365 दिनों में सिर्फ दिवाली पर खुलता है यह मंदिर, सालभर जलता है दीपक और फूल भी रहते हैं एकदम ताजा

punjabkesari.in Saturday, Oct 26, 2024 - 06:42 AM (IST)

नेशनल डेस्कः भारत में ऐसी कई जगह हैं, जो अपनी चमत्कारिक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। खासतौर से यहां के मंदिर अविश्‍वसनीय मान्‍यताओं के लिए जाने जाते हैं। इन्‍हीं में से एक है हसनंबा मंदिर। बेंगलुरु से लगभग 180 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर हसन में स्थित है। देवी शक्ति या अम्बा को समर्पित, हसनंबा मंदिर 12 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था। उन्हें हसन की पीठासीन देवता के रूप में माना जाता है और शहर का नाम हसन देवी हसनंबा से लिया गया है। पहले हसन को सिहमासनपुरी के नाम से जाना जाता था। हालांकि मंदिर की अपनी खासियत और किवदंतियां हैं। मंदिर अपने भक्‍तों के लिए साल में एक सप्‍ताह के लिए केवल एक बार खुलता है। तो आइए जानते हैं दक्षिण भारत में मशहूर इस मंदिर के बारे में।
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मंदिर का इतिहास
प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि यहां बहुत समय पहले एक राक्षस अंधकासुर हुआ करता था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और वरदान के रूप में अदृश्य होने का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस वरदान को पाकर उसने ऋषि, मुनियों और मनुष्यों का जीवन जीना दूभर कर दिया। ऐसे में भगवान शिव ने उस राक्षस का वध करने का जिम्मा उठाया। लेकिन उस राक्षस के खून की एक-एक बूंद राक्षस बन जाते थे। तब उसके वध के लिए भगवान शिव ने तपयोग से योगेश्वरी देवी का निर्माण किया, जिन्‍होंने अंधकासुर का नाश कर दिया। 
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मंदिर की वास्‍तुकला
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब सात मातृका यानी ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वारही, इंद्राणी और चामुंडी दक्षिण भारत में तैरते हुए आईं, तो वे हसन की सुंदरता देखकर हैरान रह गई और यहीं बसने का फैसला किया। हसनंबा और सिद्धेश्वर को समर्पित इस मंदिर के परिसर में तीन मुख्‍य मंदिर हैं। हसनंबा में मुख्य मीनार का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। यहां का एक अन्य प्रमुख आकर्षण कलप्पा को समर्पित मंदिर भी है। 
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साल भर बाद भी फूल रहते हैं ताजा, जलता रहता दीया
यह मंदिर दीपावली पर 7 दिनों के लिए खोला जाता है और बालीपद्यमी के उत्सव के तीन दिन बाद बंद कर दिया जाता है। इस मंदिर के कपाट खुलने पर यहां हजारों की संख्या में भक्त मां जगदम्बा के दर्शन और उनसे आशीर्वाद पाने के लिए यहां पहुंचते हैं। जिस दिन इस मंदिर के कपाट को बंद किया जाता है, उस दिन मंदिर के गर्भगृह में शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है। साथ ही मंदिर के गर्भगृह को फूलों से सजाया जाता है और चावल से बने व्यंजनों को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।स्थानीय लोग बताते हैं कि साल भर बाद जब दीपावली के दिन मंदिर के कपाट खोले जाते है तो मंदिर के गर्भगृह का दीया जलता हुआ मिलता है और देवी पर चढ़ाए हुए फूल और प्रसाद एकदम ताजा मिलते हैं। 

कैसे पहुंचे हसनंबा मंदिर?
हवाई मार्ग: हसनंबा मंदिर के नजदीकी एयरपोर्ट बेंगलुरू है। आप बेंगलुरू एयरपोर्ट से वहां पहुंच सकते हैं और फिर वहां से टैक्सी या अन्य साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
रेल मार्ग: यहां जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन बेंगलुरू, मैसूर या हुबली है जो कि हसनंबा मंदिर के लिए सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं। आप इन स्थानों से ट्रेन या बस का इस्तेमाल करके मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग: हसनंबा मंदिर आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा या खुद की गाड़ी का इस्तेमाल करके पहुंच सकते हैं।


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Content Writer

Pardeep

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