अगले 6 महीने में बदल जाएगा इनकम टैक्स एक्ट, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ऐलान
punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2024 - 04:16 PM (IST)
नई दिल्ली : अगले आने वाले 6 महीने में इनकम टैक्स एक्ट में बदलाव आने वाला है। इसकी घोषणा मंगलवार बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। उन्होंने आयकर अधिनियम 1961 की बेहतर समीक्षा का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि इससे विवादों और मुकद्दमेबाजी में कमी आएगी। उन्होंने कहा कि इसे 6 महीने में पूरा करने का प्रस्ताव है।
बता दें कि नौकरीपेशा लोगों के लिए न्यू टैक्स रिजीम में स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ा दिया है। यह 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दिया गया है। वहीं, वित्त मंत्री ने सभी फाइनेंशियल और नॉन-फाइनेंशियल एसेट्स पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स को बढ़ा दिया है। अब LTCG 12.5% की दर से कर लगेगा। इसके अतिरिक्त, पूंजीगत लाभ के लिए छूट की सीमा 1.25 लाख रुपये प्रति वर्ष निर्धारित की जाएगी। वहीं, STCG पर 20 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा।
आयकर अधिनियम 1961 के कुछ विवादास्पद प्रावधानों में शामिल हैं:
1. धारा 50C: यह धारा संपत्ति के हस्तांतरण पर कैपिटल गेन की गणना के लिए स्टाम्प ड्यूटी मूल्य को बिक्री विचार मानती है यदि बिक्री विचार स्टाम्प ड्यूटी मूल्य से कम है। इससे कई तरह की मुकदमेबाजी होती है, खासकर जब वास्तविक बाजार मूल्य और स्टाम्प ड्यूटी मूल्य में अंतर होता है।
2. धारा 271AAD : यह नवीनतम प्रावधान किसी भी झूठे प्रविष्टि या महत्वपूर्ण प्रविष्टि की अनुपस्थिति, जो कुल आय की गणना के लिए महत्वपूर्ण होती है, पर कर छुपाने की मंशा से दंडित करता है। इस धारा की व्याख्या में अस्पष्टता और इससे जुड़ी मनमानी कार्रवाई के कारण लिटिगेशन की संख्या में वृद्धि हुई है।
भारत में आयकर से संबंधित मुकदमेबाजी के लंबित मामलों की संख्या और प्रकार की सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यह जाना जाता है कि कई मामले विभिन्न प्रकार के टैक्स विवादों के कारण लंबित हैं, जिसमें ट्रांसफर प्राइसिंग, कैपिटल गेन्स, कर छूट का दुरुपयोग, और झूठे दस्तावेजों के आधार पर किए गए आकलन शामिल हैं। ये मुकदमेबाजी अक्सर करदाताओं और कर विभाग के बीच विवादों को जन्म देते हैं और कई बार यह विवाद उच्च न्यायालयों तक पहुंच जाते हैं।
कर विवादों में कमी लाने के लिए और करदाताओं को अधिक स्पष्टता प्रदान करने के लिए आयकर अधिनियम की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है, जिससे विवादों का समाधान तेजी से हो सके और करदाताओं को न्याय मिल सके।