अस्पताल में बच्चियों को छोड़ गए थे माता-पिता, अब संभाल रहीं ‘पांच मांएं

punjabkesari.in Sunday, Mar 11, 2018 - 01:21 PM (IST)

नेशनल डेस्कः एक फिजियोथैरेपी सैशन के दौरान जब एक बच्चे ने रिद्धि और सिद्धि से उनकी मां के बारे में पूछा तो बी.जे. वाडिया अस्पताल के स्टाफ की आंखों में आंसू छलक आए। रिद्धि ने कहा, ‘‘मेरी एक छोटी मम्मा हैं, बड़ी मम्मा है, मीना मम्मा हैं, हैलेन मम्मा हैं और मिनी मम्मा भी हैं।’’ रिद्धि और सिद्धि जन्म के समय एक-दूसरी से जुड़ी हुई थीं। 1 जनवरी 2014 को वाडिया अस्पताल के 20 डाक्टरों की टीम ने एक सफल आप्रेशन के दौरान दोनों को अलग किया था। इन दोनों को उनके अभिभावक छोड़ कर कहीं अज्ञात स्थान पर चले गए थे। दोनों बच्चियों की मां शोभा पवार तथा पिता अरुण पवार सर्जरी के कुछ दिन बाद ही पनवेल (मुंबई) स्थित अपने किराए के मकान से बिना किसी को कुछ बताए चले गए थे। अस्पताल में रजिस्टर्ड अरुण का फोन नंबर तब से ही स्विच ऑफ आ रहा है।

रिद्धि और सिद्धि की पांच माएं
यह सच है कि रिद्धि और सिद्धि की अब पांच बहुत ही स्नेहमयी मांएं हैं जो वाडिया अस्पताल के पीडिएट्रिक वार्ड की सदस्याएं हैं। इन दोनों बच्चियों का अस्पताल के दूसरे माले पर एक एयरकंडीशन्ड कमरा है जिसमें टॉयलेट तथा बाथरूम भी हैं। जरूरत पड़ने पर उनकी देखभाल के लिए 3 नर्सें हमेशा मौजूद रहती हैं। सर्जरी के बाद रिद्धि और सिद्धि को दो वर्ष तक अलग-अलग कमरों में रखा गया था। गत वर्ष जनवरी में दोनों को फिट घोषित कर दिया गया था। हालांकि अस्पताल के पास यह अधिकार था कि वह इन दोनों बच्चियों को अनाथालय भेज दे, परंतु यह निर्णय लिया गया कि 18 वर्ष की होने तक दोनों कहीं नहीं जाएंगी।
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बच्चियों की जिम्मेदारी अब अस्पताल की
वाडिया अस्पताल की सी.ई.ओ. तथा रिद्धि-सिद्धि की ‘पांच मांओं’ में से एक डा. मिन्नी बोढऩवाला कहती हैं कि दोनों बच्चियों को अस्पताल के स्टाफ से जुदा करना बहुत घातक होगा क्योंकि स्टाफ ने बहुत ही प्यार से उन्हें पाला है। वह कहती हैं, ‘‘बच्चियों के माता-पिता को ढूंढने के हमारे सारे प्रयास असफल रहे हैं। इस अवस्था में हम उन्हें अनाथालय नहीं भेजना चाहते। हम उनके 18 वर्ष के होने तक उनकी देखभाल करेंगे। उसके बाद दोनों अपना फैसला खुद ले सकेंगी।’’ रोज सुबह रिद्धि-सिद्धि को एक घंटा फिजियोथैरेपी करवाई जाती है। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ेगी उन्हें कुछ और आप्रेशन्स की जरूरत पड़ेगी। अस्पताल के पास दोनों के भोजन, कपड़ों तथा दवाओं के लिए एक अलग बैंक अकाऊंट है। उनके लिए नियमित तौर पर डोनेशन्स आती हैं। उन्हें हाल ही में ट्राइसाइकिल्स मिले हैं।
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मां-बाप ने बच्चियों को बताया श्राप
रिद्धि और सिद्धि का जन्म 6 मई 2013 को पनवेल के ओलावे गांव में अपनी दादी तथा एक दाई की मौजूदगी में हुआ था। दोनों जन्म से ही कमर से जुड़ी हुई थीं। ऐसे बच्चों को मैडीकल भाषा में ‘इशियोपेगस ट्विन्स’ कहा जाता है। यह एक विरल स्थिति है जो 50 हजार से 1 लाख बच्चों के दरम्यान होती है। दोनों के गर्भाशय (यूटेरस) तथा मूत्राशय (यूरिनरी ब्लैडर) एक ही थे। दोनों बच्चियों के माता -पिता शोभा तथा अरुण पवार उन्हें भगवान का श्राप कहते थे। उन्होंने योजना बनाई कि दोनों बच्चियों को किसी धार्मिक स्थल पर छोड़ दिया जाए। उनकी इस योजना का पता जब प्रथम नामक एन.जी.ओ. को चला तो उन्होंने मामले में हस्तक्षेप किया। 9 मई 2013 को जब दोनों को वाडिया अस्पताल लाया गया था तो डाक्टरों ने कहा कि उनके बचने के चांस कम हैं। दोनों में से कोई एक ही बचेगी।
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फिर भी अस्पताल ने जोखिम लेने का निर्णय किया और 20 डाक्टरों की टीम ने 17 जनवरी 2014 को 24 घंटे चले आप्रेशन में दोनों को ठीक-ठाक अलग कर दिया। जब बच्चियां अलग हुई थीं तो शोभा और अरुण उन्हें देखने आए थे। वे दोनों रिद्धि-सिद्धि के पहले जन्म दिन पर भी मौजूद थे, परंतु उसके बाद ऐसे गायब हुए कि आज तक उनका किसी को कुछ पता नहीं। आज रिद्धि-सिद्धि की देखभाल का जिम्मा उनकी पांच मांएं उठा रही हैं, जिनमें डा. बोढ़नवाला, सिस्टर मीना काटकर तथा सिस्टर श्रद्धा जाधव प्रमुख हैं। उनकी अन्य दो मांएं भी अस्पताल के स्टाफ में ही शामिल हैं।


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