Indian Rupee: रुपया डॉलर, पौंड, यूरो और येन के मुकाबले कमजोर... जानिए मनमोहन और मोदी सरकार में कितनी गिरी कीमत
punjabkesari.in Thursday, Feb 06, 2025 - 09:00 AM (IST)
नेशनल डेस्क: भारतीय रुपये की मूल्य गिरावट लगातार जारी है और यह न केवल अमेरिकी डॉलर, बल्कि ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन के मुकाबले भी कमजोर हो रहा है। 15 जनवरी से 4 फरवरी 2025 के बीच, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के आंकड़ों के अनुसार, रुपया ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले सबसे ज्यादा कमजोर हुआ। इस दौरान एक पाउंड की कीमत 105.56 रुपये से बढ़कर 108 रुपये हो गई। इसी अवधि में, डॉलर और यूरो के मुकाबले रुपये में क्रमशः 62 पैसे और 63 पैसे की गिरावट दर्ज की गई।
सरकार ने दी सफाई, विपक्ष ने बोला हमला
रुपये की गिरती कीमत पर विपक्ष ठीक उसी तरह केंद्र सरकार को घेर रहा है, जैसा 2014 से पहले भाजपा, यूपीए सरकार पर हमलावर रहती थी। तब भाजपा नेताओं ने इसे ‘राष्ट्रीय शर्म’ तक कहा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी।
अब विपक्ष, भाजपा को उसी के पुराने बयानों की याद दिला रहा है। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि रुपये में गिरावट चिंता का विषय है, लेकिन यह हर मोर्चे पर कमजोर नहीं हो रहा। उन्होंने यह भी कहा कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपये की स्थिरता बनी हुई है।
कैसे गिरता गया रुपया?
रुपये की कमजोरी का यह कोई पहला दौर नहीं है। 2000 से 2010 के बीच एक डॉलर की कीमत 44 से 48 रुपये के बीच ही रही थी, लेकिन अगले दस सालों में यह तेजी से बढ़ी।
- 2010 से 2020: डॉलर की कीमत 45 से 76 रुपये के बीच रही।
- 2004-2014 (यूपीए सरकार): रुपया 45 से 62 रुपये तक गिरा।
- 2014-2024 (मोदी सरकार): रुपया 62 से 83 रुपये तक पहुंच गया।
- 2025 की शुरुआत में ही डॉलर 87 रुपये के पार चला गया।
1970 के दशक में 1 डॉलर = 8 रुपये के बराबर था, जो 1991 में 20 रुपये, 1998 में 40 रुपये और 2012 में 50 रुपये पार कर गया। अब, 2025 में यह 90 के करीब पहुंच रहा है।
मनमोहन बनाम मोदी सरकार में रुपये की तुलना
अगर मनमोहन सरकार (2004-2014) और मोदी सरकार (2014-2024) की तुलना करें, तो रुपये की गिरावट के आंकड़े इस प्रकार हैं:
समयावधि | डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट |
---|---|
2004-2014 (यूपीए सरकार) | 17 रुपये (45 से 62 रुपये) |
2014-2024 (मोदी सरकार) | 21 रुपये (62 से 83 रुपये) |
यूपीए शासन में रुपये की स्थिति तीन सालों (2005, 2007, 2010) में थोड़ी बेहतर हुई थी, लेकिन मोदी सरकार के 10 सालों में केवल एक बार (2021 में) ऐसा हुआ।
रुपये की मजबूती किन कारकों पर निर्भर?
रुपये की स्थिति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारण:
- निर्यात: अगर भारत का निर्यात बढ़ता है और आयात घटता है, तो रुपया मजबूत होता है।
- महंगाई: महंगाई कम रहने से क्रय शक्ति बनी रहती है, जिससे रुपये की स्थिति स्थिर रहती है।
- वैश्विक घटनाएं: राजनीतिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कमजोरी रुपये को प्रभावित करती है।
- विदेशी निवेश: अगर भारत में विदेशी निवेश (FDI) अधिक आता है, तो रुपये को समर्थन मिलता है।
भाजपा के पुराने बयान अब चर्चा में
2012-2013 के दौरान जब रुपये में गिरावट आई थी, तब भाजपा नेताओं ने यूपीए सरकार पर जमकर हमला बोला था।
- नरेंद्र मोदी (2013, गुजरात CM रहते हुए): "रुपये की कीमत गिरना देश की आर्थिक नीतियों की विफलता दर्शाता है।"
- नितिन गडकरी (2012): "समस्या यूरोज़ोन नहीं, यूपीए-ज़ोन है। यह सरकार लंगड़ी हो चुकी है।"
- रवि शंकर प्रसाद (2013): "रुपये की गिरावट सिर्फ आर्थिक अस्थिरता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व को भी नुकसान पहुंचा रही है।"
- वेंकैया नायडू (2013): "देश एक लकवाग्रस्त सरकार को नहीं झेल सकता, तुरंत चुनाव होने चाहिए।"
अब विपक्ष इन्हीं बयानों को दोहराकर भाजपा सरकार से जवाब मांग रहा है।
क्या रुपये की कमजोरी बनी रहेगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की गिरावट वैश्विक मंदी, महंगाई, और अमेरिका की मौद्रिक नीति से जुड़ी हुई है। अगर भारत अपने निर्यात को बढ़ाने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और महंगाई नियंत्रित करने में सफल रहता है, तो रुपये में कुछ स्थिरता आ सकती है। हालांकि, अगर डॉलर की मजबूती बनी रही और वैश्विक बाजार में अनिश्चितता जारी रही, तो रुपया और कमजोर हो सकता है।