Right to Disconnect Bill: ऑफिस के बाद अब ईमेल और कॉल नहीं करेंगे तंग, जानें क्या है ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल''

punjabkesari.in Monday, Dec 08, 2025 - 04:05 PM (IST)

नेशनल डेस्क : आज के दौर में स्मार्टफोन ने घर और दफ्तर के बीच की दीवार पूरी तरह गिरा दी है। शाम छह बजे के बाद भी काम का दिन खत्म होने का नाम नहीं लेता। देर रात आने वाले ईमेल, व्हाट्सएप मैसेज और बॉस के तथाकथित “जरूरी” कॉल अब रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। लगातार जुड़े रहने के इस दबाव ने कर्मचारियों को कभी पूरी तरह फ्री नहीं होने दिया। इसी गंभीर समस्या को देखते हुए लोकसभा में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ नामक निजी विधेयक पेश किया गया है। यह विधेयक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने शुक्रवार को सदन में प्रस्तुत किया।

आखिर क्यों जरूरी है यह बिल?
भारतीय वर्कफोर्स पिछले कुछ वर्षों में “हमेशा ऑनलाइन” रहने के भारी दबाव का शिकार रहा है। कोविड के बाद रिमोट वर्किंग, स्लैक-टीम्स जैसे डिजिटल टूल्स और कंपनियों की बढ़ती अपेक्षाओं ने काम और निजी जीवन की सीमाएं पूरी तरह मिटा दी हैं। नतीजा यह है कि कर्मचारी न तो ठीक से आराम कर पाते हैं और न ही परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता पाते हैं। लगातार उपलब्ध रहने की यह मजबूरी तनाव, चिंता और बर्नआउट का बड़ा कारण बन रही है। राइट टू डिस्कनेक्ट बिल इसी असंतुलन को दूर करने की कोशिश करता है और कर्मचारियों को निर्धारित कामकाजी घंटों के बाद पूरी तरह डिस्कनेक्ट होने का कानूनी अधिकार देता है।

बिल में क्या-क्या प्रावधान हैं?
यह विधेयक स्पष्ट रूप से कहता है कि निर्धारित कार्यालय समय खत्म होने के बाद नियोक्ता द्वारा किया गया कोई भी काम-संबंधी कम्युनिकेशन (कॉल, ईमेल, मैसेज) कर्मचारी के लिए वैकल्पिक होगा। कर्मचारी जवाब देने को बाध्य नहीं होगा। हालांकि आपातकालीन स्थिति में नियोक्ता संपर्क कर सकता है, लेकिन कर्मचारी को जवाब देना अनिवार्य नहीं होगा। इस तरह काम के घंटों के बाद होने वाला कम्युनिकेशन पूरी तरह वैकल्पिक रखकर बिल स्वस्थ कार्य संस्कृति को बढ़ावा देना चाहता है और मानसिक-भावनात्मक थकान को कम करना चाहता है।

कर्मचारियों के अधिकारों को मिलेगी मजबूती
बिल की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यदि कोई कर्मचारी ऑफ-आवर में कॉल या मैसेज का जवाब नहीं देता तो कंपनी उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई (चेतावनी, वेतन कटौती, ट्रांसफर आदि) नहीं कर सकेगी। साथ ही, अगर कोई कर्मचारी अपनी मर्जी से काम के घंटों के बाद काम करता है या जवाब देता है तो उसे स्टैंडर्ड ओवरटाइम दर पर भुगतान अनिवार्य रूप से करना होगा।

नियम तोड़ने वालों पर सख्त सजा
कानून का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान है। जो नियोक्ता बार-बार इस अधिकार का उल्लंघन करेंगे, उन पर अपनी कुल कर्मचारी सैलरी बिल का 1% तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। इससे कंपनियों पर कानून का पालन करने का ठोस दबाव बनेगा।

सुप्रिया सुले ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि फ्रांस, बेल्जियम, इटली, स्पेन जैसे कई यूरोपीय देशों में पहले से ही ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कानून लागू है और वहां इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। भारत में भी तेजी से बढ़ते वर्कप्लेस स्ट्रेस को देखते हुए यह कदम बेहद जरूरी हो गया है।


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Content Editor

Shubham Anand

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