सीजफायर के बाद भी सन्नाटा, कश्मीरी युवा बोले- अब रोजगार चाहिए, पत्थर नहीं, बदलते कश्मीर की खामोश पुकार

punjabkesari.in Sunday, May 18, 2025 - 09:15 AM (IST)

नेशनल डेस्क। भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास अपने तबाह हुए घरों में लौटे लोग दुख और निराशा से घिरे हैं उन्हें सरकार से मदद की आस है। वहीं श्रीनगर और अन्य पर्यटक स्थलों से जुड़े लोगों के मन में हिंसा, पथराव और बंद के पुराने दिनों के लौटने की आशंका घर कर रही है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के कारण पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान हुआ है। इस मुश्किल दौर में कश्मीरी युवा अब रोजगार की गुहार लगा रहे हैं उनका कहना है कि वे अब पत्थर नहीं उठाना चाहते। भारत के प्रति अपनी निष्ठा जताते हुए इन युवाओं को उम्मीद है कि पर्यटक फिर से लौटेंगे और अमरनाथ यात्रा के शुरू होने के साथ ही हालात सुधरेंगे जिससे कश्मीर 22 अप्रैल से पहले की तरह गुलजार हो उठेगा। हमारे विशेष संवाददाता विकास सिंह ने जमीनी स्तर पर जाकर इन हालात का जायजा लिया।

कश्मीरी युवाओं की आवाज

सीमा पर शांति तो लौट आई है तोपों और गोलियों की आवाजें थम गई हैं लेकिन डल झील में तैरते शिकारे, गुलमर्ग की बर्फीली वादियां, पहलगाम की हरी-भरी वादियां और श्रीनगर की चहल-पहल कहीं खो सी गई है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न केवल गोलियों की गूंज सुनाई बल्कि कश्मीर की करोड़ों की पर्यटन अर्थव्यवस्था को भी तहस-नहस कर दिया। पर्यटन के सबसे व्यस्त समय में घाटी में सन्नाटा पसरा है हालांकि यह सन्नाटा आतंकवाद के दौर के सन्नाटे से अलग है। आज यहां के युवा हथियार नहीं बल्कि रोजगार चाहते हैं। वे अपने भविष्य को उज्जवल देखना चाहते हैं न कि हाथों में पत्थर और धुएं में गुम होती जिंदगी को।

दुकानें खुलीं पर खरीदार गायब

कुपवाड़ा में एलओसी के पास केरन सेक्टर के रहने वाले जहूर लोन श्रीनगर के लाल चौक पर दुकान चलाते हैं। उनका कहना है कि पहलगाम हमले से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और यह पूरा सीजन ऐसे ही बीत जाएगा। उन्हें दिसंबर से हालात बेहतर होने और अमरनाथ यात्रा के दौरान लोगों के आने की उम्मीद है। सीजफायर के बाद दुकानें तो खुल गई हैं लेकिन खरीदारों की रौनक गायब है।

 

यह भी पढ़ें: ISRO को झटका! EOS-09 सैटेलाइट लॉन्चिंग में आई तकनीकी खराबी, मिशन रह गया अधूरा

 

कश्मीरी नहीं मारेगा अपनी रोजी-रोटी पर लात

श्रीनगर के मोहम्मद तनवीर कहते हैं कि हमले से पहले उनके पास बहुत काम था लेकिन अब सब कुछ सूना पड़ गया है। उनका मानना है कि कश्मीरी कभी भी अपनी रोजी-रोटी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। अगर इस हमले में उनकी कोई भूमिका होती तो वे शिकायत नहीं करते। उन्होंने इस हमले के विरोध में दो दिन बाजार भी बंद रखा था।

रोजगार की गुहार

रात के बारह बजे लाल चौक पर बैठे कुछ कश्मीरी युवाओं से बात करने पर इम्तियाज और असफाक ने बताया कि बेरोजगारी ही उन्हें आतंकवाद और पत्थरबाजी की ओर धकेलती है। अगर उनके पास आमदनी का जरिया हो तो वे कभी भी गलत रास्ते पर नहीं चलेंगे। कश्मीरी युवा रोजगार मांगते हैं। अगर लोगों के पास आय का स्रोत होगा तो देश विरोधी गतिविधियों में शामिल करने की साजिशें कभी सफल नहीं होंगी।

पुराने दौर में लौटने का डर

उरी सेक्टर के लालपुल के रहने वाले मोहम्मद खालिद बताते हैं कि हजारों लोगों ने नशा और पत्थरबाजी छोड़कर काम करना शुरू कर दिया था और उनकी जिंदगी पटरी पर आ गई थी लेकिन अब अगर काम बंद हो जाएगा तो हालात फिर से बिगड़ सकते हैं। सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना चाहिए ताकि बेरोजगारी और गरीबी उन्हें उस अंधेरे इतिहास में वापस जाने के लिए मजबूर न करें जिसे वे पीछे छोड़ आए हैं।

विकास की राह पर कश्मीर

डल झील में द मुगल शेरातन हाउसबोट के संचालक जावेद जो बारामुला जिले के रहने वाले हैं का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में बहुत बदलाव आया है। पत्थरबाजी और धरना अब इतिहास बन चुका है। लोगों को रोजगार और शांतिपूर्ण जीवन जीने की एक नई उम्मीद दिखाई दे रही है। कश्मीर अब विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Rohini Oberoi

Related News