नहीं रहे प्रसिद्ध हिंदी कवि-कथाकार विनोद कुमार, 89 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस
punjabkesari.in Tuesday, Dec 23, 2025 - 06:07 PM (IST)
नेशनल डेस्क : हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि-कथाकार और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया है। 89 वर्ष की आयु में उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और अस्पताल में भर्ती थे। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है। खास बात यह है कि बीते महीने ही उन्हें हिंदी साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
छत्तीसगढ़ से हिंदी साहित्य के शिखर तक का सफर
1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल एक ऐसे लेखक के रूप में पहचाने गए, जिनकी वाणी भले ही शांत और धीमी रही हो, लेकिन उनकी रचनाएं पाठकों के मन में गहरी गूंज छोड़ती थीं। उन्होंने कृषि विज्ञान की पढ़ाई की थी। प्रकृति, मिट्टी, पेड़-पौधों और ग्रामीण जीवन से उनका गहरा लगाव उनकी रचनाओं में साफ दिखाई देता है। उनके साहित्य की मूल चिंता हमेशा मनुष्य, समाज और जीवन को अधिक मानवीय बनाने की रही।
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कविता और कथा के बीच की सीमाएं मिटाने वाला लेखन
विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी साहित्यिक यात्रा कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ से शुरू की। इसके बाद उन्होंने कविता और कहानी के बीच की पारंपरिक दीवार को तोड़ दिया। उनका लेखन न पूरी तरह कविता था, न केवल कहानी—बल्कि दोनों का अनूठा मेल था। उनकी कविताओं में सादगी के साथ गहराई देखने को मिलती है। ‘वह आदमी चला गया, नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ और ‘आकाश धरती को खटखटाता है’ जैसी कृतियों ने हिंदी कविता को नई संवेदना और नया शिल्प दिया।
उपन्यास और कहानियों में साधारण जीवन की असाधारण दुनिया
कथा साहित्य में उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को हिंदी के कालजयी उपन्यासों में गिना जाता है। इन रचनाओं ने गद्य की भाषा और सौंदर्यबोध को नया रूप दिया। उनके कहानी-संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ पाठक को एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जो देखने में साधारण लगती है, लेकिन भीतर से बेहद गहरी और संवेदनशील होती है।
सम्मान और पुरस्कारों से भरा साहित्यिक जीवन
विनोद कुमार शुक्ल को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शिखर सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार और हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी रचनाएं केवल पढ़ने का अनुभव नहीं देतीं, बल्कि पाठक को आत्मचिंतन और जीवन की जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित करती हैं।
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साहित्य जगत में शोक की लहर
विनोद कुमार शुक्ल का निधन हिंदी साहित्य के एक युग का अंत माना जा रहा है। उनकी सादगी, संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टि आने वाली पीढ़ियों के लेखकों और पाठकों को लंबे समय तक प्रेरित करती रहेगी।
