भारत छोड़ने का आदेश मिला तो अटारी बॉर्डर पर आया हार्ट अटैक, पाकिस्तानी नागरिक की मौत
punjabkesari.in Thursday, May 01, 2025 - 12:54 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने पूरे देश को गम और गुस्से की लहर में डुबो दिया। हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, और इसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कूटनीतिक और प्रशासनिक फैसलों की झड़ी लगा दी। भारत ने पाकिस्तान से रिश्तों में ठंडापन लाते हुए कई बड़े कदम उठाए, जिनमें सबसे कठोर निर्णय था-सभी पाकिस्तानी अल्पकालिक वीजाधारकों का वीजा तत्काल प्रभाव से रद्द कर उन्हें देश छोड़ने का आदेश देना।
इस आदेश का असर व्यापक था, लेकिन एक नाम जिसने सबका ध्यान खींचा, वो था अब्दुल वहीद, एक 69 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक, जो 17 साल से भारत में रह रहे थे। डिपोर्टेशन की प्रक्रिया के दौरान, उन्हें अटारी-वाघा बॉर्डर ले जाया जा रहा था, जब उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। लकवे से पहले ही पीड़ित वहीद को दिल का दौरा पड़ा और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। यह घटना भारत-पाक तनाव के मानवीय पहलुओं को उजागर करने वाली एक करुण कहानी बन गई।
अचानक बढ़ा बॉर्डर पर तनाव, आंखों में आंसू लिए लौटे लोग
भारत सरकार के आदेश के अनुसार, अल्पकालिक वीजा रखने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल और मेडिकल वीजा धारकों को 29 अप्रैल तक देश छोड़ना था। इसके चलते अटारी बॉर्डर पर भावुक दृश्य देखने को मिले-कई पाकिस्तानी नागरिक, जो यहां शादी, इलाज या रिश्तेदारों से मिलने आए थे, अपने अधूरे अरमानों और भारी मन के साथ लौटते नजर आए। इस अवधि में कुल 139 पाकिस्तानी नागरिकों ने भारत छोड़ा, जबकि 224 नागरिक अटारी बॉर्डर के माध्यम से भारत में दाखिल हुए, जिनमें से कई के पास 'नो ऑब्लिगेशन टू रिटर्न टू इंडिया' (NORI) वीजा था।
भारत के सख्त फैसले: रिश्तों में आई ठंडक
पहलगाम हमले के जवाब में भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने, पाकिस्तान के साथ राजनयिक संपर्क सीमित करने और कड़ी निगरानी के आदेश भी दिए। इन नीतिगत बदलावों ने साफ कर दिया कि भारत अब हर स्तर पर पाकिस्तान को जवाब देने के मूड में है।
इंसानी कहानियों की गूंज
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे मार्मिक पहलू उन लोगों की कहानियाँ रहीं, जिन्हें राजनीति और आतंक के इस खेल में सबसे ज्यादा भुगतना पड़ा। अब्दुल वहीद की मौत एक ऐसा ही उदाहरण थी-जो इस बात की याद दिलाती है कि सरकारें भले ही सख्त निर्णय लेती हैं, पर उसकी मार सबसे पहले आम आदमी ही झेलता है।