कांग्रेस आलाकमान का संकट और बढ़ा, शीला दीक्षित के बाद कौन संभालेगा दिल्ली की कमान

punjabkesari.in Monday, Jul 22, 2019 - 04:24 AM (IST)

नई दिल्ली: एक भरोसे का नाम था शीला दीक्षित। उनके निधन से अगले साल प्रस्तावित दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ गई हैं। पार्टी के लिए सबसे बड़ा संकट शीला दीक्षित का विकल्प देने की है। 2013 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने शीला दीक्षित की जगह जिसे भी आगे किया, वे सब फ्लाप रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जैसे ही फिर से शीला दीक्षित को कमान मिली, कांग्रेस को मानो संजीवनी मिल गई। शून्य पर जा चुकी कांग्रेस उभर कर दूसरे पायदान पर आ गई। 

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के फाइट में आ जाने और सात में से पांच सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी बन जाने के बाद यह उम्मीद जाग गई थी कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांंग्रेस फिर से सत्ता के करीब पहुंच सकती है। शीला दीक्षित का एक भरोसेमंद चेहरा लोगों पर अपना असर दिखाने लगा था। शीला दीक्षित के निधन के बाद अब कांग्रेस के सामने उन जैसा अपीलिंग चेहरा देने का संकट है। जो चेहरे फिलवक्त पार्टी के पास हैं, उनमें से ज्यादातर फ्लाप हो चुके हैं। 2013 के बाद से पार्टी ने जिन चेहरों को आगे बढ़ाया, वे न तो पार्टी को गति दे सके और न ही नेताओं-कार्यकर्ताओं को जोड़े रख सखे। लगातार चुनावी हार से कार्यकर्ताओं अलग हताश हुए। 

कांग्रेस ने 1998 में शीला दीक्षित को दिल्ली की कमान सौंपी थी, उसके बाद लगातार तीन बार पार्टी सत्ता में रही। मेट्रो सेवा शुरू कराने से लेकर सीएनजी लाने तक और पूरी दिल्ली में फ्लाई ओवर का जाल बिछाने और दिल्ली से बाहर निकल कर एनसीआर तक विकास की गंगा बहाने का श्रेय शीला दीक्षित को ही है। लेकिन कॉमन वेल्थ गेम के कथित घोटालों के आरोप में उन्हें सत्ता से दूर जाना पड़ा था। शीला दीक्षित के हटने के बाद दिल्ली में कांग्रेस की हालत दिन ब दिन खराब होती चली गई। 2013 में 8 विधायक जीते तो 2015 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। संगठन भी पूरी तरह निष्क्रिय सा हो गया। हालात ऐसे बन गए कि लोकसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने तक की नौबत बन आई थी। 

दोबारा दिल्ली कांग्रेस की कमान मिलने के बाद शीला दीक्षित अपनी मृत्यु से पहले तक पार्टी को नई शक्ल देने में लगी हुई थीं। पहले कार्यकारी अध्यक्षों का काम तय किया और दो दिन पहले नए प्रवक्ताओं की नियुक्ति की थी। जल्द ही वे ब्लाक और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की तैयारी में थीं। इसी के साथ वे विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को सक्रिय करने में जुटी हुई थीं, तो चुनावी रणनीति भी बना रही थीं। उनका यह काम अधूरा रह गया। जबकि छह महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस को जल्द से जल्द दिल्ली में उनका विकल्प ढूंढऩा होगा। 


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Pardeep

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