सोशल मीडिया के अफवाहबाजों का नया कारनामा, गौरी लंकेश को बनाया ईसाई
punjabkesari.in Friday, Sep 08, 2017 - 08:28 PM (IST)
नई दिल्लीः कर्नाटक की वरिष्ठ पत्रकार गौरी लकेंश ने मौत से पहले पत्रिका में आखिरी संपादकीय फेक न्यूज के ऊपर ही लिखा था लेकिन अब मौत के बाद उन्हें ही लेकर सोशल मीडिया पर फेक न्यूजों का बाजार गरम हो गया है। बता दें, उनके अंतिम संस्कार में उन्हें दफनाए जाने के बाद ऐसी खबरें फैलाई जा रही हैं कि गौरी लंकेश का असली नाम 'गौरी लंकेश पैट्रिक' था और वह एक ईसाई थीं। कुछ ने एक कदम आगे जाते हुए गौरी को ईसाई मिशनरी तक घोषित कर दिया।
It reached WhatsApp too.
— SM Hoax Slayer (@SMHoaxSlayer) September 7, 2017
From Patrike (पत्रिके) to Patrick, then to theories & fictions. #TheUsualTrick
Last time it was Pranav CBI Raid pic.twitter.com/Oqx4Kx0fEz
देश में फेक न्यूज सोशल मीडिया का ट्रेंड बन गया है। इन फेक न्यूज की पड़ताल करने वाली वेबसाइट बूमलाइव के मुताबिक, ऐसी खबरें सोशल मीडिया पर उड़ाई जा रही हैं जिसमें उनका ताल्लखु ईसाई धर्म से है। इसी तरह एसएम होक्स नाम के ट्विटर हैंडल, जो फेक न्यूज की सच्चाई सामने लाता है, उसने भी कहा कि गौरी शंकर की धार्मिक पहचान को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
यही ही नहीं, उनकी ऐसी तस्वीरें भी शेयर की जा रही हैं, जिसमें उनके हाथ में शराब का गिलास है। शराब के गिलास से लोग ये साबित करना चाहते हैं कि वे इसकी वजह से बुरी हो जाती हैं और उनकी हत्या की जा सकती है? लेकिन सोशल मीडिया में अफवाहों की फूहड़ता ने इस तरह का चरित्र हनन करना यहां अब आम बना दिया है लेकिन इस तरह के तर्क देकर किसी भी तरह हत्या को जायज ठहराने का ऐसा दुस्साहस पहले कभी नहीं देखा गया।वहीं उन्हें दफनाए जाने को लेकर गौरी के भाई इंद्रजीत के अनुसार, उनके अंतिम संस्कार में कोई कर्मकाण्ड नहीं हुआ। असल में गौरी एक नास्तिक थीं और उनके विश्वास का सम्मान किया गया। इससे इतर देखा जाए तो भी वे ईसाई नहीं थीं।
#GauriLankeshGauri Lankesh Patrick was her real name. Why do these scums hide names?
— ASHOK KARNANI (@ASHOKKARNANI1) September 7, 2017
गौरी की पृष्ठभूमि लिंगायत समुदाय की थी। लिंगायत लोग शिव की पूजा करते हैं और उनके यहां शव को दफनाने का रिवाज है। वे लोग शव को लिटाकर या बैठाकर दफनाते हैं। हालांकि शव को किस तरह दफनाया जाना है यह परिवार वाले तय करते हैं। इसलिए व्हाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर पर फैल रही ये तमाम बातें महज अफवाहें हैं। सोशल मीडिया के दौर में लोगों को चीजें खुद क्रॉस चेक करनी चाहिए उसके बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए।