देखिए वो जेल, जहां कैद था बापू का कातिल, माथे पर सलाखों से दागे जाते थे नंबर (PICS)

punjabkesari.in Monday, Nov 15, 2021 - 12:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क: महात्मा गांधी को विश्व इतिहास के महानतम नेताओं में शुमार किया जाता है। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी ने जीवन भर अहिंसा और सत्याग्रह का संकल्प निभाया, लेकिन उन्हें आजादी की हवा में सांस लेना ज्यादा दिन नसीब नहीं हुआ। पंद्रह अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 30 जनवरी 1948 की शाम नाथू राम गोडसे ने अहिंसा के उस पुजारी के सीने में तीन गोलियां उतार दीं। इस अपराध पर नाथूराम को फांसी की सजा सुनाई गई और वह 15 नवंबर 1949 का दिन था, जब उसे फांसी दी गई। यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम में दौरान नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा।  आईए जानते हैं उस जेल के बारे में, जहां गोली मारकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को कैद करके रखा गया था। 

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नाथू राम गोडसे को अंबाला के सेंट्रल जेल में रखा गया था। हाईवे के किनारे बनी यह सेंट्रल जेल ठीक वैसी ही थी, जैसे अंडमान निकोबार की जेल। कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानियों को इस जेल में रखा गया था। इसी जेल में 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी। एक अन्य षडयंत्रकारी नारायण आप्टे को भी उसके साथ ही फांसी दी गई। नाथूराम गोडसे का शव सरकार ने परिजनों को नहीं दिया था। जेल के अधिकारियों ने घग्घर नदी के किनारे उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। जब शव को जेल के एक वाहन में रखकर घग्घर नदी ले जाया जा रहा था, तो उस वाहन के पीछे-पीछे चुपके से हिन्दू महासभा का एक कार्यकर्ता भी चला गया और चिता के ठंडी होने पर उसने एक डिब्बे में अस्थियां रख ली थीं। गोडसे की अस्थियां आज भी परिजनों के पास सुरक्षित रखी हैं।

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बताते हैं कि जेल में नाथूराम गोडसे को काल कोठरी में रखा गया था। गोडसे ने जेल प्रशासन से रोजाना सुबह मंदिर में जाकर पूजा करने की मांग की थी, लेकिन गोडसे को रोजाना मंदिर जाने की अनुमति नहीं मिली थी। कहा जाता है कि कभी-कभी उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसे सेंट्रल जेल के बिल्कुल नजदीक स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर में जेल प्रशासन की तरफ से ले जाया जाता था।  इस जेल में कैदियों की पहचान उनके नंबर से होती थी, जिन्हें गर्म सलाखों से कैदियों के माथे पर दागा जाता था। इन नंबरों को दाग-ए-शाही कहा जाता था।


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Anil dev

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