमानस के रचयिता महान संत, भक्त एवं कवि तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ, भगवान शंकर जी ने श्री राम जी के चरण कमलों में नित्य-निरंतर अनन्य भक्ति प्राप्त होने के लिए जिस दुर्गम मानस रामायण  की रचना की, उस मानस रामायण को श्री रघुनाथ जी के नाम में समा कर अपने अंतकरण के अंधकार को मिटाने के लिए तुलसीदास जी ने मानस के रूप में भाषाबद्ध किया। यह रामचरित मानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और भक्ति को प्रदान करने वाला, माया, मल और मोह का नाश करने वाला, कलियुग के समस्त पापों का नाश, अतिशुभ, मंगलमय तथा कल्याणकारी है।

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तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। कलियुग में ही इन्हें भगवान राम और लक्ष्मण जी के दर्शन हुए। एक बार काशी में इनकी भेंट एक प्रेत से हुई। प्रेत ने इन्हें हनुमान जी के दर्शन प्राप्त करने का उपाय बताया। बड़े प्रयासों से इन्हें हनुमान जी के दर्शन हुए।

हनुमान जी के दर्शन होने के पश्चात तुलसीदास जी ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि वे उन्हें भी राम जी के दर्शन करवा दें। सर्वप्रथम तो हनुमान जी ने तुलसीदास जी को बहलाने का प्रयास किया परंतु तुलसीदास जी की रघुनाथ जी के प्रति अनन्य भक्ति एवं निष्ठा देख कर हनुमान जी बोले कि उन्हें प्रभु राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे।

तुलसीदास जी ने हनुमान जी के निर्देशानुसार चित्रकूट में डेरा जमा लिया। निश्चित दिन जब तुलसीदास जी प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे तुलसीदास जी से मार्ग पूछने लगे। उन्हें देख कर तुलसीदास जी सुधबुध खो बैठे। तब वे दोनों युवक वहां से चले गए। तब हनुमान जी वहां प्रकट हुए और तुलसीदास जी को बताया कि वे दोनों युवक राम-लक्ष्मण जी थे।

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तुलसीदास जी को अत्यंत पछतावा हुआ कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसीदास जी को दुखी देख हनुमान जी ने उनको सांत्वना दी और कहा कि कल प्रात: पुन: आपको आपके प्रिय प्रभु रघुनाथ जी के दर्शन होंगे। प्रात: काल स्नान ध्यान करने के पश्चात जब तुलसीदास जी चित्रकूट के घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक रूप में भगवान श्री राम तुलसीदास जी के पास आए और कहने लगे, ‘‘बाबा हमें चंदन नहीं दोगे।’’

हनुमान जी को लगा कि इस बार भी तुलसीदास जी कहीं भूल न कर बैठें अत: उन्होंने तोते का रूप धारण किया और दोहा बोलने लगे : 
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास जी ने अपने प्रभु को अपने समक्ष देखा तो वे बेसुध होकर अपने प्रभु को निहारने लगे, प्रेमपूर्ण अश्रुधारा से उन्होंने अपने प्रभु के चरण पखारे। रघुनाथ जी ने तुलसीदास जी का हाथ पकड़ पहले स्वयं को तिलक लगाया, तुलसीदास जी के माथे पर तिलक लगा अपने भक्त को कृतार्थ कर अंतर्ध्यान हो गए।

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प्रयागराज में तुलसीदास जी को भारद्वाज ऋषि तथा याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए। भगवान शंकर तथा मां पार्वती जी ने तुलसीदास जी को दर्शन देकर कहा कि तुम अयोध्या जाकर रहो वहां सरल भाषा में काव्य रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी रचना सामवेद के समान फलवती होगी।

तुलसीदास जी भगवान गौरी शंकर की आज्ञा को शिरोधार्य मान कर अयोध्या गए और श्री रामनवमी के दिन श्री रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन में संवत 1633 मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष की विवाह पंचमी (राम विवाह) के दिन श्री रामचरित मानस के सातों कांड पूर्ण हुए। उनके द्वारा रचित मानस, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा जन-जन तक पहुंच चुका है।

भगवान श्री राम के इस परम पावन और सुहावने चरित्र को भगवान शिव ने रचा, फिर कृपा करके पार्वती जी को सुनाया। वही चरित्र शिव जी ने राम भक्त और अधिकारी जान कर काकभुशुंडि जी को प्रदान किया। काकभुशुंडि जी से मुनि याज्ञवल्क्य जी ने पाया। याज्ञवल्क्य जी से भरद्वाज ऋषि ने प्राप्त किया और कलियुग में उस पावन श्री राम कथा को श्री रामचरित मानस के रूप में रच कर संत तुलसीदास जी ने पहुंचाया। 

मानव कवि तुलसीदास जी की प्रतिभा की किरणों से न केवल हिन्दू सनातन समाज बल्कि समस्त संसार आलोकित हो रहा है। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। परब्रह्म श्री राम जिन्हें वेदों ने भी नेति-नेति कह कर पुकारा उनकी पावन र्कीत लोकभाषा में लिख कर हिन्दू सनातन धर्म पर महान उपकार किया। 

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त तुलसीदास जी ने आज श्री रामचरित मानस के माध्यम से जन-जन के हृदय पटल पर ज्ञान की ज्योति जगाई है तथा घर-घर में वैदिक मर्यादा का ज्ञान उद्भासित अथवा सुशोभित हो रहा है।


 


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Niyati Bhandari

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