ये हैं भारत के कुछ रहस्यमय गांव, जहां की बातें आपको चौंका जाएगी
punjabkesari.in Sunday, Aug 04, 2019 - 12:43 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ये दुनिया अजब-गजब बातों और रहस्यों से भरी हुई है। कई बार तो ऐसी-ऐसी जानकारी मिलती है कि उस पर हैरत करें या विश्वास, समझ नहीं आता। आज भी हम आपको कुछ ऐसी ही दिलचस्प बातों से रूबरू कराने जा रहे हैं। हम आपको भारत के कुछ ऐसे रहस्यमयी गांवों के बारे में बताने जा रहे है। जिनके बारे में आपने शायद ही कभी सुना हो।
मलाणा: हिमायल का ऐथंस
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बसा है मलाणा गांव। ये गांव अपने आप में काफी रहस्यमयी और दिलचस्प है। सबसे पहली बात, आपको यहां कुछ भी छूने की इजाजत नहीं है। जी हां, सही सुना आपने, आप यहां कुछ भी छू नहीं सकते। अब इसके पीछे की वजह भी जान लीजिए। दरअसल, मलाणा निवासी अपनेआप को सर्वश्रेष्ठ मानते है। ऐसे में किसी बाहरी इंसान ने अगर उनके मंदिर, घर यहांतक की दुकानों को भी छू लिया तो वो उस पर एक हजार से दो हजार तक जुर्माना लगा देते हैं। यहां के निवासी भारत का संविधान भी नहीं मानते। इनके अपने सदन है और उसके अपने नियम-कानून है। जिसका वो बेहद सख्ती से पालन करते हैं। इनका कहना कि नियम तोड़ने से हमारे देवता नाराज हो जाएंगे। जिससे पूरा गांव तबाह हो जाएगा। गांववाले जमलू ऋषि की पूजा करते है। इस गांव के इतिहास के मुताबिक जमलू ऋषि ने ही इस गांव के नियम-कानून बनाए थे। इस गांव का लोकतंत्र दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतंत्र में से एक है। ऐसा माना जाता है कि जमलू ऋषि को आर्यों से भी पहले से पूजा जाता रहा है। उनका उल्लेख पुराणों में भी आता है। अब कुछ और दिलचस्प बातें, यहां के लोग खुद को आर्यों का वंशज मानते हैं, लेकिन एक अन्य परंपरा के अनुसार, वो खुद के सिंकदर का वंशज मानते है। गांववालों के मुताबिक जब सिंकदर ने भारत पर आक्रमण किया तो उसके कुछ सैनिकों ने सेना छोड़ दी और यहां आकर बस गए। वहीं यहां साल में एक बार ‘फागली’ उत्सव मनाया जाता है। जिसमें ये लोग मुगल सम्राट अकबर की पूजा करते हैं। यहां आनेवाले टूरिस्टों को गांव में रूकने पर मनाही है। वो लोग गांव के बाहर टेंट में रह सकते हैं। यहां कि भाषा भी कुछ अलग है। यहां की बोली में आपको ग्रीक, संस्कृत और तिब्बत की कई बोलियों का मिश्रण मिलेगा, जो आस-पास की किसी भी बोली-भाषा से मेल नहीं खाती है।
टिल्टेपक: जहां इंसान से लेकर पशु-पक्षी तक सब है अंधे
भारत में एक गांव है टिल्टेपक। जहां जोपोटेक नाम की जनजाति रहती है। इस जनजाति के सभी लोग अंधे है। इतना ही नहीं यहां के जानवर से लेकर पक्षी तक, सब की आंखों की रोशनी खत्म हो चुकी है। दरअसल, यहां पैदा होते वक्त तो सभी बच्चे सही-सलामत और स्वस्थ होते है, मगर कुछ दिन बाद ही वो दृष्टिहीन हो जाते है। यहां के निवासियों अपने इस अंधेपन के पीछे की वजह एक श्रापित पेड़ को मानते है। उनके मुताबिक लावजुएजा नाम के इस पेड़ को देखने के बाद इंसान से लेकर जानवर तक सब अंधे हो जाते है। हालांकि वैज्ञानिकों ने इस कारण को नकारते हुए बताया कि यहां के अंधेपन के पीछे की वजह एक खास किस्म की काली मक्खी है, जो काफी जहरीली होती है और इसके काटने पर उसका जहर शरीर में फैल जाता है। जिसका सबसे पहला असर आंखों की नसों पर पड़ता है, जिससे जानवर हो या इंसान वो जल्द ही अंधा हो जाता है। इस गांव की एक और खास बात है यहां किसी भी घर में खिड़कियां नहीं हैं। इस गांव में तकरीबन 70 झोपड़ियां है जिसमें करीब 300 लोग रहते है। लेकिन किसी भी घर में कोई खिड़की नहीं है। इसके पीछे की वजह भी इनकी अंधापन है। आंखों की रोशनी चले जाने के बाद इन्हे सूरज की रोशनी से कोई फर्क नही पड़ता, जिस कारण यहां की किसी झोपड़ी में कोई खिड़की नहीं हैं।
मत्तूर: इस गांव में हिंदू-मुस्लिम सब बोलते है संस्कृत
कर्नाटक के राजधानी बंगलुरू से करीब 300 किमी दूर बसा है ‘मत्तूर गांव’। इस गांव की खासियत ये है कि यहां के निवासी आम बोल-चाल की भाषा में कन्नड़ नहीं संस्कृत का इस्तेमाल करते हैं। यहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक और हिंदूओं से लेकर मुस्लमानों तक सभी आपस में संस्कृत भाषा में ही बात करते हैं। 10 साल की उम्र में ही बच्चों को वेदों के ज्ञान दे दिया जाता है। यहां के गांववाले बताते है कि करीब 600 साल पहले केरल के संकेथी ब्राह्मण समुदाय के लोग यहां आकर बस गए थे। तब ये यहां संस्कृत ही बोली जाने लगी। हालांकि बाद में यहां के लोग कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे। लेकिन 35-40 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया। जिसके बाद मात्र 10 दिनों तक रोज 2 घंटे के अभ्यास से पूरा गांव संस्कृत में बात करने लगा। मत्तूर गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है।
वहीं मध्य प्रदेश में भी एक गांव है जहां हर कोई केवल संस्कृत में बातचीत करता है। वो है गांव है राजगढ़ जिले का झिरी गांव। एक हजार की आबादी वाले इस गांव में 70 फिसदी लोग संस्कृत में बात करते हैं। झिरी के लोगों के मुताबिक उनके गांव का नाम कर्नाटक के मत्तूर गांव से पहले आना चाहिए, क्योंकि मत्तूर में 80 फीसदी आबादी ब्राह्मणों की है, जिन्हें संस्कृत विरासत में मिली है। वहीं झिरी में केवल एक ब्राह्मण परिवार है और बाकी क्षत्रिय और अनुसूचित जाति के लोग हैं जो आपस में संस्कृत में बातचीत करते हैं।
कुलधरा: रहस्यों में लिपटा एक वीरान गांव
v/o- राजस्थान अपनेआप में कई तरह के रहस्यों को समेटे हुए है। इसी में से एक है जैसलमैर का कुलधरा गांव। करीब 170 साल पहले इस गांव के सभी निवासी रातों-रात इस गांव को छोड़कर चले गए। इस गांव के वीरान होने के पीछे दो कहानियां प्रचलित है। पहली कि यहां के शासक सलीम सिंह की बुरी नज़र गांव की एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी। वो ज़बरदस्ती उस लड़की पर शादी करने का दबाव बनाने लगा। हालांकि गांव के लोगों को अपने सम्मान और गौरव के खिलाफ इस तरह की शादी मंजूर नहीं थी। ऐसे में गांव के मुखिया ने फैसला लिया कि वो रातों-रात इस गांव को छोड़ कर चले जाएंगे। जाते वक्त उन्होंने इस गांव को श्राप दिया कि इस जगह पर कभी भी कोई बस नहीं पाएगा। वहीं दूसरी कहानी के मुताबिक यहां का शासक सलीम सिंह ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार करता था। उसके अत्याचारों से दुखी होकर ब्राह्मणों ने गांव छोड़ने का फैसला किया। लेकिन जाते वक्त उन्होंने गांव को श्राप दे दिया कि इस जगह पर कोई भी बस नहीं पाएगा। खैर, कहानी जो भी सच्ची हो, लेकिन ये तो सच है कि इस जगह पर आजतक कोई और बस नहीं पाया।
कोडिन्ही: ये है जुड़वां लोगों का गांव
आमतौर पर किसी के भी परिवार में एक या बहुत हुआ तो दो जुड़वा बच्चें होंगे। खैर किसी-किसी परिवार में तो एक भी नहीं होते। लेकिन केरल का एक गांव ऐसा है जहां हर परिवार में दो से तीन जुड़वा बच्चे हैं। यकीन नहीं होता लेकिन ये सच है। अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 1000 बच्चों पर 4 जुड़वां पैदा होते हैं। एशिया में तो यह दर 4 से भी कम है। लेकिन, केरल के कोडिन्ही गांव में हर 1000 बच्चों पर 45 बच्चे जुड़वां पैदा होते हैं। इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र की कुल आबादी 2000 है। इस गांव में घर, स्कूल, बाजार हर जगह हमशक्ल नजर आते हैं। ऐसा बताया जाता है कि इस गांव में जुड़वा जोड़ो में सबसे उम्रदराज़ 65 साल के अब्दुल हमीद और उनकी जुड़वां बहन कुन्ही कदिया है। ऐसा माना जाता है कि इस गांव में तभी से जुड़वां बच्चे पैदा होने शुरू हुए थे। शुरू में तो सालों में कोई इक्का-दुक्का जुड़वां बच्चे पैदा होते थे। लेकिन, बाद में इसमें तेज़ी आई और अब तो बहुत ही तेज रफ़्तार से जुड़वा बच्चे पैदा हो रहे हैं।