प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण नहीं आसान, किन किन राज्यों ने कि ऐसी कोशिश आईए जानते हैं

punjabkesari.in Thursday, Jul 18, 2024 - 06:06 PM (IST)

नेशनल डेस्क : कर्नाटक में पेश किया गया बिल जिसमें कन्नड़ लोगों प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण देने की बात की जा रही है। पर प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण संभव है बात की जाए संविधान की तो इसकी इजाजत संविधान नही देता पर राज्य सरकारें लोगों को खुश करने के चक्कर में औऱ तमाम संवैधानिक चुनौतियों के बावजूद ऐसा करती है। बात की जाए कर्नाटक की तो सरकार नया बिल लेकर आई है अगर ये बिल कानून बनता है तो कर्नाटक में कारोबार कर रहीं प्राइवेट कंपनियों को अपने यहां कन्नड़ भाषियों को 50% से लेकर 100% तक आरक्षण देना होगा। हालांकि, फिलहाल कर्नाटक सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। इस बिल को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं और हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है। हालांकि, इस बिल को लेकर अभी से ही विवाद शुरू हो गया है, बड़े बड़े उद्योगपतियों ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है कहा है सरकार को आरक्षण की बजाय स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना चाहिए। इसी बीच कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने बचाव करते हुए कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस कन्नड़ लोगों की गरिमा को बनाए रखने के लिए सत्ता में आई है।

क्या था ये बिल
स्थानीय लोगों के लिए प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था देने के लिए लाए गए इस बिल का नाम 'कर्नाटक स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स इन द इंडस्ट्रीज, फैक्ट्रीज एंड अदर एस्टैब्लिशमेंट' है।

अगर ये बिल कानून बन गया तो इसके दायरे में सभी अगर ये बिल कानून बनता है तो इसके दायरे में सभी इंडस्ट्रियां, फैक्ट्रियां और प्राइवेट संस्थान आएंगे। इससे प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण जरूरी हो जाएगा। 

बिल के कानून बनने के बाद प्राइवेट नौकरियों में मैनेजमेंट के 50% और नॉन-मैनेजमेंट के 75% पदों पर स्थानीय उम्मीदवारों को भर्ती करना होगा। इसके अलावा,  ग्रुप C और D कैटेगरी के पदों पर 100% भर्तियां स्थानीयों की होगी।

बिल के मुताबिक, स्थानीय उसे माना जाएगा जिसे कन्नड़ भाषा बोलनी, लिखनी और समझ में आती हो और वो कम से कम 15 साल से कर्नाटक का मूल निवासी हो। अगर किसी स्थानीय ने 10वीं क्लास कन्नड़ भाषा में पास नहीं की होगी तो उसे कर्नाटक प्रोफेशिएंसी टेस्ट देना जरूरी होगा।

अगर कोई कंपनी या मैनेजर इस कानून का उल्लंघन करती है तो उस पर 10 हजार से लेकर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।

हालांकि,  जब इस बिल पर विवाद बढ़ा तो कर्नाटक सरकार ने बिल पर रोक लगा दी। कर्नाटक सरकार का कहना है कि वो इस बिल पर एक बार फिर विचार करेगी इसके बाद इसे लाया जाएगा।

कहां कहां हो चुकी है ऐसी कौशिश

आंध्र प्रदेश : 2019 में आंध्र प्रदेश में पहली बार ऐसा कोई कानून बना था जहां 75% स्थानीय लोगों को प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण देने की बात कही गई थी। पर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। फिलहाल, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

महाराष्ट्र : 2019 में शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की सरकार बनने के बाद प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 80% नौकरियां देने का प्रस्ताव लाया गया था। सरकार सरकार इसे विधानसभा में भी लाना चाहती थी। लेकिन इसे लाया नहीं गया।

कर्नाटक : यहां कई बार प्राइवेट जॉब में कन्नड़ों के लिए आरक्षण तय करने की कोशिश हो चुकी है। सिद्धारमैया सरकार में ये तीसरी बार है जब ऐसी कोशिश हो रही है। इससे पहले 2014 और 2017 में भी सरकार कोशिश कर चुकी है। वहीं अक्टूबर 2020 में येदियुरप्पा की अगुवाई में बीजेपी सरकार ने प्राइवेट नौकरियों में ग्रुप C और D में 75% आरक्षण स्थानीयों को देने का ऐलान किया था। हालांकि, ये लागू नहीं हो सका था।

हरियाणा : 2020 में तब की मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने प्राइवेट नौकरियों में स्थानीयों को 75% आरक्षण देने के लिए कानून पास किया था. हाईकोर्ट में इस चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने पिछले साल नवंबर में इस कानून को रद्द कर दिया।

झारखंड ; दिसंबर 2023 में हेमंत सोरेन की सरकार ने सरकारी नौकरियों की ग्रुप 3 और 4 में स्थानीयों को 100% आरक्षण देने के मकसद से बिल पास किया था। ये बिल विधानसभा में पास हो गया था, लेकिन गवर्नर ने इसे लौटा दिया था।


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News Editor

Rahul Rana

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