गुलबर्ग सोसाइटी केस में 14 साल बाद आया फैसला, 24 दोषी करार, 36 बरी
punjabkesari.in Thursday, Jun 02, 2016 - 01:23 PM (IST)

अहमदाबाद: साल 2002 के गोधरा कांड के बाद गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों के मामले में एक स्पैशल SIT कोर्ट ने आज अपना अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 24 आरोपियों को दोषी करार दिया है जबकि 36 को बरी कर दिया है। दोषी पाए गए 24 लोगों की सजा का ऐलान कोर्ट 6 जून को करेगी। बता दें कि इस दंगें में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे।
इस मामले में SIT ने 66 आरोपियों को नामजद किया था, जिनमें से 9 आरोपी पिछले 14 साल से जेल में हैं, जबकि बाकी आरोपी जमानत पर हैं। एक आरोपी बिपिन पटेल असरवा सीट से भाजपा का निगम पार्षद है। 2002 में दंगों के वक्त भी बिपिन पटेल निगम पार्षद था, पिछले साल उसने लगातार चौथी बार जीत दर्ज की। हालांकि कोर्ट ने आज बिपिन पटेल को भी इस केस से बरी कर दिया है।
दो आरोपियों की अर्जी खारिज
पिछले हफ्ते कोर्ट ने नारायण टांक और बाबू राठौड़ नाम के दो आरोपियों की ओर से दायर वह अर्जी खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग टेस्ट कराने की गुहार लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि अब जब फैसला आने वाला है तो इसकी जरूरत नहीं है।
जानिए इस केस में शुरू से अब तक क्या-क्या हुआ
-गोधरा कांड के एक दिन बाद यानी 28 फरवरी, 2002 को 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी पर हमला हुआ। गुलबर्ग सोसायटी में सभी मुस्लिम रहते थे, सिर्फ एक पारसी परिवार रहता था। यहां पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी रहते थे।
-20,000 से ज्यादा लोगों की हिंसक भीड़ ने पूरी सोसायटी पर हमला किया। ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया गया। 39 लोगों के शव बरामद हुए और अन्य को गुमशुदा बताया गया लेकिन 7 साल बाद भी उनके बारे में कोई जानकारी न मिलने पर उन्हें मृत मान लिया गया। अब कुल मौतों का आंकडा 69 है, मरने वालों में एहसान जाफरी भी थे।
-8 जून, 2006 को एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने पुलिस को एक फरियाद दी, जिसमें कहा कि इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया लेकिन पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया।
-7 नवंबर, 2007 को गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को एफ.आई.आर. मानकर जांच करवाने से इनकार कर दिया।
-26 मार्च, 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बडे केसों की जांच के लिए आर. के. राघवन की अध्यक्षता में एक SIT बनाई, इनमें गुलबर्ग का मामला भी था।
-मार्च 2009 में जकिया की फरियाद की जांच करने का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने SIT को सौंपा।
-सितंबर 2009 को ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई शुरू हुई।
-27 मार्च 2010 को नरेंद्र मोदी को SIT ने जकिया की फरियाद के संदर्भ में समन जारी किया और कई घंटों तक पूछताछ हुई।
-14 मई 2010 को SIT ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की।
मोदी को मिली थी क्लीन चिट
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी इस मामले में आरोप लगा था, हालांकि 2010 में उनसे पूछताछ के बाद SIT रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी।
-जुलाई 2011 में एमीकस क्यूरी राजू रामचन्द्रन ने इस रिपोर्ट पर अपनी नोट सुप्रीम कोर्ट में रखी।
-11 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला ट्रायल कोर्ट पर छोड़ा।
-8 फरवरी 2012 को SIT ने अपनी रिपोर्ट मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रैट की कोर्ट में पेश की।
-10 अप्रैल 2012 को मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रैट ने SIT की रिपोर्ट को माना कि मोदी और अन्य 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं।
-इस मामले में 66 आरोपी हैं, जिसमें प्रमुख आरोपी बीजेपी के असारवा के काउंसलर बिपिन पटेल भी थे।
-इस मामले के 4 आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो गई।
-आरोपियों में से 9 अब भी जेल में हैं, जबकि अन्य सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं।
-इस मामले में 338 से ज्यादा गवाहों की गवाही हुई है।
-सितंबर 2015 में इस मामले का ट्रायल खत्म हो गया और अब फैसला आना है।