23 सितंबर: अगर युद्ध विराम न होता, तो लाहौर होता भारत के कब्जे में — जानें 1965 के युद्ध की पूरी कहानी

punjabkesari.in Monday, Sep 23, 2024 - 09:29 AM (IST)

नेशनल डेस्क: आज 23 सितंबर है, और यह दिन भारतीय और पाकिस्तानी इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। 1965 में, इसी दिन भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की घोषणा की गई थी। यदि यह युद्ध विराम नहीं होता, तो आज लाहौर भारत के नियंत्रण में हो सकता था। आइए जानते हैं इस युद्ध की पूरी कहानी और इसके पीछे की पृष्ठभूमि।

जानिए क्या है युद्ध की पृष्ठभूमि ? 
कश्मीर का विवाद
कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद है। 1947 में विभाजन के समय, कश्मीर रियासत का प्रमुख निर्णय नहीं ले सका था कि वह भारत के साथ जुड़ना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। इस स्थिति का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने 1947-48 में कश्मीर पर हमला किया, जिससे पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ। उस युद्ध के बाद, कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित हो गया, लेकिन इस क्षेत्र पर दोनों देशों के दावों का अंत नहीं हुआ।

कच्छ का रण
1965 में युद्ध की शुरुआत से पहले, पाकिस्तान ने कच्छ के रण में भारत के साथ सीमा झड़पें शुरू की थीं। यह झड़पें 20 मार्च 1965 को हुई थीं, जब पाकिस्तान ने जानबूझकर भारतीय सीमाओं का उल्लंघन किया। शुरू में यह लड़ाई केवल सीमा सुरक्षा बलों के बीच थी, लेकिन जल्दी ही यह बढ़कर दोनों देशों की नियमित सेनाओं तक पहुंच गई। 

ऑपरेशन जिब्राल्टर और पाकिस्तान की रणनीति
पाकिस्तान का secret operation
पाकिस्तान ने कच्छ के रण में मिली सफलता के बाद कश्मीर में एक नया हमला करने की योजना बनाई। इसके लिए पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने राष्ट्रपति जनरल अयूब खान पर दबाव डाला कि वे कश्मीर पर एक गुप्त सैन्य अभियान चलाएं। इस अभियान का नाम "ऑपरेशन जिब्राल्टर" रखा गया। इसके तहत पाकिस्तानी सैनिकों को स्थानीय कश्मीरियों की वेशभूषा में भेजा गया ताकि उन्हें विद्रोह के लिए उकसाया जा सके।

भारत की तैयारियां
भारत ने स्थिति को गंभीरता से लिया और जवाबी कार्रवाई की योजना बनाई। भारतीय कमांडरों ने लाहौर पर हमला करने का प्रस्ताव दिया, और इसके लिए आवश्यक सैनिकों की व्यवस्था की गई। यह निर्णय उस समय लिया गया जब भारत चीन के साथ युद्ध हार चुका था, और इस समय भारत की सैन्य स्थिति कमजोर समझी जा रही थी। लेकिन भारत ने अपनी रणनीति में दृढ़ता दिखाई।

लाहौर पर भारतीय सेना का हमला
हमला शुरू करना
6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने लाहौर पर हमला करने का आदेश दिया। भारतीय सेना के पहले पैदल सैन्य खंड (इनफैंट्री डिवीजन) और द्वितीय बख्तरबंद उपखंड (ब्रिगेड) के तीन टैंक दस्ते इस हमले में शामिल हुए। भारतीय सेनाएं तेजी से सीमा पार कर गईं और इच्छोगिल नहर तक पहुंच गईं। 

लड़ाई का संघर्ष
इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटाने में सफलता हासिल की। भारतीय सेनाएं लाहौर की सीमा के करीब पहुंच गईं। जबकि पाकिस्तान ने पुलों की रक्षा के लिए सैनिक तैनात किए, भारतीय सेना ने कई जगहों पर अपनी स्थिति मजबूत की। 

वायु सेना की भूमिका
यह युद्ध एक नया अध्याय था क्योंकि इसमें पहली बार भारतीय वायु सेना और पाकिस्तानी वायु सेना आमने-सामने आईं। भारतीय वायु सेना के पास हॉकर हंटर, मिग-21, और बमवर्षक जैसे कई आधुनिक विमान थे। पाकिस्तानी वायु सेना भी अपने F-86F सैबर और F-104 स्टारफाइटर विमानों के साथ पूरी ताकत से मुकाबले में थी।

युद्ध विराम और ताशकंद समझौता
संघर्ष का अंत
17 दिनों की भीषण लड़ाई के बाद, 23 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम की घोषणा की। इसके बाद, दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को वापस बुलाने पर सहमति जताई। युद्ध विराम के बाद ताशकंद में एक समझौता हुआ, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे की जमीनें लौटाने का निर्णय लिया। 

युद्ध का प्रभाव
यह युद्ध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण विजय साबित हुआ, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को मजबूत किया। भारत ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया और यह दिखाया कि वह किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। यदि 23 सितंबर 1965 को युद्ध विराम नहीं होता, तो संभवतः लाहौर भारत के कब्जे में होता। यह युद्ध न केवल भारत और पाकिस्तान के इतिहास में महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने पूरे क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित किया। 


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Content Editor

Mahima

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