कश्मीरियत: श्रीनगर के श्मशानघाट की देखरेख करने वालों में शामिल हैं मुस्लिम समुदाय के लोग

punjabkesari.in Saturday, Oct 22, 2022 - 05:23 PM (IST)

जम्मू/श्रीनगर (अरुण): श्रीगनर के बटमालू क्षेत्र में चिनारों से घिरे कश्मीरी पंडितों के शांतिघाट का गत तीन दशकों से रखरखाव कर रहे लोगों में दो मुस्लिम भी शामिल हैं। कश्मीर घाटी में तरन दशकों से भी अधिक समय से जारी उपद्रवग्रस्त वातावरण, कश्मीरी पंडि़तों के विस्थापन, सामुहिक नरसंहार की घटनाओं के अलावा वर्तमान दौर में जारी टार्गेट किलिंग की घटनाओं के बीच इस प्रकार का उदाहरण अपने-आप में कुछ अलग ही तरह की कहानी कह जाते हैं।

 

शमशान भूमि की देखरेख करने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि इस शांतिघाट पर हर महीने दो से तीन लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है जिनमें हिंदू एवं सिख समुदायों के देहवासान करने वाले लोग होते हैं। उसका कहना था कि उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में गैर-मुस्लिम एवं मुस्लिमों समेत सभी लोग शामिल होते हैं जिसके लिए लाल चौक स्थित एक मंदिर से धर्मगुरू को बुलाया जाता है। उल्लेखनीय है कि कई कनाल क्षेत्र में फैली इस शमशान भूमि की देखरेख श्री सनातन धर्म प्रताप सभा द्वारा की जाती है। शमशान भूमि के साथ सटे फुटपाथ पर पटरी लगाकर सामान बेचने वाले गुलाम मोहम्मद का कहना था कि वर्ष 1990 से पहले यहां सैंकड़ों हिंदुओं व सिखों का अतिम संस्कार किया जाता था, परंतु कश्मीरी पंडितों के घाटी से विस्थापन के उपरांत अब यहां साल भर में लगभग 30 लोगों को मुखाग्रि दी जाती है।

 

उसका कहना था कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसके अंतिम संस्कार में शामिल होना यहां की रिवायत रही है क्योंकि यही तो कश्मीरियत की असल भावना है। उसने कहा कि इसके आस-पड़ोस में कश्मीरी पंडित दशकों से पड़ोसी के रूप में रहते आए है तथा दोनो समुदायों ने अत्यंत चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भी समरसता एवं सौहार्द के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। पुराने समय को याद करते हुए गुलाम मोहम्मद का कहना था कि उसे अभी भी वो दिन याद आते हैं जब एक-दूसरे की खुशियां और दुख बांटते हुए कश्मीरी मुस्लिमों एवं पंडितों के बच्चे एक साथ पलते-बढ़ते थे। उसका कहना था कि गत दशकों के दौरान कश्मीर के बदलते वातावरण के बावजूद दोनो समुदायों के लोग यथासंभव एक-दूसरे के सुख-दुख में शरीक होते हुए आपसी संपर्क को बनाकर रखे हुए हैं। उसका कहना था कि वह दिल से चाहता है कि कश्मीरी पंडित घाटी वापिस आ जाएं। सांप्रदायिक सौहार्द की बरसों पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए कश्मीरी पंडितों के अंतिम संस्कार में मुस्लिम हमेशा शामिल होते आए हैं। कुछ वर्ष पुर्व श्रीनगर के हब्बाकदल क्षेत्र में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के इकलौते परिवार में एक महिला की मृत्यु हो जाने पर स्थानीय मुस्लिमों द्वारा बटमालू के शांतिघाट में मृतका के अंतिम संस्कार के प्रबंध किए गए। 
 


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Content Writer

Monika Jamwal

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