केंद्रीय गृहमंत्री ने स्टैचु ऑफ पीस का श्रीनगर में किया लोकार्पण, कहा- स्थापना देश एवं जम्मू कश्मीर के लिए शुभ

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2022 - 04:44 PM (IST)

श्रीनगर/जम्मू (उदय): केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने वीरवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से श्रीनगर में स्वामी रामानुजाचार्य की शांति की प्रतिमा का अनावरण किया। उपराज्यपाल मनोज सिन्हाए देश भर के संतों और स्वामी रामानुजाचार्य के अनुयायियों के साथ श्रीनगर के शुरयार मंदिर में अनावरण समारोह में शामिल हुए।


केंद्रीय गृह मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि आज कश्मीर में संगमरमर से बनी स्वामी रामानुजाचार्य की शांति प्रतिमा का अनावरण करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। भारत के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में जब भी समाज को सुधारों की जरूरत पड़ी, एक महान व्यक्ति सच्चा मार्ग दिखाने के लिए आगे आया है और रामानुजाचार्य का जन्म भी ऐसे समय में हुआ था जब देश को एक महान व्यक्ति की जरूरत थी। आज इस अवसर पर मैं रामानुजाचार्य के जीवनए कार्यों और व्यक्तित्व को नमन करता हूं।


अमित शाह ने कहा कि जब सामाजिक एकता को तोड़ा जा रहा था, समाज में अनेक बुराइयां आ रही थीं, तब रामानुजाचार्य को भेजा गया और उन्होंने वैष्णववाद को उसके मूल से जोडऩे का महान कार्य किया। शाह ने कहा कि 2017 में परम पूज्य जीयर स्वामी की लगन और लगन से देश भर में भगवत रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती का समारोह हुआ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से देश को भगवत रामानुजाचार्य का संदेश भेजा। तब लिए गए संकल्प के अनुसार हैदराबाद में रामानुजाचार्य का एक विशाल स्मारक बनाया गया है जो न केवल उनके जीवन के संदेश को भविष्य में ले जाएगा बल्कि यह दक्षिण भारत में सनातन धर्म का स्थान भी बन गया है जो चारों ओर फैल गया है। दक्षिण। भारत में धार्मिक चेतना का सुदृढ़ीकरण भी हुआ है।


अमित शाह ने कहा कि आज कश्मीर में इस शांति प्रतिमा की स्थापना पूरे देश विशेषकर जम्मू.कश्मीर के लिए एक बहुत ही शुभ संकेत है। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में जम्मू.कश्मीर शांति और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में श्री मनोज सिन्हा ने कश्मीर में आतंकवाद पर निर्णायक वर्चस्व स्थापित किया है। मनोज सिन्हा ने बिना किसी भेदभाव के कश्मीर के लोगों तक विकास पहुंचाया है। लंबे समय के बाद देश को उम्मीद थी कि अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाया जाना चाहिए और कश्मीर को भारत के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। यह उम्मीद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पूरी की और 5 अगस्त 2019 से कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत हुई। ऐसे समय में इस शांति प्रतिमा की स्थापना से सभी धर्मों के कश्मीरियों को रामानुजाचार्य का आशीर्वाद और संदेश मिलेगा और कश्मीर को शांति और प्रगति के पथ पर आगे ले जाएगा।


अमित शाह ने कहा कि एक तरह से रामानुजाचार्य का जीवन और कार्य स्थल ज्यादातर दक्षिण भारत में था। लेकिन उनकी शिक्षा और प्रेम का प्रसार पूरे देश में दिखाई देता है। रामानुजाचार्य और उनके शिष्य रामानंद के मूल संदेश से देश भर में कई संप्रदायए संप्रदाय विकसित हुए हैं। इसी का नतीजा है कि आज कश्मीर में शांति प्रतिमा स्थापित की गई है। यह प्रतिमा न केवल कश्मीर बल्कि पूरे भारत को शांति का संदेश देगी। यह मूर्ति चार फीट ऊंची और शुद्ध सफेद मकराना संगमरमर से बनी है और इसका वजन लगभग 600 किलोग्राम है। कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित यदुगिरी का यतिराज मठ मेलकोट में एकमात्र मूल मठ है जो रामानुजाचार्य के समय से अस्तित्व में है।


केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जब गुजरात में भूकंप आयाए तो जीयर स्वामी उन संतों में सबसे पहले वहां पहुंचे और गांवों का पुनर्निर्माण किया। गुजरात सरकार भी अगले साल वहां रामानुजाचार्य की भव्य प्रतिमा स्थापित करने जा रही हैए ताकि कच्छ के लोग यदुगिरी मठ द्वारा किए गए कार्यों को याद रखें। रामानुजाचार्य ने अपने गुरु यमुनाचार्य से प्राप्त आदेशों के माध्यम से मठ की स्थापना की। आज यतिराज मठ के 41वें मठाधीश ने रामानुजाचार्य के जीवन का संदेश एक बार फिर से जीवंत कर दिया है। रामानुजाचार्य के जीवन की कई घटनाएं हमें युगों.युगों तक प्रेरित कर सकती हैं।


केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि रामानुजाचार्य का जन्म तमिलनाडु में विक्रम संवत 1074 में हुआ था और केशवाचार्य और माता कांतिमणि के इस अद्भुत बच्चे ने अपनी किशोरावस्था में शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया था। 23 वर्ष की आयु में गृहस्थ आश्रम को छोडक़र श्रीरंगम के यतिराज सन्यासियों ने उन्हें सन्यास में दीक्षा दी और फिर श्री रामानुजाचार्य विद्वानए क्रांतिकारी और अग्रणी बने जिन्होंने अपने समय में अनेक सामाजिक परिवर्तन लाए। उन्होंने अपना पूरा जीवन धर्मए भक्ति और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। कश्मीर से उसके गहरे संबंध थे। रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत संप्रदाय के माध्यम से समावेशी समाजए धर्म और दर्शन की पुनव्र्याख्या की। मनसाए वाचाए कर्मण के सूत्र को अपनाकर उन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उनके संदेश से देश भर में कई संप्रदायों का उदय हुआ। गुजरात के प्रसिद्ध कवि नरसी मेहता ने रामानुजाचार्य के संदेश के साथ श्वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाने रेश् की रचना की। संत कबीर ने भी स्वीकार किया कि वह जो कुछ भी कर सकते हैं।


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Content Writer

Monika Jamwal

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