महाराष्ट्र : विपक्षी दबाव के आगे बेबस हुई फडणवीस सरकार, हिंदी अनिवार्य करने का फैसला किया रद्द
punjabkesari.in Sunday, Jun 29, 2025 - 07:50 PM (IST)

National Desk : महाराष्ट्र सरकार ने पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने का अपना फैसला वापस ले लिया है। यह निर्णय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए किया। उन्होंने बताया कि सरकार अब इस मुद्दे पर एक विशेष समिति का गठन करेगी, जो त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगी।
विवाद के बाद फैसला बदला
सरकार के पहले लिए गए फैसले के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पहली कक्षा से ही हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना था। लेकिन जैसे ही यह निर्णय सामने आया, राज्यभर में इसका विरोध शुरू हो गया। विशेष रूप से शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राज ठाकरे की मनसे पार्टी ने 5 जुलाई को एक बड़े मोर्चे की घोषणा कर दी थी। इसके बाद सरकार ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए दोनों सरकारी आदेशों (16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025) को रद्द कर दिया।
नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में बनेगी समिति
मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि सरकार ने डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाने का निर्णय लिया है। नरेंद्र जाधव पूर्व में योजना आयोग के सदस्य और एक वरिष्ठ शिक्षाविद् रह चुके हैं। यह समिति तय करेगी कि त्रिभाषा नीति के अंतर्गत तीसरी भाषा कब और कैसे लागू की जाए, और छात्रों को क्या विकल्प मिलें।
त्रिभाषा फॉर्मूला होगा लागू, लेकिन रिपोर्ट के बाद
फडणवीस ने स्पष्ट किया कि समिति की सिफारिशें आने के बाद ही राज्य में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू किया जाएगा। इसके तहत छात्रों को तीन भाषाएं – मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाई जाएंगी। हालांकि, समिति पहले यह तय करेगी कि यह व्यवस्था किस कक्षा से शुरू हो और किस रूप में लागू हो।
मराठी संगठनों और विपक्ष का था कड़ा विरोध
राज्य सरकार के इस फैसले का मराठी भाषी संगठनों, राजनीतिक दलों और समाजसेवियों ने तीखा विरोध किया था। उनका कहना था कि हिंदी को अनिवार्य करना मराठी भाषा और संस्कृति पर सीधा हमला है। विपक्षी दलों जैसे शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी और कांग्रेस ने भी इसे केंद्र की भाषा नीति को राज्य पर थोपने की कोशिश बताया। विरोध इतना बढ़ गया कि शिवसेना (यूबीटी) ने रविवार को हिंदी पाठ्यपुस्तकों की होलिका दहन कर अपना विरोध दर्ज कराया।
चुनावों से पहले जनभावनाओं को साधने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार ने यह फैसला वापस लिया है, ताकि मराठी अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर जनता की नाराजगी को शांत किया जा सके। भाषा को लेकर जनभावनाओं का असर राजनीति में गहरा होता है, और यही कारण है कि फडणवीस सरकार ने फिलहाल कदम पीछे खींच लिए हैं।