जिन्ना की बिमारी बंटवारे को टाल सकती थी! तब माउंटबेटन ने दी थी सफाई, बोला- अगर मुझे पता होता कि वो मरने वाले हैं तो...

punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 01:14 PM (IST)

नेशनल डेस्क : पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना, जिन्हें 'कायदे-आजम' कहा जाता है, अपने आखिरी दिनों में गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। जुलाई 1948 की एक सुबह, लाहौर के मशहूर चिकित्सक कर्नल इलाही बख्श ने मोहम्मद अली जिन्ना को बताया कि वे टीबी से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। खबर सुनकर जिन्ना बिना घबराए बोले, डॉक्टर, मुझे अपनी बीमारी के बारे में 12 साल से पता है, लेकिन मैंने यह बात सिर्फ इसलिए छिपाई कि कहीं हिंदू मेरी मौत का इंतजार न करने लगें। हालांकि उनका जर्जर होता शरीर अब उनके हौसले का साथ नहीं दे रहा था। लेकिन, 11 सितंबर 1948 को, 71 वर्ष की आयु में, मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया। वे पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में अपने लक्ष्य में सफल हुए, लेकिन इसकी कीमत बहुत भारी पड़ी। पंडित नेहरू ने उनकी मृत्यु पर लिखा, 'उन्होंने अपना लक्ष्य पाया, लेकिन किस कीमत पर और वह भी अपनी कल्पना से अलग।'

माउंटबेटन का बड़ा बयान

भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने माना कि उन्हें जिन्ना की बीमारी की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा, 'अगर मुझे पता होता कि जिन्ना कुछ महीनों में मरने वाले हैं, तो मैं बंटवारा नहीं होने देता।' उनके मुताबिक, जिन्ना ही एकमात्र बाधा थे। बाकी मुस्लिम लीग के नेता समझौते के लिए तैयार हो सकते थे।

बीमारी का पता और जिन्ना का रवैया

जुलाई 1948 में लाहौर के चिकित्सक कर्नल इलाही बख्श ने जिन्ना को बताया कि वे टीबी और फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित हैं। तब जिन्ना का वजन घटकर मात्र 40 किलो रह गया था, खांसी में खून आने लगा था, और वे बेहद कमजोर हो चुके थे। फिर भी, उनका हौसला अलग था, वे कहते थे कि वे पजामा पहनकर नहीं मरेंगे। आखिरी दिनों में भी उन्होंने औपचारिक कपड़े पहनने की आदत नहीं छोड़ी।

पाकिस्तान बनने पर जिन्ना की हैरानी

जिन्ना के जीवनीकार स्टेनली वोलपार्ट के अनुसार, 7 अगस्त 1947 को कराची पहुंचते ही उन्होंने नौसेना अधिकारी एस.एम. एहसान से कहा था, 'मुझे उम्मीद नहीं थी कि अपनी जिंदगी में पाकिस्तान बनते देखूंगा।' विभाजन के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई, हिंसा और विस्थापन हुआ। आज भी भारत 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका दिवस' के रूप में याद करता है।

खान-पान और जीवनशैली

जिन्ना धार्मिक रूप से सख्त मुसलमान नहीं थे। उनके खान-पान में कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं था। एक किस्सा मशहूर है, मुंबई के एक रेस्तरां में उन्होंने पोर्क सॉसेज ऑर्डर किया था। एक बुजुर्ग मुसलमान का बच्चा प्लेट से टुकड़ा उठा ले गया, तो जिन्ना ने नाराजगी जताई, लेकिन उनके साथी ने मजाक में कहा, 'या तो मैं आपका चुनाव हरवा दूं या उस बच्चे को खुदा का कहर झेलने दूं।'
जिन्ना का शौक बेहतरीन कपड़ों, सिगार और सिगरेट का था। वे दिन में लगभग 50 सिगरेट पीते थे। उनका पसंदीदा ब्रांड 'Craven A' था। वे महंगे हवाना सिगार भी पीते थे। उनके निजी सामान पर 'M.A.J.' लिखा होता था।

बीमारी का छिपा राज

1935 में ही जिन्ना को अपनी खराब सेहत का अंदाजा हो गया था। X-ray में उनके फेफड़ों पर बड़े धब्बे पाए गए थे। लेकिन उन्होंने डॉक्टर जे.ए.एल. पटेल से कहा कि रिपोर्ट हमेशा तिजोरी में बंद रखी जाए। इतिहासकारों का मानना है कि अगर ब्रिटिश नेतृत्व को जिन्ना की गंभीर बीमारी का पता चल जाता, तो शायद भारत का बंटवारा टल सकता था।

अखंड भारत के प्रधानमंत्री का प्रस्ताव

गांधी ने माउंटबेटन से कहा था कि जिन्ना को अविभाजित भारत का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दें। माउंटबेटन ने यह प्रस्ताव जिन्ना को दिया, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया। उनका कहना था, 'हिंदू राज के अधीन रहने से बेहतर है कि मैं सब कुछ खो दूं।'

 


 


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Content Editor

Mehak

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