पत्थरबाजों का गढ़ बन चुकी है ''कश्मीर'' की ये खूबसूरत इमारत

punjabkesari.in Tuesday, Aug 08, 2017 - 12:32 PM (IST)

श्रीनगर: इलाके की जामा मस्जिद हाल के वर्षों में कश्मीर की राजनीति का गढ़ बन चुकी है। खासकर कश्मीरी युवाओं और सुरक्षाबलों के बीच टकराव के लिए इस जगह का नाम अक्सर आता रहता है। जुमा यानी शुक्रवार की नमाज के बाद पत्थरबाजी इस इलाके की पहचान बन चुकी है। पिछले दो दशकों से कश्मीरी युवाओं और सुरक्षाबलों के बीच झड़पों को लेकर ये इलाका युद्धक्षेत्र बना हुआ है। अब तो कुछ लोग इस इलाके को कश्मीर का गाजा भी कहने लगे हैं।

जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी बनी पहचान
शुक्रवार की नमाज के बाद इलाके में पत्थरबाजी नौहट्टा पुलिस स्टेशन और सीआरपीएफ की टुकड़ियों के लिए सामान्य बात हो गई है। हाल ही में एक पुलिस अधिकारी मोहम्मद अय्यूब पंडित की इसी मस्जिद के परिसर में भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। श्रीनगर की ये जामा मस्जिद लंबे वक्त से मीर वाइज परिवार के लिए एक अहम मंच रहा है।नमाज के दौरान मीर वाइज उमर फारूक को जामिया मस्जिद में उपदेश देते हुए देखा जा सकता है। सरकार अब अक्सर मस्जिद में जुमा की नमाज पर पाबंदी लगाती रहती है, क्योंकि नमाज के बाद पत्थरबाजी से स्थिति के नियंत्रण से बाहर होने का खतरा बना रहता है।

1394 में बनी मस्जिद सियासत का बनी केंद्र
नौहट्टा इलाके में स्थित जामिया मस्जिद शहर के आकर्षण का केंद्र है, इसे 1394 ई. में सुल्तान सिकंदर शाह कश्मीरी शाहमीरी ने बनवाया था। जबकि उनके बेटे जैनुल आबिदीन ने बाद में मस्जिद का बुर्ज बनवाकर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगवा दिए।इस मस्जिद का निर्माण फारसी शैली में किया गया है, हालांकि इसकी इमारत बौद्ध पगोडे की भी झलक देती है। श्रीनगर के ऐतिहासिक इलाके में स्थित यह मस्जिद नगरवासियों के लिए मजहबी और सियासी जीवन का केंद्र है। बाहर होने वाली हिंसा के विपरीत जामा मस्जिद के अंदर का माहौल और साज-सज्जा बेहद शांतिपूर्ण और सुंदर है। जहां दूसरी कई देखने लायक चीजों के अलावा एक विशाल फव्वारा भी है, जो कि एक छोटे से हौज में बना है।

मीडिया की मौजूदगी का मतलब बवाल की आशंका  
हालात एेसे हो गए हैं कि अगर कोई मीडिया संस्थान का कैमरामैन और पत्रकार मस्जिद के आसपास नजर आएं, तो पुलिस इसे नमाज के बाद कुछ गड़बड़ होने का संकेत मानती है। ऐसे में पुलिस सभी पत्रकारों को जबरन वहां से हटाने की कोेशिश करती है, क्योंकि उसे लगता है कि कैमरामैन की मौजूदगी में प्रदर्शनकारियों के हौसले बुलंद होंगे और उन्हें पत्थरबाजी के लिए प्रेरित करेंगे।

 


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