BJP New President: अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष मोदी-शाह से भी हो सकता है ताकतवर, जानिए चुनाव प्रक्रिया और RSS की भूमिका

punjabkesari.in Friday, Jul 11, 2025 - 03:07 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारतीय जनता पार्टी (BJP) में अब बड़े बदलाव की आहट साफ सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा से वापसी के बाद पार्टी में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है। मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में खत्म हो चुका था लेकिन लोकसभा चुनावों और संगठनात्मक मजबूरियों के चलते उन्हें लगातार एक्सटेंशन मिलते रहे। अब जबकि चुनाव खत्म हो चुके हैं और पार्टी 2029 की तैयारियों में जुटने वाली है, ऐसे में एक नया और मजबूत नेतृत्व की जरूरत महसूस की जा रही है। आइए जानते हैं भाजपा अध्यक्ष कैसे चुना जाता है, आरएसएस की इसमें क्या भूमिका होती है और नया अध्यक्ष मोदी-शाह से ताकतवर कैसे हो सकता है।

बीजेपी में अध्यक्ष कैसे चुना जाता है?

बीजेपी का अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया पूरी तरह संविधानबद्ध है। इसके लिए पार्टी ने एक निर्वाचक मंडल तय किया हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषद के सदस्य शामिल होते हैं। बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही बन सकता है, जो पिछले 15 सालों से पार्टी का सक्रिय सदस्य रहा हो। इसके अलावा नामांकन के लिए 20 निर्वाचकों का संयुक्त प्रस्ताव जरूरी होता है। ये प्रस्ताव कम से कम 5 अलग-अलग राज्यों से आना अनिवार्य होता है, जहां पर राष्ट्रीय परिषद के चुनाव हो चुके हों। 

संगठन के चुनावों के बाद ही होता है राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन

राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी संभव है जब पार्टी के कम से कम 50% राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे हो चुके हों। इसमें जिला स्तर से लेकर प्रदेश परिषद और फिर राष्ट्रीय परिषद के चुनाव शामिल होते हैं। अभी तक 19 राज्यों के संगठन चुनाव पूरे हो चुके हैं, इसलिए अध्यक्ष पद का ऐलान अब संभव माना जा रहा है।

सर्वसम्मति से होता है चयन, वोटिंग की परंपरा नहीं

बीजेपी में आज तक कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए वोटिंग नहीं हुई है। पार्टी की परंपरा रही है कि शीर्ष नेतृत्व, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और आरएसएस के वरिष्ठ नेता शामिल होते हैं, आपसी सहमति से किसी एक नाम पर मुहर लगाते हैं। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि पार्टी में मतभेद या गुटबाज़ी की गुंजाइश कम हो।

आरएसएस की भूमिका क्या होती है?

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का रिश्ता बहुत गहरा है लेकिन संघ कभी भी खुद को सामने लाकर हस्तक्षेप नहीं करता। आरएसएस का मानना है कि व्यक्तिवाद नहीं, संगठन सर्वोपरि होना चाहिए। इसलिए वह यह सुनिश्चित करता है कि जो भी अध्यक्ष चुना जाए, वह पार्टी की विचारधारा और संगठन की मर्यादाओं को समझने वाला हो। आरएसएस और भाजपा मिलकर ही यह तय करते हैं कि कौन व्यक्ति नेतृत्व के लिए सबसे उपयुक्त है। यही वजह है कि अध्यक्ष बनने वाला व्यक्ति हमेशा आरएसएस की पृष्ठभूमि से जुड़ा या संघ के आदर्शों के नजदीक होता है।

क्या अगला अध्यक्ष मोदी-शाह से ताकतवर होगा?

यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पार्टी अब एक नए युग में प्रवेश कर रही है। लोकसभा चुनाव 2024 में भले ही भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन उसे पहले जैसी स्पष्ट बहुमत नहीं मिली। इसके चलते 2029 की रणनीति, विपक्षी एकता और राज्यों में कमजोर पड़ते जनाधार जैसे मुद्दों पर पार्टी को नए दृष्टिकोण की जरूरत है। इसलिए अगला अध्यक्ष सिर्फ नाम का नहीं बल्कि व्यवहारिक रूप से भी मजबूत नेता होगा जो मोदी-शाह के साथ मिलकर काम कर सके। यह नेतृत्व ऐसा होगा जो स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखता हो और संगठन को हर स्तर पर फिर से संजीवनी दे सके।

कार्यकाल और दोबारा मौका मिलने की शर्त

भाजपा के संविधान के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। एक व्यक्ति लगातार दो बार इस पद पर रह सकता है। हालांकि, यह जरूरी नहीं कि हर बार दो कार्यकाल मिलें। 2010 में जब नितिन गडकरी अध्यक्ष बने थे तो इसी दौरान यह संशोधन किया गया था लेकिन वे दोबारा अध्यक्ष नहीं बन सके। जेपी नड्डा को लोकसभा चुनावों के चलते कई बार कार्यकाल विस्तार मिला। लेकिन अब संगठनात्मक चुनाव पूरे होने और नए चुनावों की तैयारी के मद्देनजर उनकी जगह नए चेहरे की तलाश शुरू हो चुकी है।

बीजेपी का सफर: दो सीटों से 303 तक

1980 में भाजपा की स्थापना हुई थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी पहले अध्यक्ष बने थे। 1984 में हुए आम चुनावों में भाजपा को सिर्फ 2 सीटें मिली थीं। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 1990 में राम रथ यात्रा निकाली गई जिससे पार्टी को राष्ट्रीय पहचान मिली। 1991 में भाजपा ने 120 सीटें जीतीं और 1996 में केंद्र में सरकार बनाई। फिर 1998 और 1999 में सरकार बनी। 2014 से अब तक लगातार तीसरी बार भाजपा केंद्र की सत्ता में है।

नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां

  • 2027 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, जो पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

  • 2029 का लोकसभा चुनाव, जिसमें नए नेतृत्व को पूरी पार्टी को एकजुट कर विजयी रणनीति बनानी होगी।

  • राज्यों में संगठन को फिर से खड़ा करना, खासकर उन राज्यों में जहां पार्टी को झटका लगा है।

  • युवा मतदाताओं को जोड़ना और डिजिटल रणनीति को और प्रभावी बनाना।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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