अब इस नए नाम से जाना जाएगा पोर्ट ब्लेयर, नेताजी और वीर सावरकर से जुड़ा है इसका इतिहास
punjabkesari.in Saturday, Sep 14, 2024 - 08:34 PM (IST)
नेशलन डेस्क : अंडमान और निकोबार का पोर्ट ब्लेयर, हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह वह स्थान है जहाँ भारतीय स्वतंत्रता की मशाल ने एक नई दिशा पाई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और वीर सावरकर जैसे महान व्यक्तित्वों के नाम इस स्थान से जुड़े हुए हैं। अब सरकरा ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम कर दिया गया है। यह परिवर्तन देश की औपनिवेशिक धरोहर से मुक्त होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विजयपुरम नाम के साथ, देश अब इस ऐतिहासिक स्थल की स्वतंत्रता की गाथाओं को याद करेगा, और अतीत की धुंधली यादों को एक नए प्रकाश में देखेगा।
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पोर्ट ब्लेयर का नाम हुआ श्री विजयपुरम
आपको बता दें कि हमारा देश कभी सोने की चिड़ीया के नाम से मशहूर था, लेकिन इतिहास ने इसे कठिन समय दिखाया। मुगलों और अंग्रेजों ने हमारे देश पर अनेको बार आक्रमण किया। विदेशी शक्तियों ने हमारे मंदिरों और भारतीय लोगों को लूटा और अंग्रेजों ने भी हमसे लूटपाट की और हम पर शासन किया। इन सबके बावजूद, इन सबका मुकाबला करते हुए आज हमारा देश गर्व से खड़ा है। वर्तमान सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए अंग्रेजों के शासकीय प्रतीकों को हटाया है। सरकार ने अंडमान और निकोबार के पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम रख दिया है।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वीरता
अंडमान और निकोबार के पोर्ट ब्लेयर का नाम अब श्री विजयपुरम कर दिया गया है। मोदी सरकार ने यह निर्णय देश को औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्त करने के लिए लिया है। यह केंद्र शासित प्रदेश अपनी सुंदरता और समुद्री संपदा के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण इतिहास के लिए भी जाना जाता है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दिसंबर 1943 में तिरंगा फहराया था। नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया। जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंडमान को ब्रिटेन से जीतकर आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था।
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नेताजी का उत्साह और तिरंगा
नेताजी ने अंडमान में तिरंगा फहराने के बाद 9 जनवरी 1944 को रंगून में एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने इस द्वीप को जापान द्वारा सौंपे जाने की बात की। नेताजी के भतीजे अमीय नाथ बोस ने भी इस घटनाक्रम के दस्तावेज भारत सरकार को प्रदान करने की अपील की थी। अंडमान की सेलुलर जेल का नाम आज भी वीर सावरकर की यातनाओं से जुड़ा है। यह जेल, जिसे काला पानी के नाम से जाना जाता है, स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अत्यंत कठिन जगह थी। यहाँ की यातनाएँ किसी भी कैदी के लिए सहनशील नहीं थीं।
क्या है पोर्ट ब्लेयर का इतिहास और महत्व
पोर्ट ब्लेयर की नींव ब्रिटिश नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने 1789 में रखी थी। इसका नाम उनके नाम पर रखा गया था। ब्रिटिश शासन ने इसे एक प्रशासनिक केंद्र और जेलखाना के रूप में इस्तेमाल किया। पोर्ट ब्लेयर को समुद्री सुरक्षा के लिए एक रणनीतिक स्थान माना जाता था, जो ब्रिटिश साम्राज्य के समुद्री रास्तों की सुरक्षा में मददगार था।अब जब पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम कर दिया गया है, तो यह बदलाव अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्रता का प्रतीक है। पोर्ट ब्लेयर का नाम सुनते ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस और वीर सावरकर की यादें ताजा हो जाती हैं। लेकिन अब श्री विजयपुरम की विजय गाथा को याद रखने का समय है, क्योंकि पोर्ट ब्लेयर अब इतिहास का हिस्सा बन गया है।