क्या अब मणिपुर में उलट-फेर की बारी है ?

punjabkesari.in Wednesday, Mar 30, 2016 - 05:16 PM (IST)

नैनीताल स्थित हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शाासन लागू किए जाने के विरुद्ध दायर की गई याचिका पर हरीश रावत को राहत नहीं मिली है। वे सदन में बहुमत साबित कर पाएंगे या नहीं,यह तय नहीं हो पाया है। कांग्रेस के लिए यह बड़े राहत की बात है। लेकिन उसे अपने एक ओर राज्य की चिंता ने भी घेरा हुआ है। वह है मणिपुर। कांग्रेस शासित इस प्रदेश में 25 पार्टी विधायकों ने मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उत्तराखंड की स्थिति कल दोपहर तक साफ हो जाएगी,उसके बाद कांग्रेस पूरे दम खम के साथ मणिपुर को बचाने के लिए जोर लगाएगी। 

मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार बनी थी उस समय देश के 11 राज्यों में कांग्रेस का शासन था। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हरियाणा और महाराष्ट्र में पराजय का सामना करना पड़ा इसके बाद 9 राज्यों में कांग्रेस सरकार बची थी। इनमें अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड की स्थिति जगजाहिर हो चुकी है। 2014 के आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की बात की थी। माना जा रहा है कि इसकी शुरूआत हो चुकी है। अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड के बाद मणिपुर की जो स्थिति है,ऐसे में कांग्रेस का चिंतित होना स्वाभाविक है।

उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी के अंदर बढ़ते असंतोष को भाजपा ने भुनाने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद भाजपा की मदद से वहां सरकार का गठन हो चुका है। अब कांग्रेस की फिलहाल सात राज्यों में सरकार है। कर्नाटक, केरल, असम, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और मेघालय। हिमाचल में पूर्व ओर वर्तमान मुख्यमंत्रियों में वाकयुद्ध चल रहा है। आय के ज्ञात स्रोतों से आय अर्जित करने के मामले में वीरभद्र सिंह फंसे हुए हैं,लेकिन वे अपनी सरकार की मजबूती का दावा कर रहे हैं। अगले महीने केरल व असम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। असम में भाजपा ने असम गण परिषद के साथ हाथ मिला लिया है। तीन उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर मिजोरम व मेघालय में अस्थिरता का माहौल है। मणिपुर में 2017 में चुनाव होने हैं।

मणिपुर में भी असंतोष अपने चरम पर है। कांग्रेस आलाकमान को वहां सत्ता जाने का डर सता रहा है। यही वजह है कि आल इंडिया कांग्रेस कमिटी ने मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह को कुछ विशेष परामर्श दिया है। दरअसल,मुख्यमंत्री ने कुछ मंत्रियों को पद से हटा दिया था। इसके बाद इस फैसले को कुछ बागी विधायकों ने चुनौती दे दी। इस चुनौती से कहीँ अरुणाचल प्रदेश व उत्तराखंड जैसा हश्र न हो जाए, इस डर से कांग्रेस आलाकमान डैमेज कंट्रोल और शांति बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। 

मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ पार्टी के 25 विधायकों ने मोर्चा खोला हुआ है। इन विधायकों ने कैबिनेट में फेरबदल की मांग की है। कांग्रेस अपने नाराज विधायकों को बीजेपी में शामिल होने से रोकने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इबोबी सिंह को दिल्ली तलब कर चुकी हैं। कांग्रेस नेता वी. नारायणसामी का दावा है कि मणिपुर में स्थिति पर पार्टी की पूरी नजर हैं। सारे मतभेद जल्द सुलझाए जाएंगे। नाराज एमएलए को मना लिया जाएगा। 

गौातलब है कि 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 60 में से 42 सीटेों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। इसके बाद 3 अप्रैल 2014 को मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी के 5 विधायक भी कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इससे कांग्रेस को और मजबूती मिली। विधानसभा में उसकी सदस्य संख्या 47 हो गई। इस बीच हाईकोर्ट ने दलबदल कानून के तहत 3 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी। वर्तमान में कांग्रेस के 25 असंतुष्ट विधायक मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ हैं। कांग्रेस हाईकमान नहीं चाहता कि उत्तराखंड के बाद मणिपुर में राजनीतिक संकट गहराए। 

कांग्रेस की नींद तब उड़ गई जब 25 असंतुष्ट विधायकों ने भाजपा में शामिल होने की धमकी दे दी। वे राज्य के कुछ मंत्रियों को हटाए जाने के प्रति विरोध जता चुके हैं और उनकी मांग है कि मुख्यमंत्री बागी विधायकों को भी मंत्रिमंडल में शामिल करें। वहां स्थिति और न बिगड़ जाए कांग्रेस हाईकमान इबोबी सिंह को बागियों के साथ समझौता करने के संकेत दे चुके हैं।  

 


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