ना जानें की जरूरत, ना कोई परेशानी... गयाजी में अब घर बैठे कराएं पिंडदान, पूर्वजों से पाएं आशिर्वाद
punjabkesari.in Tuesday, Aug 26, 2025 - 09:23 PM (IST)

नेशनल डेस्क : मोक्षभूमि गयाजी में इस वर्ष भी विश्वप्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2025 का भव्य आयोजन 6 सितंबर से 21 सितंबर तक किया जा रहा है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना के लिए पिंडदान करेंगे। यह पावन परंपरा भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों को भी अपनी संस्कृति से जोड़े रखती है। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम (BSTDC) ने समय की मांग को देखते हुए इस वर्ष भी ऑनलाइन पिंडदान सेवा शुरू की है। यह उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधा है जो स्वास्थ्य, दूरी या समय के कारण गया नहीं आ सकते। अब वे अपने घर बैठे ही पितरों का पिंडदान करा सकेंगे।
ऑनलाइन पैकेज शुल्क ₹23,000 निर्धारित किया गया है, जिसमें पूजा सामग्री, पंडा-पुजारी की सेवा और तीन प्रमुख वेदियों – विष्णुपद मंदिर, अक्षयवट और फल्गु नदी पर विधिपूर्वक अनुष्ठान शामिल है। पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग श्रद्धालुओं को पेन ड्राइव में भेजी जाएगी।
विदेशों में बसे श्रद्धालु भी लेंगे लाभ
इस सुविधा को भारत तक सीमित न रखते हुए, अमेरिका, यूरोप, खाड़ी देशों और एशिया के कई हिस्सों में बसे श्रद्धालुओं के लिए भी शुरू किया गया है। इससे गयाजी की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिली है।
ऑनलाइन बुकिंग की प्रक्रिया 25 या 26 अगस्त से शुरू होने की उम्मीद है। इच्छुक श्रद्धालु bstdc.bihar.gov.in वेबसाइट के माध्यम से आवेदन कर सकेंगे। BSTDC के अधिकारी नागेंद्र कुमार ने बताया कि यह सेवा हर साल अधिक लोकप्रिय होती जा रही है।
तैयारियों की निगरानी में प्रशासन
गया के डीएम शशांक कुमार ने बताया कि पितृपक्ष मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। विष्णुपद क्षेत्र का प्रतिदिन निरीक्षण किया जा रहा है। टेंट लगाना और बैरिकेडिंग का कार्य 29 अगस्त तक पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि ऑनलाइन पिंडदान की सुविधा भी पूरी तरह तैयार है, जिससे देश-विदेश में रहने वाले श्रद्धालु भी इस पुण्य कार्य में सम्मिलित हो सकें।
ऑनलाइन पिंडदान पर पंडा समाज ने जताया विरोध
इस बीच, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य प्रेमनाथ टैया ने ऑनलाइन पिंडदान नीति का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था सनातन परंपरा और सभ्यता को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने कहा, "गया जी अर्पण और तर्पण की भूमि है। यहाँ मान्यता है कि पुत्र स्वयं अपने हाथों से फल्गु नदी में तर्पण करे तभी पितरों का उद्धार होता है।"
उन्होंने चेतावनी दी कि यह ऑनलाइन प्रक्रिया पंडा समाज की जीविका और परंपरा के विरुद्ध है। यदि इसे तत्काल प्रभाव से वापस नहीं लिया गया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी और हर स्तर पर आंदोलन होगा।
आस्था, परंपरा और तकनीक का संगम
पितृपक्ष मेला न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के प्रति सम्मान और कर्तव्यबोध का प्रतीक है। ऑनलाइन व्यवस्था के माध्यम से जहां तकनीक के साथ परंपरा का समन्वय देखने को मिल रहा है, वहीं इससे जुड़े मतभेद और सांस्कृतिक चिंताएं भी सामने आ रही हैं।